होली में...हुड़दंगी साथी
सभी साथी मिलकर जोगीरा सा रा रा रा .... गाकर होली का माहौल बनाते और एक दूसरे को रंग,गुलाल लगाते। फिर थोड़ी देर बाद नीले, हरे, लाल स्टैंप पैड पर बैंक की रबर स्टैंप लगाकर साथियों के कपड़ों पर होली खेली जाती थी। बगीचों में पौधों को पानी देने वाले नल में मोटा पाइप लगाकर बारी-बारी से सबको भिगोया जाता था।

यूँ तो बैंकों में धुलेंडी को सार्वजनिक अवकाश रहता है, पर रंग पंचमी के दिन बैंक लेन-देन के लिए खुले रहते हैं। ब्रजभूमि, मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में रंगपंचमी को रंग का उत्सव मनाया जाता है। मालवा प्रदेश में इस दिन गेर निकाली जाती है। गेर के जुलूस में बड़े-बड़े टैंकों में रंगीन पानी भरकर जुलूस के तमाम रास्ते में लोगों पर डाला जाता है।
हमारी शाखा में भी रंग पंचमी के दिन कुछ साथी ग्राहकों पर सुबह ही रंग-गुलाल लगा देते थे। ताकि अति आवश्यक होने पर ही ग्राहक बैंक आएँ। दोपहर २:०० बजे तक का समय शेरो-शायरी, चुटकुले,गाने सुनने-सुनाने में निकल जाता था। सभी साथी मिलकर जोगीरा सा रा रा रा .... गाकर होली का माहौल बनाते और एक दूसरे को रंग,गुलाल लगाते। फिर थोड़ी देर बाद नीले, हरे, लाल स्टैंप पैड पर बैंक की रबर स्टैंप लगाकर साथियों के कपड़ों पर होली खेली जाती थी। बगीचों में पौधों को पानी देने वाले नल में मोटा पाइप लगाकर बारी-बारी से सबको भिगोया जाता था।
इसी बीच में कैंटीन में भांग घोटी जाती और फिर सबको ठंडाई और पकोड़े में भांग मिलाकर दी जाती थी। पिछले वर्ष की बात है, एक साथी ने ठंडाई पीकर जो हँसना शुरू किया, तो २ घंटे तक हँसते ही रहे। अगले दिन जब शाखा में आए तो उनका जबड़ा और मुंह लगातार हंसते रहने से बुरी तरह दुख रहा था। दूसरे साथी को घर जाते समय कोई भिखारी दिख गया और वह हथेली पसार-पसार कर `देने वाला श्री भगवान' बोलते-बोलते ही घर पहुँचे। उनकी दशा देखकर उनकी पत्नी और बच्चे भी पेट पकड़-पकड़ कर हँसते रहे थे। धार्मिक प्रवृत्ति के तिवारी जी पिछली कई रंगपंचमी पर हमेशा छुट्टी ले लेते थे, पर इस बार छुट्टी नहीं ली। जैसे ही साथी रंग लगाने के लिए उनकी ओर बढ़े उन्होंने कहा- ‘खबरदार! जो भी मुझे रंग लगाने की कोशिश करेगा उसके टारगेट पूरे नहीं होंगे।’ सहसा सभी के रंग से बढ़े हुए हाथ एकदम से थम गए। भला, खुद के व्हाट्सएप स्टेटस पर भी बैंक की स्कीम लगाने वाले कर्मचारी अब रंग कैसे लगा सकते थे?
हमने बैंक तीन माह पहले ही ज्वाइन किया था। प्रोबेशन पीरियड था इसलिए अवकाश नहीं ले सकते थे। शहर में हुरियारों की गेर से खुद को जैसे-तैसे बचते-बचाते हुए बैंक पहुंचे। वापसी में होली से बचने के लिए हमने ठीक ३:०० बजे बैंक छोड़ दिया और विजयी मुद्रा में घर पहुंचे। घर पर गरमा-गरम खाना खाया। नींद तो आनी ही थी। हम मोटी सी चादर ओढ़कर सो गए। क़रीब २ घंटे बाद जब उठे, तो देखा कि हाथ, मुंह, तकिया, चादर, बाल सबके सब हरे, नीले, लाल थे। अगले दिन बैंक जाने पर पता चला कि जब हम कुछ साथी बैंक का कार्य करने में तल्लीन थे तब किसी ने शरारत से बालों में चुपके से सूखा रंग बुरक दिया था। जो घर पहुँचने के बाद पसीने से भीगकर अपना असर दिखा गया। सहकर्मी अब अगली रंग पंचमी के लिए नए तरीके ढूंढ़ रहे हैं और हम इन हुड़दंगी साथियों की नई तरकीबों से बचने के उपाय।
श्रद्धा जलज घाटे
रतलाम ( म. प्र. )
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