दुर्गा भाभी -एक सशक्त स्वतंत्रता सेनानी, विस्मृत है इतिहास में जिनकी कहानी

झांसी की रानी, अहिल्या बाई और कई दमदार व्यक्तित्व की महिलाओं की जाबांजी का भारतीय इतिहास गवाह है, इन महिलाओं में एक नाम भी शामिल हैं, वह हैं दुर्गावती का,, दुर्गावती देवी को आप दुर्गा भाभी के नाम से जानते होंगे

Nov 7, 2023 - 17:00
Nov 19, 2023 - 20:13
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दुर्गा भाभी -एक सशक्त स्वतंत्रता सेनानी, विस्मृत है इतिहास में जिनकी कहानी
FREEDOM FIGHTER DURGA BHABHI

जो लुटा गये प्राणों का बलिदानी सावन,
उन अमर शहीदों की गाथाएं याद करें,
एक दिन तो अपनी आजादी के नाम करें!!!


आज देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है,जिसकी महाआहुति में हजारों आज्ञात से रहे स्वतंत्रता सेनानियों के प्राणों की समिधा दी गई, जो हंसते हंसते स्वतंत्रता की बलिवेदी पर कुर्बान हो ग्रे, आज उन्हें भी शत् शत् नमन अर्पित करती हूं, नतमस्तक है यह देश,
स्वतंत्रता दिवस इस बार अनेक चुनौतियां लेकर आया है जिसके साथ उम्मीदों का लंबा कारवां भी है,यह देश की अस्मिता, गौरव और सम्मान का एक बहुमूल्य उत्सव भी है जिसकी आत्मा में समाहित है हमारे देश की तमाम आज्ञा वीरांगनाएं जिन्होंने स्वतंत्रता के संघर्ष को राष्ट्रीय स्तर पर एक नया मोड़ दिया, था,उन महिलाओं ने आजादी के सिपाहियों के साथ कदम से कदम मिलाकर अपना बलिदान दिया , और स्वतंत्र भारत के स्वप्न को साकार किया था ,,देश को पूर्ण स्वराज मिला, लेकिन वो महिलाएं जो आजादी की लड़ाई में कहीं पीछे छूट गई अपने उत्सर्ग का दाय भी न मिला जिन्हें उन महान देशभक्त महिलाओं के त्याग व बलिदान, संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकता,
आज आजादी के 75 साल बाद भी,,ये विस्मृत कर दी गई वीरांगनाएं हमारी शत् शत् नमन और कृतज्ञ प्रणाम की अधिकारी है,,
मैं वीरांगना, स्वतंत्रता सेनानी दुर्गा भाभी के असीम त्याग और बलिदान को याद करते हुए उन्हें विनम्र प्रणाम अर्पित कर रही हूं,
भारत की आजादी के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना अंग्रेजो से लड़ने वालों में महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का भी विशेष महत्व है, देश की आजादी की लड़ाई के लिए महिलाओं ने खुद को बलिदान कर दिया था, झांसी की रानी, अहिल्या बाई और कई दमदार व्यक्तित्व की महिलाओं की जाबांजी का भारतीय इतिहास गवाह है, इन महिलाओं में एक नाम भी शामिल हैं, वह हैं दुर्गावती का, दुर्गावती देवी को आप दुर्गा भाभी के नाम से जानते होंगे, दुर्गा भाभी भले ही भगत सिंह, सुख देव और राजगुरू की तरह फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन कंधें से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं, स्वतंत्रता सेनानियों के हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनी, दुर्गा भाभी बम बनाती और अंग्रेजो से लोहा लेने जा रहे देश के सपूतों को टीका लगाकर विजय पथ पर भी भेजती थीं, निडर, निर्भय, महान देशभक्ति की प्रतिमा दुर्गा भाभी का आजादी की लड़ाई में विशिष्ट योगदान रहा है,
दुर्गा भाभी को भारत की 'आयरन लेडी' भी कहा जाता है,, इलाहाबाद के आजाद पार्क में जिस पिस्तौल से चंद्र शेखर आजाद ने खुद को गोली मारकर बलिदान दिया था, वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी,, इतना ही नहीं दुर्गा भाभी एक बार भगत सिंह के साथ उनकी पत्नी बन कर अंग्रेजो से बचाने के लिए उनकी योजना का हिस्सा बनी थीं, लाला लाजपत राय की मौत के बाद दुर्गा भाभी इतना गुस्से में थीं कि उन्होंने खुद स्काॅर्ट को जान से मारने की इच्छा जताई थी,
दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती देवी था, दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के शहजादपुर गांव में हुआ था, दुर्गावती भारत की आजादी और ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर खदेड़ने के लिए सशस्त्र क्रांति में सक्रिय भागीदार थीं,जब वह भगत सिंह और उनके दल में शामिल हुईं तो उन्हें आजादी के लिए लड़ने का मौका भी मिल गया,
दुर्गावती का विवाह 11 साल की उम्र में हुआ था, उनके पति का नाम भगवती चरण वोहरा था, जो कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य थे, इस एसोसिएशन के अन्य सदस्य उन्हें दुर्गा भाभी कहते थे। इसीलिए वह इसी नाम से प्रसिद्ध हो गईं, 16 नंवबर 1926 को लाहौर में करतार सिंह सराभी की शहादत की 11वीं वर्षगांठ मनाने को लेकर दुर्गा भाभी चर्चा में आईं थीं,, और सक्रिय भागीदारी की थी, बिना किसी स्वार्थ,लालसा या यश की कामना से चुपचाप इस स्वातंत्र्य यज्ञ में त्याग और संघर्ष की आहुतियां डालती रहती थी,
दुर्गा भाभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रमुख सहयोगी थीं, लाला लाजपत राय की मौत के बाद भगत सिंह ने साॅन्डर्स की हत्या की योजना बनाई थी, तब साॅन्डर्स और स्काॅर्ट से बदला लेने के लिए आतुर दुर्गा भाभी ने ही भगत सिंह और उनके साथियों को टीका लगाकर रवाना किया था, इस हत्या के बाद अंग्रेज उन्हें गिरफ्तार करने के लिए उनकी तलाश कर रहे थे,तब  भाभी ने उन्हें बचाने के लिए भगत सिंह के साथ भेष बदलकर शहर छोड़ दिया था,, इतना ही नहीं सन् 1929 में जब भगत सिंह ने विधानसभा में बम फेंकने के बाद आत्मसमर्पण किया था उसके बाद दुर्गा भाभी ने लॉर्ड हैली की हत्या करने का प्रयास किया था,,हालांकि वह बच गया था। दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और उनके साथियों की जमानत के लिए एक बार अपने गहने तक बेच दिए थे,,वह युवा कोमल हृदया नारी अब क्रांति की राह पर चल पड़ी थी,इस शूलो भरी राह पर निर्भय हो कदम बढ़ाती, आंखों में स्वतंत्र भारत का सपना संजोए वह चलती जा रही थी,

9अकटूबर को दुर्गा भाभी ने गवर्नर हैली पर गोली चलाई तो वह तो बच गया परंतु एक अन्य सैन्य अधिकारी घायल हो गया, और परिणाम स्वरूप उन्हें और यशपाल को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया
इधर 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में ही जतीन्द्रनाथ दास यानी जतिन दा की मौत हो गई तो उनकी लाहौर से लेकर कोलकाता तक ट्रेन में और कोलकाता में भी अंतिम यात्रा की अगुवाई दुर्गा भाभी ने ही की  थी, , उनके पति भगवती चरण वोहरा ने लार्ड इरविन की ट्रेन पर बम फेंकने के बाद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव समेत सभी क्रांतिकारियों को छुड़ाने की योजना बनाई और इसके लिए वह रावी नदी के तट पर लाहौर में बम का परीक्षण कर रहे थे तभी  28मई,1930 का दिन था कि अचानक बम फट गया और भगवतीचरण बोहरा की मौत हो गई,,,दुर्गा भाभी को बड़ा झटका लगा, लेकिन वह जल्द ही उबर गईं और देश की आज़ादी को ही अपने जीवन का आखिरी लक्ष्य मान लिया, 

एक-एक करके जब सारे क्रांतिकारी इस दुनिया में नहीं रहे तो दुर्गा भाभी असहाय और हताश हो गई,,उनका बेटा भी बड़ा हो रहा था और पुलिस भी उन्हें बार-बार परेशान कर रही थी,, अतः लाहौर से उन्हें निष्कासित कर दिया गया,,  वह 1935 में गाजियाबाद चल आईं, जहां उन्होंने एक स्कूल में अध्यापिका की नौकरी कर ली,, दो साल के लिए कांग्रेस के साथ भी काम किया, लेकिन फिर छोड़ दिया, फिर उन्होंने मद्रास (चेन्नई) जाकर मांटेसरी सिस्टम की ट्रेनिंग ली और फिर लखनऊ में कैंट रोड पर एक मांटेसरी स्कूल खोला,, और शुरू में जिसमें सिर्फ पांच बच्चे थे,, आज़ादी के बाद उन्होंने सत्ता और नेताओं से काफ़ी दूरी बना ली,,1956 में जब जवाहरलाल नेहरू को उनके बारे में पता चला तो लखनऊ में उनके स्कूल में एक बार मिलने आए,, नेहरू जी ने उनकी मदद करने की इच्छा जताई थी, कहा जाता है कि दुर्गा भाभी ने विनम्रता से मना कर दिया था।,दुर्गा भाभी को मांटेसरी स्कूलिंग सिस्टम के शुरुआती लोगों में गिना जाता है,

 चौदह अक्टूबर 1999मे वो इस संसार को विदा कह गयी, जब गाजियाबाद के एक कमरे में उनकी मौत हो गई, तब वह 92 साल की थीं, ये शायद उनके पति के विचारों का ही उन पर प्रभाव था कि पहाड़ जैसी जिंदगी अकेले ही और इतने साहस के साथ गुजार दी और ना जाने कितनों को साहस से जीने की प्रेरणा दी,, दुर्गा भाभी ने देश के लिए, उसकी आज़ादी के लिए अपने पति, परिवार, बच्चा और एक खुशहाल जीवन सब कुछ दांव पर लगा दिया, लेकिन आज़ादी के बाद जिस तरह से उन्होंने गुमनामी की चादर ओढ़ी और खुद को बच्चों की एजुकेशन तक सीमित कर लिया, वह वाकई हैरतअंगेज था। शायद ये उनके सपनों का भारत नहीं था, जैसा उन्होंने कभी कल्पना की थी।

लेकिन चुपचाप,मौन इस अंतिम यात्रा पर चलती इस महान मुसाफिर को विदा करने के लिए कोई संवेदनशील ह्रदय साथ नहीं था, केवल कुछ समाचार पत्रों में उनके निधन की सूचना प्रकाशित हुई,,, हमारे देश में जहां शहीदों की चिताओं पर नमन करते हुए मेले लगने चाहिए थे,, उनकी स्मृतियों को संरक्षित करना  था, वहां राजनीतिक गतिविधियों तो होती है , दलों की स्वार्थ परता शहीदों को भी जाति वर्ग धर्म के दायरों में बांट कर खुश हो लेती है, वहां उन अनाम शहीदों के नाम,, एक दिया भी नहीं जलाया जाता,,,,
आज स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद भी इतिहास उनके त्याग, बलिदान और संघर्ष के विषय में मौन है,जो सर्वोच्च स्थान उन्हें मिलना चाहिए था, नहीं मिला, किसी को उनकी याद नहीं रही, यहां तक कि उनके नाम पर कोई स्मारक या मूर्ति भी नहीं मिलती,,शासन, सत्ता और सरकार की उपेक्षा तो मिली ही इस देश का जन-मन भी उन्हें भूल गया,
आज कृतज्ञ, एवं नमः आंखों से अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करती हूं, शत् शत् नमन !

पद्मा मिश्रा, जमशेदपुर, झारखंड

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