डॉ. हजारी प्रसाद जी ने कहा था ‘साहित्यकार उस पीयूषवर्षी मेघ के सामान होते हैं जो ज्ञान की अमृतमयी बूंदों से पूरे समाज को आप्लावित कर जाते हैं, जिसमे समाज-कल्याण का भाव अन्तर्निहित होता है', पंक्तियों ने मुझे जीवन का अनमोल मंत्र ही दे दिया था, ऐसे ही साहित्यकारों की कृतियाँ कालजयी बन, अमर हो जाती हैं- वर्ष भर पढ़ी जाने वाली साहित्यिक कृतियों में यूंही अचानक आभासी पटल पर आचार्य देवेन्द्र देव जी के लिखे गीतों ने मेरा ध्यान आकृष्ट किया,जिसका गहरा प्रभाव मन पर पड़ा। मैंने सुना था कि रचना में रचनाकार का व्यक्तित्व समाहित होता है. मैंने पढ़ना प्रारम्भ किया- तो पढ़ती चली गई -एक अद्भुत सम्मोहन, आतंरिक-आध्यात्मिक सुख की अनुभूति। सब कुछ वर्णनातीत था।
साहित्य जगत में ऐसी रचनायें सचमुच कालजयी होती हैं। मैं जब अंतरराष्ट्रीय संस्थं हिंदी साहित्य भारती से जुड़ी तो तो विद्वान लेखक, कवि, कथाकार, उपन्यासकार आदरणीय आचार्य देवेंद्र देव जी को सुनने और पढ़ने का अवसर भी प्राप्त हुआ। लगभग १५ महाकाव्यों के रचियता, उपन्यासों के प्रणेता आचार्य देवेंद्र देव जी का सृजन हिंदी साहित्य की अनमोल धरोहर है। उनके महाकाव्यों में ‘बांग्लात्राण’, ‘राष्ट्र-पुत्र यशवंत’, ‘कैप्टन बाना सिंह’ (सैन्य-वीरों पर), ‘गायत्रेय’ (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य),‘युवमन्यु’ (स्वामी विवेकानंद), ‘ब्रह्मात्मज’ (नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद), ‘हठयोगी नचिकेता’, ‘बलि-पथ’ (डॉ. हेडगेवार), ‘इदं राष्ट्राय’ (गुरु गोलवलकर), ‘अग्नि-ऋचा’ (डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम), ‘लोकनायक’, ‘लौहपुरुष’, ‘शंख महाकाल का’ (पं. श्रीकृष्ण ‘सरल’) और ‘बिरसा मुंडा’ एवं ‘पं.रामप्रसाद बिस्मिल’ (क्रांतिक विभूति) के अतिरिक्त गीतों, गजलों, छंदों, समसामयिक एवं बाल-कविताओं के ढाई दर्जन से अधिक संग्रह, लेख, कहानियाँ, संस्मरण, काव्यानुवाद एवं संस्कृत कविताएँ प्रकाशित हुई हैं।
आचार्य जी देवेन्द्र देव जी साहित्य क्षेत्र में विचारधारा और सांस्कृतिक, नवोनमेष का जयगान करने वाले भारत माता के प्रिय सेवकों में जाने जाते हैं. इसके अतिरिक्त अखिल भारतीय स्तर पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र, महादेवी वर्मा, श्याम नारायण पाण्डेय जैसी साहित्यिक विभूतियों की अध्यक्षता में काव्यपाठ करने का गौरव प्राप्त किया है।देश विदेश के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करते हुए अपनी प्रतिभा, देशभक्ति व विद्वत्ता से देश व समाज को गौरवान्वित भी किया है।।
संस्कार भारती के अखिल भारतीय सह साहित्य संयोजक के रुप में आचार्य श्री को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में हिंदी विश्व को सर्वाधिक पंद्रह महाकाव्य देने वाले रचयिता के रूप में स्थान मिला जिससे पूरा परिवार, संगठन, साहित्यिक मनीषी और शुभचिंतक आदि गौरवान्वित हैं। इनकी विश्व प्रसिद्ध लोकप्रिय कृतियों में बांग्लात्राण’, ‘राष्ट्र-पुत्र यशवंत’, ‘कैप्टन बाना सिंह’ (सैन्य-वीरों पर), ‘गायत्रेय’ (पं. श्रीराम शर्मा आचार्य), ‘युवमन्यु’ (स्वामी विवेकानंद), ‘ब्रह्मात्मज’ (नैमिषपीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद), ‘हठयोगी नचिकेता’, ‘बलि-पथ’ (डॉ. हेडगेवार), ‘इदं राष्ट्राय’ (गुरु गोलवलकर), ‘अग्नि-ऋचा’ (डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम), ‘लोकनायक’, ‘लौहपुरुष’, ‘शंख महाकाल का’ (पं. श्रीकृष्ण ‘सरल’) और ‘बिरसा मुंडा’ एवं ‘पं. रामप्रसाद बिस्मिल’ (क्रांतिक विभूति) के अतिरिक्त गीतों, गजलों, छंदों, समसामयिक एवं बाल-कविताओं के ढाई दर्जन से अधिक संग्रह, लेख, कहानियाँ, संस्मरण, काव्यानुवाद एवं संस्कृत कविताएँ लिखने और उन्हे विशिष्ट मंचों से प्रस्तुत करने का भी गौरव प्राप्त है। हिन्दी साहित्य भारती झारखंड की मीडिया प्रभारी के रुप में अंतरराष्ट्रीय महामंत्री आचार्य देवेन्द्र देव सर को अनेक गोष्ठियो में सुनने का भी अवसर मिला है मुझे और हर बार उनकी विद्वत्ता और रचनात्मक प्रतिभा ने प्रभावित किया है। आभासी दुनिया फेसबुक पर उनकी कविताओं और लेखन के सान्निध्य में भी रही हूं. जिन्हे पढ़ते हुए सुखद आश्चर्य होता है कि लगातार १५ महाकाव्यों की रचना और अनगिनत अनवरत सृजन ने जीवन के कितने वर्षों को मां भारती के बहुमूल्य कोष को भरने में बिताया होगा? जो एक सामान्य लेखक या कवि के लिए असंभव है। मां भारती के वरद पुत्र को मेरा सादर प्रणाम।
आलेख लिखते समय मन में यह संकोच भी था कि उन पंद्रह महाकाव्यों को पढ़ पाना मेरे लिए संभव नहीं है फिर भी उन काव्य पंक्तियों की उत्कृष्टता और उनमें निहित मौलिक मानवीय चेतना मुझे लगातार प्रेरित करती रही कि मैं कुछ लिखूं। मैंने सीमित साधनो में जो भी उपलब्ध हो सका वह पढ़ा और अपनी अभिव्यक्ति के रुप में मां शारदे को अपना नमन प्रेषित कर रही हूं।
सर्वप्रथम दिवेर घाटी के युद्ध नामक महाकाव्य के विषय में जाना जो कि वीर प्रसू महाराणा प्रताप के जीवन का एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इतिहास में वर्णित हल्दी घाटी का युद्ध महाराणा प्रताप की पराजय की कथा लगती है परन्तु दिवेर घाटी का युद्ध एक ऐसी शौर्यगाथा है जिसमें महाराणा प्रताप आतातायियों को पराजित करके युद्ध जीतते हैं और समाज कल्याण कारी राज्य की शासन व्यवस्था का एक अनुपम आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत करते हैं। भारतीय इतिहास में दिवेर घाटी की अधिक चर्चा नहीं हुई. परंतु इस महाकाव्य न्ो महाराणा की.शौर्य कथा के रूप में भारत के गौरव. बलिदान और राष्ट्रभक्ति को एक सशक्त मुखर आवाज जरुर दिया है। `दिवेर घाटी का युद्ध’ महाकाव्य की कुछ काव्य पंक्तियां दृष्टव्य हैं- चौदह सर्गों में रचित अपने इस अनूठे महाकाव्य में आचार्य देवेंद्र देव ने अनेक छन्दों का प्रयोग किया है-
वह उच्चभाल, तलवार, ढाल लेकर त्रिकाल बनकर आया।
राणा घोड़े पर हो सवार था महाकाल बनकर आया।
पैदल से पैदल भिड़े और असवार भिड़े असवारों से।
भालों से गले मिले भाले, तलवार मिलीं तलवारों से।
दूसरा महाकाव्य जो मैं बहुत कुछ पढ़ सकी वह था महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल जी के त्याग व बलिदान पर आधारित एक प्रेरक कथा।
उनकी रचनाओं के भाव संसार में जीवन की अनंत व्यथा कथा का मार्मिक चित्रण भावविभोर कर देता है।मैने आदरणीय देवेंद्र देव सर की कविताए पढी भी हैं और उन पर मंथन भी किया है।कविताएं मन की आंतरिक अनुभूतियों का साकार प्रतिबिंब होती हैं।जहां कोई कृत्रिमता नहीं होती केवल सरल सहज मन की अभिव्यक्ति होती है और वह पाठक के अंतर्मन को छू जाती है.वही सच्ची कविता है।
मेरा यह मानना है कि कविता मानवीय अनुभूतियों की वाहक होती है, भावनाओं से जुड़कर कविता और अधिक संवेदनशील और भी अधिक मर्म स्पर्शी बन जाती है,लेकिन प्रिय बिछोह का दर्द मन को झकझोरता है।अपनी जीवन संगिनी के बिछोह पर लिखी कविताए मर्मस्पर्शी हैं।-
यदि तुझमें अनुरक्ति न होती। प्राणों में यह शक्ति न होती।।
व्यथानुभूति बिना, अंतर की, वाणी में अभिव्यक्ति न होती।।
स्नेह-बिना इन पाषाणों के अभिवादन में भक्ति न होती।।
शब्दों का सुंदर संयोजन और भावप्रवणता उन्हें मानवीय अनुभूतियों के चरम पर ले जाती है।
तुमने अलकें सँवारी उषा-काल में,
बे-समय व्योम में घन सघन बन गये।
बिन्दु जल के छिटककर गिरे भूमिपर,
लोक की दृष्टि में ओस-कण बन गये।
आचार्य जी की कवितायें संवेदित करती हैं, कवि कुशल व्यंग्यकार की भूमिका भी निभाते हैं जब समय संदर्भ सामयिक परिस्थितियों पर बेबाक अभिव्यक्त करना हो तो उनकी लेखनी की धार और भी पैनी और सशक्त हो उठती है। संवेदनाओं पर अपनी गहरी पैठ रखते हैं एक एक शब्द मन के, दरवाजे खोल शीतल वातायन से छन कर आती बयार की तरह कहीं गुदगुदाते हैं,तो कही अधरों पर एक मंद समिति भी छोड़ जाते हैं तो कहीं मानवीय पीड़ा का दर्द रुलाता भी है और झकझोरता भी है। देश की राजनीतिक विद्रूपतर सृजित एक उदाहरण देखिए-
राजनीति में उड़ने वाले ये जितनी भी पत्ते हैं।
सब समाज के सुथरे तन पर उभरे हुए चकत्ते हैं।
इनकी अलबेली फितरत से परिचित है, इस कवि का मन,
मना लिया तो मनकामेश्वर, छेड़ दिया तो छत्ते हैं।
यह सिर्फ कविता की पंक्तियां ही नहीं बल्कि वर्तमान परिवेश की एक सच्ची झलक है जिसे आप देख एवं अनुभव कर सकते हैं। यह एक ऐसे कवि आचार्य देवेंद्र देव की अंतर वेदना भी है जो ३५ वर्ष से कविता की साधना, राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार व संस्कृति के उत्थान को राष्ट्र गौरव की कविताएं लिखकर अपने देश का नाम भारत की सीमाओं से पार पहुंचाने का गौरव प्राप्त कर चुके है
बात यदि सृजन की हो तो सहसा यह प्रश्न उठता है कि आचार्य श्री के लेखन के किस पक्ष की की बात की जाये। सृजन के विशाल संसार को एक छोटे से कलेवर में समेट पाना संभव नहीं लगता। आभासी दुनिया के माध्यम से जो रचनायें मैं पढ़ती आ रही हूं. वही मेरी प्रेरणा बनीं और ऐसे विद्वान श्रेष्ठ पर कुछ लिख पाने का साहस भी मिला। उनकी कविताओं ने मन को छुआ और प्रभावित किया। साहित्य की भाषा में कहें तो एक साधारणीकरण की प्रक्रिया से गुजर कर ही पाठक सहज भाव से अभिव्यक्त कर पाता है। साधारणीकरण का सामान्य अर्थ है लेखक या कवि की भावनायें सहज प्रवाह की तरह पाठक के मन को भी उद्वेलित सकें। उसकी पीडा और वेदना के मर्म को छू सकें।
आदर्शों की बातें करते लोग बहुत
लेकिन, उस पर चलने वाले थोड़े हैं।
सुविधाओं से कहने भर की दूरी है,
दुविधाओं से अब भी नाता जोड़े हैं।
यह एक बहुत ही संवेदनशील प्रेरक भाव बोध से भरी हुई रचना ह। जीवन हो या समाज यहां नैतिकता और आदर्शो की दुहाई सभी देते हैं परंतु नीति के मार्ग पर चलना कभी सरल महीं होता किसी के लिए। स्वास्थ्य सुख सुविधा की लालसा में नैतिकता वहीं दम तोड देती है. आदर्श कहीं खो जाते हैं। उनकी कविताएँ एक नैतिक शास्त्र की खुली पाठशाला सी लगती हैं जहां हम बहुत कुछ सीख पाते हैं. जीवन के सुखद निर्वाह के लिए जीवन संदेश ग्रहण करते हैं।
तपोनिष्ठ जीवन हो इतना तेजस्वी,
सम्मुख पड़कर छद्म मोम से गल जाएँ।
यह काम केवल कविता ही कर सकती है। वही मानव मन की संजीवनी है और प्राणवायु भी। कविता की भाषा सौम्य सहज और सुबोध है। छंद.अलंकार कहीं भी बोझिल नहीं करते काव्य को.जैसे सरस्वती साक्षत
सुरसरि बन प्रवाहिता हैं काव्य सृजन में।छंदों का सौदर्य दृष्टव्य है-
आवाज दे रहा महाकाल' गीत-संग्रह से उद्धृत पंक्तिया देख सकते हैं-
तपोबल से असुर-राज बलि ने लिया था
छीन, जब इन्द्र के समग्र अधिकार को।
दृढ़ता से कर आधिपत्य तीनों लोकों पर,
हो गया प्रमत्त, भूल लोक-व्ववहार को।
विप्र-रूप कर तब्ा उसको वचनबद्ध,
पहुंँचाया आपने सुतल-अभिसार को।
श्रद्धाभावना से बार-बार करते हैं `देव’
वन्दन-प्रणाम उसी वामनावतार को।।
वे स्वयं कहते हैं- कविता वाणी का तप है, चिन्तनों का नवनीत है, शब्दों की शक्ति और शक्ति का औद्दाम्य है। यह भावों की भक्ति और भावनाओं का प्राकाम्य है। कविता आस्थाओं का श्रद्धा कलश हैं और अनुभवों पर आधारित अभिव्यक्ति का प्रतिसाद है। यह जन्म-जन्मों की साधनाओं का फल है और इन सबसे बढ़कर कविता बलिदानों का नीराजन है। '
३५ वर्ष से अधिक काव्य साधना और राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार व संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित रहकर तथा राष्ट्र गौरव की कविताएं लिखकर अपने देश का नाम भारत की सीमाओं से पार पहुंचाने का गौरव प्राप्त कर चुके हैं। ज्योति, युग निर्माण योजना व बरेली, लखनऊ, दिल्ली तथा पूरे देश से प्रकाशित हजारों समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में उनकी रचना प्रकाशित हुई और उनके लिखे गीत संगीत के साथ संग्रहित किए गए। आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, दिल्ली आगरा, मथुरा, इलाहाबाद आदि केंद्रों से उनकी कविताएं प्रसारित की जाती रही हैं। देशगान के कैसेट अमेरिका तक पहुंचे जिस पर अमेरिका में आचार्य श्री देव को विश्व के ३०० पदों में से एक शीर्षक गीत श्री देव का ही स्वीकार किया गया। पानीपत साहित्य अकादमी हरियाणा ने वर्ष १९९८ में आचार्य की मानद उपाधि से अलंकृत किया। आचार्य जी साहित्य क्षेत्र में विचारधारा और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का उद्घोष रूप में जाने जाते हैं
आचार्य देवेन्द्र देव द्वारा अब तक रचित महाकाव्यों की श्रंखला में सर्वप्रथम वर्ष १९७१ के भारत पाक युद्ध में भारतीय शौर्य पर आधारित ‘बांग्ला त्राण’ महाकाव्य, गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा आचार्य के जीवन पर आधारित ‘गायत्रेय ‘महाकाव्य, युगनायक स्वामी विवेकानंद के जीवन पर आधारित ‘युवमन्यु’ महाकव्य,योद्धा बाबा जशवंत सिंह रावत के बलिदान पर आधारित ‘राष्ट्रपुत्र- यशवंत’ महाकाव्य, उपनिषदीय चरित्र नचिकेता के जीवन पर आधारित ‘हठयोगी नचिकेता’ महाकाव्य, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के आदि सरसंघचालक डॉ हेडगेवार के जीवन पर आधारित ‘बलिपथ’ महाकाव्य, द्वितीय सरसंघचालक माधव राव गोलवलकर के जीवन पर आधारित ‘इदं राष्ट्राय’ महाकाव्य , परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह के शौर्य पर आधारित ‘कैप्टन बाना सिंह’ महाकाव्य, पुरोधा पंडित बिस्मिल के क्रांतिक जीवन पर आधारित ‘पंडित राम प्रसाद बिस्मिल’ महाकाव्य, मिसाईल मैन डॉ अब्दुल कलाम के जीवन पर आधारित ‘अग्नि-ऋचा’ महाकाव्य, महाकाव्यकार पंडित श्री कृष्ण सरल के सृजनधर्मी जीवन पर आधारित ‘शंख महाकाल का’ महाकाव्य, सम्पूर्ण क्रांति के पुरोधा बाबू जय प्रकाश नारायण के जीवन पर आधारित ‘लोकनायक’ महाकाव्य, झारखण्ड के आदिवासी क्रांतिवीर बिरसा मुंडा के बलिदानी शौर्य पर आधारित ‘बिरसा मुंडा’ महाकाव्य, नैमिष व्यास पीठाधीश्वर स्वामी नारदानंद सरस्वती के जीवन पर आधारित ‘ब्रह्मात्मज ‘महाकव्य और लौहपुरुष सरदार बल्लभभाई पटेल के पराक्रमी जीवन पर आधारित ‘लौहपुरुष’ महाकाव्य को लिखने का सौभाग्य माता शारदा की कृपा से प्राप्त हुआ है।
आचार्य देवेन्द्र देव ने ग्यारवें विश्व हिंदी समेलन मारिसस के कवि सम्मेलन में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अंतर्गत सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् द्वारा राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में भाग लिया एवंआचार्य देव को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी सहित लगभग ४ दर्जन से अधिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया गया।एक विलक्षण साहित्यकार के विषय में उनके पाठकों को. ये सारी जानकारियाँ देना जरुरी लगा।परंतु उनकी सृजित कविताओं ने बहुत कुछ सोचने को विवश किया है जिन्हें पढते हुए कभी पलकें धी भींगी हैं। सरल हास्य भी है और अंतर का उल्लास भी। मानवता की पीडा है तो दानवता को समूल विनष्ट करने का अपूर्व साहस भी। आचार्य देवेन्द्र देव जैसे कृतिकार. रचनाकार बहुत कम हैं। जिनका उदय हर काल में नहीं होता। मैं बहुत कुछ लिखना चाहती थी पर उनके लेखन के विशाल आकाश से बस कुछ तारिकायें ही तोड़कर ला सकी हूं। असीम अनंत मंगलकामनाए! आप यशस्वी हों.. यह सृजन यात्रा चलती रहे अविराम, अविचल, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं !
पद्मा मिश्रा