ग़ज़ल

ये ज़िंदगी तुझसे कितना दूर जाएं हम कहीं मंज़िलों का पता न भूल जाएं हम ये ज़िंदगी सारे रास्ते बंद किए बैठी है कब तक दीवारों से सिर टकराएं हम ये ज़िंदगी कोई तो दरवाजा खोल  आखिर कहीं से तो गुजर जाएं हम

Jun 10, 2025 - 17:40
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ग़ज़ल
Ghazal

ये ज़िंदगी तुझसे कितना दूर जाएं हम
कहीं मंज़िलों का पता न भूल जाएं हम

ये ज़िंदगी सारे रास्ते बंद किए बैठी है
कब तक दीवारों से सिर टकराएं हम

ये ज़िंदगी कोई तो दरवाजा खोल 
आखिर कहीं से तो गुजर जाएं हम

रुके नहीं, थके नहीं, हारे नहीं अभी
क्यों कर मुश्किलों से डर जाएं हम

ज़िंदगी संघर्ष के सिवा कुछ भी नहीं
तो संघर्ष से फिर क्यों घबराएं हम

एक उम्र गुजार दी है तेरे इंतज़ार में
इसी आस में कहीं मर न जाएं हम

अब तो आ गए हैं तेरे आग़ोश में हम
दुआ करो, अब होश में न आएं हम

उम्मीदें धुआँ-धुआँ हुई जाती हैं अब 
ज़िंदगी इस गर्द में खो न जाएं हम

ज़िंदगी यह देर है या कि अंधेर है ये
इस इंतज़ार में बिखर न जाएं हम

भूपेंद्र पाल 
हिमाचल प्रदेश

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