सदमा
सदमा
अनय ऐसे ही तो छटपटाया था जब आरोही ने उसे छोड़ कर जाने का फैसला कर लिया था। रोज सारा दिन उसके घर, ऑफिस के सामने खड़ा रहना, आते जाते उसके पीछे चलना और यह कोशिश करना की एक नजर देख ले बस। कहीं रुक कर बात कर ले बस।
पर ऐसा हुआ नहीं।
आरोही चली गई।
नई राह, नई मंजिल उसका इंतजार कर रही थी। बहुत समय से वो कोशिश कर रही थी की उसे कहीं और नौकरी मिल जाए, जहां सैलरी अच्छी हो, आगे बढ़ने के चांस ज्यादा हो। अनय की ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं थी वो यहीं खुश था, उसका घर, शहर, लोग सभी तो हैं यहीं। वो क्यों जाए किसी और शहर? उसे लगता क्या कमी है यहां, दोनों मिलकर जितना कमाते हैं बहुत है। समय के साथ पैसे भी बढ़ेंगे और पोजिशन भी। लेकिन आरोही को सब्र नहीं। उसे ऊंची उड़ान भरनी है, दुनिया देखनी है और आत्म निर्भर होना है। उसे लगता था कि अनय समझेगा उसकी भावनाओं को, साथ देगा उसका। हर कदम पर हाथ पकड़े चलेगा उसके, लेकिन लाख कोशिश के बाद भी अनय नहीं पिघला। तो उसने फिर अनय से दूरी बनानी शुरू कर दी। सपनों के आगे कुछ और नहीं। अनय नहीं तो कोई और लिखा होगा ईश्वर ने उसके लिए। किसी के लिए सपनों का बलिदान क्यों देना।
अनय का काल आता तो बहाने बनाकर जल्दी फोन रखना, मैसेज का जवाब न देना, मिलने से टालना वो सब कुछ करने लगी जिससे दूरी बढ़े।
अनय को समझ तो आ रहा था लेकिन क्या करे वो ये सूझ नहीं रहा था। उसकी हर कोशिश बेकार हो रही थी। आरोही अब उसकी गलतियां निकालने लगी। जो बातें अनय की उसे कभी अच्छी लगती थीं वो अब नागवार गुजरने लगी। बड़ी मुश्किल से एक आखरी बार वो तैयार हुई मिलने को।
अनय फूट फूट कर रोया उसके सामने। मनाने की कोशिश की, गिड़गिड़ाया, लेकिन आरोही ने फैसला कर लिया था। केरियर के आगे कुछ नहीं। प्रेम का क्या है पहली बार के बाद दोबारा नहीं होगा ऐसा किसी किताब में तो नहीं लिखा। सच्चा साथी तो वही कहलाएगा न जो अपने साथी के तरक्की में साथ दे उसके साथ चले न की एक जगह रुक जाए।
आरोही एयरपोर्ट में टैक्सी से उतर रही है, ठीक पीछे वाली गाड़ी में अनय बैठा है उसे देखते। वो भी कार से बाहर आता है उसे उम्मीद है आरोही गेट से भीतर जाने के पहले एक बार मुड़कर जरूर देखेगी।
लाइन में लगी आरोही को मालूम है अनय आसपास ही होगा। वो अपनी गर्दन को कड़ा कर चली जा रही है। कौन अनय? कैसा प्रेम?
अनय धुंधलाई आंखों से उसे जाता देख रहा है।
©संजय मृदुल
साथिया
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