गज़ल

Mar 15, 2024 - 13:52
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नफरतों के ठाठ को तोड़ना चाहता हूं,

प्रेम रूपी चादर को ओढ़ना चाहता हूं,

तुमको नफ़रत है तो तुम नफ़रत करो,

मैं तो तुम्हें प्रेम में ही देखना चाहता हूं।

दु:खी हो जाता मन नफ़रत पालने से,

नफ़रत की गांठों को खोलना चाहता हूं,

नफ़रत से होता केवल खुद का ही घाटा,

मैं व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ना चाहता हूं।

मत पालिए नफ़रत इसके ख्याल बुरे है,

नफ़रत के ख्यालों को निचोड़ना चाहता हूं।

           आदित्य यादव उर्फ़"

          कुमार आदित्य यदुवंशी" ✍️

 

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