चस्का मंच संचालन का !

संचालक बनने के लिए आवश्यक जानकारियाँ गूगल बाबा से जुटाईं. सोशल मीडिया की खिड़कियों में ताकाझाँकी कर कुछ ज्ञान लिया . आजकल ज्ञान लेना भी आसान काम नहीं है . और वह भी मुफ्त में ! खैर, कुछ नुस्खे नोट किए और करत-करत अभ्यास के एक दिन वह अपने यूट्यूब चैनल पर 24 X 7 मंच संचालक हो गए .

Apr 6, 2024 - 15:24
Apr 6, 2024 - 15:25
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चस्का मंच संचालन का !
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मस्का लगाने में माहिर हमारे पड़ोसी शर्मा जी को अचानक मंच संचालक बनने का चस्का लगा . मंच पर आपकी धाक जमी रहती है . मंचस्थ लोगों को धुकधुकी लगी रहती है कि ,' मेरा नंबर कब आएगा . संचालक मनमर्ज़ी से किसी की भी बारी ऊपर-नीचे कर दे ! फिर मुख्य अतिथि और अध्यक्ष से निकटता का लाभ भी मिलता है . सुंदर कवयित्रियों से चुहलबाज़ी के अवसर दिल को ठंडक भी देते हैं . बस इन्हीं कारणों से उन्होंने मंच संचालक बनने का निर्णय लिया .

संचालक बनने के लिए आवश्यक जानकारियाँ गूगल बाबा से जुटाईं. सोशल मीडिया की खिड़कियों में ताकाझाँकी कर कुछ ज्ञान लिया . आजकल ज्ञान लेना भी आसान काम नहीं है . और वह भी मुफ्त में ! खैर, कुछ नुस्खे नोट किए और करत-करत अभ्यास के एक दिन वह अपने यूट्यूब चैनल पर 24 X 7 मंच संचालक हो गए . यह शौक कब लत में परिवर्तित हो गया, पत्ता ही नहीं चला . पर घरवालों को अलसुबह से देर रात तक इसका अहसास होने लगा . शर्मा जी घर के काम छोड़कर हर समय संचालक की भूमिका निभाने लगे . सुबह उठकर कुल्ला करने, ठंडे पानी से आँखें छबकने के साथ उनका संचालन शुरू हो जाता था.

आज अल सुबह उन्होंने लोकप्रिय कवि आदरेय अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' की पंक्तियों के साथ शुरुआत की –

"प्रात अटन से जो सजीवता है धमनी में आती / काम काज की विविध असुविधा की बहु बाधा, एक प्रात उठने से ही कम हो जाती ."

आइए इस शुभ वेला में मुखातिब होते हैं हमारी पंडिताइन से, जो हाथ में मंजन लिए दांत मांजने के लिए कुए के पास तैयार खड़ीं हैं . कभी वो कुए को तो कभी कुआ उनको देख रहा है .'

' हे राम ! हो गए शुरू . अजी आप अभी घर पर हो ,किसी संगोष्ठी में नहीं .' शर्मा जी एकदम शरमा गए .

पौ फटने के बाद घर के सभी सदस्य कलेवा करने के लिए आँगन में बैठे थे. तभी शर्मा जी उवाचे ," खुदा की रहमत सब पर बरसे / दो वक़्त रोटी के लिए कोई नहीं तरसे //" किसी कार्यक्रम के शुरू होने से पहले, आयोजकों द्वारा खाली सभागार में जिस तरह दर्शकों का इंतजार किया जाता है ,ठीक वैसे ही घर के सभी सदस्य खाली पेट कलेवा करने का इंतजार कर रहे हैं . ख़ाली सभागार और खाली पेट का सुख से सब दुःख दूर हो जाते हैं .

पण्डिताइन, ' हे प्रभु, फिर से ?' यहाँ लोग नाश्ता करने के इंतजार में हैं और ये सबके मूड का सत्यानाश करने पर उतारू हो रहे हैं .' अब आदत से मजबूर शर्मा जी हर कहीं संचालन शुरू कर देते . और जब लोग उन्हें झकझोरते तो वह शरमा जाते . उनका संचालन और शर्माना बदस्तूर जारी है . किसी पार्क में चाहे सुबह की सैर हो या राशन की दुकान से परचून लाना पड़े . अब चस्का लगा हुआ था . मजबूर ये हालात इधर ही है ,इधर ही ! दिल है कि मानता नहीं .

उधर , शर्मा जी इन दिनों वर्क फ्रॉम होम में भी उलझ रहे थे . संचालन के अवसर वह यहाँ भी ढूढ लेते हैं . हाल ही में जूम पर बड़े साहब की मीटिंग थी. बड़े साहब को चेहरा दिखाने के लिए सब झूम रहे थे . साहब ने आभासी माध्यम से बैठक में किया प्रवेश . शर्मा जी का संचालन फिर शुरू ,' दफ्तर के कर्णधार ,जिनके होते हैं सदा उच्च विचार . उनके प्रवेश मात्र से हो जाता है दफ्तर में प्रकाश . ऐसे हैं महाशिरोमणि,कर्म और कर्मचारी प्रिय श्रीमान उदय प्रकाश .' उधर से बड़े बाबू चीखे,' अरे शर्मा, ये ऑफिस की मीटिंग है, कोई साहित्यिक गोष्ठी नहीं .' शरमा जी फिर से शरमा गए . अब तो यह उनकी नित्य क्रिया- सी बन गई है !

रविवार को अचानक शर्मा जी के एक रिश्तेदार दुनिया से रुखसत हो गए . अंतिम संस्कार के लिए श्मशानघाट पर चिता सज चुकी थी . ग़मगीन माहौल में अचानक शर्मा जी के मुंह से निकलने लगा ,' क्या लेकर आये थे ,क्या लेकर जाओगे /खाली हाथ आए थे,खाली हाथ जाओगे . ये दुनिया,ये महफ़िल तेरे काम की नहीं . .... मैं बड़े दुःख के साथ आमंत्रित करता हूँ काका जी के सुयोग्य बड़े पुत्र चिरंजीव चिंतन को, कि वो आएं और चिता में अग्नि प्रज्वलित कर मृतात्मा को अंतिम विदाई दें . 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना !'

शर्मा जी की इस बेहूदा हरकत को काका जी के अन्य पुत्रों ने बहुत ही अन्यथा लेते हुए गहरी नाराज़गी प्रकट की . आसपास मंडराती आत्मा की भी इच्छा हुई कि कुछ पल के लिए पुनः मृतात्मा में प्रवेश कर ले ताकि काका जी जीवित होकर एक थप्पड़ शर्मा के गाल पर रसीद कर, पुनः मर जाएं ! उधर, नाराज़ फूफा जी ने पहली बार शर्मा जी को गांधीगिरी करते हुए; श्मशानघाट से बाहर का रास्ता दिखा दिया .

बड़े बेआबरू होकर अपने घर पहुंचे शर्मा जी के चेहरे के भाव देखकर, पंडिताइन ने तंज़ किया ,' श्मशान में भी संचालन ? बाज आए ऐसे संचालन से .'

प्रभात गोस्वामी

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