बाबा की बिटिया

ज़िंदगी में जब मुश्किलें आती हैं तो न जाने कितने इम्तिहान देने पड़ते हैं। उस पर हमारा कोई वश भी तो नहीं होता है न! लेकिन बिना आपा खोए, सही दिशा में अगर ईमानदार प्रयास किए जाएँ तो अव्वल नंबरों से उस इम्तिहान को पास जरूर किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ स्नेहा के साथ हुआ

May 30, 2025 - 16:44
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बाबा की बिटिया
Baba's daughter
ज़िंदगी में जब मुश्किलें आती हैं तो न जाने कितने इम्तिहान देने पड़ते हैं। उस पर हमारा कोई वश भी तो नहीं होता है न! लेकिन बिना आपा खोए, सही दिशा में अगर ईमानदार प्रयास किए जाएँ तो अव्वल नंबरों से उस इम्तिहान को पास जरूर किया जा सकता है। ऐसा ही कुछ स्नेहा के साथ हुआ। उच्च शिक्षित और समझदार स्नेहा की शादी समीर से हो गई,जो खुद भी शांत और संकोची स्वाभाव वाला लड़का था लेकिन समीर की माँ यानि मालती देवी एक कड़क मिज़ाज़ वाली तेज़-तर्रार महिला थीं। घर में किसी को कहीं जाना हो या बाजार से कुछ लाना हो,लंच-डिनर में क्या बनेगा से लेकर कौनसी गाड़ी खरीदनी चाहिए तक; हर जगह उनकी ही तूती बोलती थी। स्नेहा के ससुर सूर्यप्रकाश जी भी पत्नी के आगे नतमस्तक ही रहा करते थे क्योंकि चलनी तो उनकी ही थी। मालती देवी को स्नेहा के कामकाजी होने से कोई गुरेज़ नहीं था लेकिन वो ये चाहती थीं कि जब भी, घर में या रिश्तेदारी में बहू की ज़रूरत हो तो उसे उपस्थित रहना चाहिए। इसके लिए चाहे उसे ऑफिस में झूठ बोलना पड़े या बहानेबाज़ी करनी पड़े इससे उन्हें कोई मतलब नहीं था। घर और ऑफिस के बीच एडजस्टमेंट करते हुए स्नेहा अपने मन को कितना मारती थी ये कोई नहीं समझ सकता था। यहां तक तो फिर भी ठीक था लेकिन उसके देवर निखिल की शादी होने के बाद भी छोटी बहू अंजू से मालती देवी को कोई खास अपेक्षाएं नहीं थीं जबकि वो सारा दिन घर पर ही रहती थी। उनके सारे एक्सपेक्टेशंस तो स्नेहा से ही थे।
मालती देवी और सूर्यप्रकाश जी की ४०वीं वैवाहिक वर्षगाँठ पर घर में एक फैमिली गेट-टूगेदर रखा गया, स्नेहा ने भाग दौड़ कर पूरी तैयारी कर ली लेकिन मालती देवी की ज़िद थी कि फंक्शन के पहले उसे ऑफिस से कम से कम २ दिन की छुट्टी लेनी चाहिए। स्नेहा ने दबी ज़बान से कहने की कोशिश की -`माँ, पिछले महीने भी बुआजी के आने पर मैंने ३-४ दिनों की छुट्टी ली थी। हर महीने इस तरह ऑफिस से छुट्टी लेने में ष्ठ’। मालती देवी ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा- `ठीक है..ठीक है कौनसा बुआ जी हर महीने आती हैं?' ऐसा कहकर उन्होंने स्नेहा को तो चुप करा दिया लेकिन उसके मन में उठते हुए विचारों के सैलाब को वो रोक नहीं सकीं। स्नेहा ये बखूबी जानती थी कि बार-बार छुट्टी लेने से ऑफिस में उसकी इमेज खराब हो चुकी है, इसी वजह से इस बार जब सालाना अप्रैज़ल हुए तो सीनियर होने के बावजूद उसे कोई खास तवज्जो नहीं दी गई क्योंकि उसके बॉस का यह मानना था कि वो घर-गृहस्थी में ज्यादा उलझी हुई है और ऑफिस की जिम्मेदारियों को पूरे कमिटमेंट के साथ सही ढंग से निभाने में असमर्थ है इसीलिए उसके जूनियर को प्रमोट कर उसका बॉस बना दिया गया,जो स्नेहा के लिए डूब मरने वाली बात थी लेकिन इस झटके को भी उसने सह लिया। उसे दुःख सिर्फ इस बात का था कि जिन लोगों की वजह से वो ये सब कम्प्रोमाइसेस कर रही है कम से कम उन लोगों को इस बात का अहसास तो रहे। वो अपनी फीलिंग्स किस के साथ शेयर करे? कोई उसका पक्ष भी सुनने वाला तो हो। समीर से बात करने का भी कोई फायदा नहीं था क्योंकि माँ की कही हर बात उसे जायज़ लगती थी।
यही सब उथल-पुथल मन में लिए हुए वो खिड़की से बाहर देख रही थी कि उसे एक छोटी बच्ची नज़र आई जो अपने पिता का हाथ थामे सड़क पर चली जा रही  थी। उसे एकदम अपने बाबा की याद हो आई। मैके में सब उसे `बाबा की बिटिया' कहते थे। माँ के गुज़र जाने के बाद उसकी पूरी दुनिया बाबा के चारों तरफ ही  सिमट गई थी। उसके बाबा थे भी तो एकदम शांत, निश्छल, निस्पृह! स्नेहा को सुशील, सुघड़ और संस्कारी बनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। तभी तो मालती देवी की पारखी नज़र ने एक झटके में ही उसे अपनी बहू के रूप में चुन लिया था।
बाबा के साथ बिताये हुए पल, उनकी दी हुई सीखें और समझाईशें; सब उसकी आँखों के सामने किसी फिल्म की भांति चलने लगीं। उसे विदाई के समय बाबा की कही बातें याद आ रहीं थीं कि ससुराल में हमेशा सच्चाई और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभाना और संयम से काम लेना। मुश्किल हालातों में भी विनम्रता का दामन न छोड़ना। ससुराल में बड़े-बुज़ुर्गों के सम्मान का ध्यान रखना और छोटों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार रखना। बाबा की इन बातों को उसने आत्मसात कर लिया था और इसी वजह से वह ससुराल में सब की ज़रूरतों का ध्यान रखती आई थी। पर ये सब करते हुए उसका `स्व' कहाँ और कब पीछे छूट गया उसे अहसास ही नहीं हुआ। ज्यादा समझदार होना भी कई बार आत्मघाती सिद्ध होता है। 
‘स्नेहा, कहाँ हो?’, समीर की आवाज़ ने उसकी विचार श्रृंखला को तोड़कर उसे वर्तमान में ला दिया। ‘आज भी बाबा ही उसे हिम्मत देंगे’, यही सोचते हुए वो कमरे से बाहर निकल आई और समीर को अनदेखा कर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गई। उसके हाव-भाव देखकर समीर सशंकित हो उठा और उसे रोकने के लिए आवाज़ दी लेकिन जब वो नहीं रुकी तो वह भी उसके पीछे-पीछे ऊपर चला आया परंतु दरवाज़े पर ही रुक गया, किसी अनहोनी की आशंका से अंदर जाने का साहस वो नहीं कर सका। ऊपर सभी हल्के मूड में बैठे टीवी देख रहे थे। स्नेहा ने कमरे में घुसते ही बिना किसी लाग-लपेट के मालती देवी से कहा – ‘माँ मैंने फंक्शन की सारी तैयारियां कर दीं हैं, सब सामान भी बाज़ार से ले आयी हूँ, केटरर से भी बात करके आपके कहे अनुसार मेनू तैयार करवा दिया है, बस मेहमानों को फ़ोन करना बाकी है, वो निशा कर सकती है, इसके लिए मुझे दो दिन पहले से छुट्टी लेने की क्या ज़रूरत है, क्यों निशा ठीक है न ?’ 
 नीची नजरें किए, एक झटके में स्नेहा सब कुछ बोल गई। निशा कुछ कहती उसके पहले ही मालती देवी बोल उठी –‘उसे कुछ समझ नहीं आएगा, मुझे कोई गड़बड़ नहीं चाहिए। बस तुम छुट्टी की एप्लीकेशन दे दो।‘ स्नेहा चलकर मालती देवी के पास आ गई और धीमे स्वर में विनम्रता से बोली – ‘माँ, जब मैं नई-नई ब्याह कर आई  थी तब मैं भी अकेले कुछ जिम्मेदारी उठाने में घबराती थी, उस समय आप ही तो कहती थीं, करोगी नहीं तो सीखोगी कैसे? अब ये मेरा फ़र्ज़ है कि मैं निशा को घर के रीति-रिवाज़ और तौर-तरीकों से अवगत कराऊँ ताकि भविष्य में उसे कोई परेशानी न हो। मेरा ऐसा सोचना गलत है क्या?’ स्नेहा इतना सब एक सांस में ही कह गई और बिना एक पल गँवाए झटके से कमरे से निकल गई क्योंकि पहली बार उसने बोलने की हिम्मत दिखाई थी। 
कमरे में उपस्थित घर का हर सदस्य अवाक था। न जाने अब क्या होगा? कुछ पल सन्नाटा बिखरा रहा तभी मालती देवी की आवाज़ आई - ‘अरे तो निशा के साथ बैठकर मेहमानों की लिस्ट तो बना ले ताकि कल जब तू ऑफिस जाए तो ये सबको फ़ोन लगा ले।‘ इतना सुनते ही दरवाज़े पर खड़ी स्नेहा की थमी हुई धड़कने जैसे उछाल मार कर चल पड़ीं, स्नेहा ने समीर की ओर देखा, समीर ने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन स्नेहा ने उसे इशारे से चुप करा दिया क्योंकि बाबा का मुस्कुराता हुआ शांत चेहरा उसकी आँखों में उतर आया था और अपने सिर पर उनके हाथ का स्पर्श उसे स्पष्ट महसूस हो रहा था, स्नेहा इस पल को भरपूर जी लेना चाहती थी। शुक्रिया बाबा! स्नेहा धीमे से बुदबुदायी – ‘हमेशा की तरह इस इम्तिहान में भी अपनी बिटिया को हिम्मत देकर पास कराने के लिए!’
प्राची तिवारी 'छबि'
भोपाल.

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