"कुछ पाकर खोना है...कुछ खो कर पाना है", दार्शनिक..अंदाज वाली यह पंक्तियां "जिंदगी और कुछ भी नही तेरी मेरी कहानी है...!" इस अजर अमर गीत की है। जिसे मशहूर गीतकार संतोष आनन्द ने लिखा है। जिसका गहरा भावार्थ यही है कि जीवन में कुछ पा, कर खोना और खोकर, ही पाया जाता है। और यही जीवन की कड़वी सच्चाई है|
बदलते वक्त में बहुत कुछ बड़ी तेजी से बदल रहा है । अक्सर यह महसूस हो रहा है कि हम कुछ पल या कुछ घण्टो को कलर और वार्म फुल बनाने के लिए नशे और संगीत की संगत के साथ एक आभासी दुनियां में वह खुशी पाने की कोशिश करते है।
जिसका सफर नशा उतरते ही खत्म हो जाता है। जब हमें होश आता है तो पता पड़ता है कि हमने जोश खरोश में चंद घण्टो की मस्ती के लिए बहुत कुछ खो दिया है। और फिर हमें लगता है अब सब कुछ लुटा कर होश में आये तो क्या किया?
जैसा कि अक्सर ऐसा कलेंडर, वर्ष की आखरी तारीख में हमारी नई जनरेशन की बिंदास लाइफ में नजर आता है। हम यह भुल जाते है कि कोई भी खुशी कोई भी मस्ती कोई मजा हमारे सनातनी संस्कार और परिवार की गरिमा से बड़ा नही हो सकता ।
अंग्रेजी कलेण्डर साल का 'सेलिब्रेशन' आजकल इतना खास हो गया है कि एक महीने पहले से इसकी तैयारियां शुरू कर देते है| हमेशा की तरह इस बार भी इकत्तीस दिसम्बर आने वाला हैं,महानगरों में तो कई कम्पनियो ने ऑफर के साथ जश्न की शुरूआत भी कर दी है। आजकल की युवा पीढ़ी को इकत्तीस दिसम्बर की रात का बेसब्री से इंतजार रहता हैं।
पाश्चत्य संस्कृति को अपनाने वालों की धारणा होती हैं, कि बीते वर्ष और आने वाले वर्ष का जश्न ‘दिल ओ जान’ से मनाना चाहिए| इसलिए एक महीने पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर दी जाती है। हर उम्र के लोगों के लिए अलग-अलग पार्टियां रखी जाती है।
इस रात को रोमानी और मनोरंजक बनाने के लिए हर तरह की व्यवस्था रखी जाती साथ ही साथ तरह-तरह के फ़ास्ट फ़ूड शराब,कोकिन,हेरोइन,अश्लील नाच गाना,यहां तक कि फिजिकल रिलेशन शिप भी। एक रात को हसीन बनाने के लिए करोड़ो खर्च कर तरह-तरह की योजनाएं बनाई जाती। एक महीने पहले से ही ऑफर के साथ नाइट बुकिंग भी शुरू हो जाती हैं। कई पार्टियां तो शहर से दूर सुनसान इलाको के फार्म हाऊस में की जाती, ताकी पुलिस की नजर न पड़े।
टुरिस्ट प्लेसेस अधिक से अधिक सजाए जाते हैं ताकी अधिक से अधिक लोग इन जगह पर रात बिताएं। 31 दिसम्बर अब महानगरों तक ही सीमित नही हैं। छोटे-छोटे कस्बों में भी इसका अच्छा खासा चलन हो गया है।
कई युवक युवतियां तो शादी की तरह तैयारी करते साथ ही कई तो इस रात के लिए पहले से ही कई योजनाएं भी बनाकर रखते है। 31 दिसम्बर की शाम से ही शहर जगमगाने लग जाते हैं। रात होते ही पार्टियां शबाब पर आ जाती।
नाच-गाना, खाना-पीना, तरह तरह के ड्रग्स छोटे-छोटे कपडों में मेकअप से पूती लहराती युवतियां, हाथों में शराब लिए क्लबों में नाचते हुए,अलग ही रोमांचक रोनके शुरू हो जाती है। इन क्लबों में हर तरह का नशा किया जाता। कोई पहली बार आता है तो कोई जबरदस्ती लाया जाता।
कई दोस्तों को जर्बदस्ती मनुहार करके नशा करने को मजबूर किया जाता है, तो कई युवक युवतियों के साथ ड्रग्स शराब के सेवन के लिए प्यार की दुहाई देकर पिलाई जाती है। नया वर्ष शुरू होते-होते पार्टी में शामिल सभी युवक युवतियां अपने होश खोने लग जाते है।
फिर रात का तांडव शुरू होता। कई बार किसी युवती के साथ जबरदस्ती तो किसी की बेहोशी की हालात में इज्जत से खिलवाड़, नशे में धुत सडक़ पर घूमती युवतियों के साथ छेडख़ानी। देर रात पार्टियां खत्म होने पर नशे में धुत गाडी चलाने पर कई एक्सीडेंट होना।
नया साल नए-नए हादसों का साल बन जाता हैं। सुबह तक कई तरह की वारदात को अंजाम दे दिया जाता है। धीरे-धीरे हफ्ते तक सभी अंजाम सामने आते रहते हैं। अगर किसी युवती के साथ दर्दनाक बलात्कार हुआ तो नया कानुन,साथ ही जगह-जगह मोमबत्ती जलाकर मातम मनाना,टीवी पर बहस....बस।
सोचने वाली यह बात है,कि वाकई में हमारे नए वर्ष की शुरुआत ऐसे होना चाहिए?
पाश्चात्य संस्कृति हमें किस पतन की ओर लें जा रही है, आज हम आधुनिक दिखने के चक्कर में, हम अपनी मान मर्यादा इज्जत सब कुछ लुटा रहे है| हमारी संस्कृति परम्परा को भूलते जा रहे हैं| बीता हुआ वर्ष कुछ अनुभव देता, नया वर्ष नए कार्य की उम्मीदों का वर्ष होता है, किन्तु अगर हम 31दिसंबर इसी तरह से मनाते रहे तो हादसों का सफर बढ़ता जाएगा| आज हम सभी को गहन चिंतन करने की आवश्यकता है, क्या नया वर्ष मनाने का यह सही तरीका?