कटहल
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राम प्रसाद जी का परिवार बनारस शहर के प्रसिद्ध रामघाट पर गंगा जी के किनारे स्थित पक्का महाल सिंधिया हाउस के पुरानी हवेली के दो कमरों में किराए पर रहते थे।उनके परिवार में पत्नी बेटा ,बहू तथा छोटा नाती कुल पांच लोगों का परिवार था।उस समय लोगों में बहुत एकता,प्रेम, भाईचारा व अपनापन हुआ करता था।पूरा ही मुहल्ला एक हुआ करता था। मतलब यह की मुहल्ले की बेटी सबकी ही बेटी जैसी होती थी और मुहल्ले की बहू सबकी बहू मानी जाती थी। राम प्रसाद की बहू भी हवेली में रहने वाले सभी लोगों के लिए बहू समान थी और उनकी बहू रत्ना भी सबको वैसा ही आदर देती जैसा वह अपने सास और ससुर का करती थी। वह बहुत ही अच्छी थी सूरत से भी और सीरत से भी।
रत्ना के दो बेटे थे ।बड़ा वाला अपने ननिहाल में रहकर पढ़ाई कर रहा था तथा छोटा बेटा उसके साथ ही रहता था।वह वहां के एक प्रसिद्ध जाने-माने विद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ रहा था। विद्यालय आने जाने के लिए बस की व्यवस्था थी। बस उनके घर से कुछ दूरी पर
उतारती थी जहां से चार पांच बच्चे मिलकर गलियों को पार करते अपने आप अपने-अपने घर आ जाते थे।
बनारस में घाट के किनारे किनारे करीब एक हज़ार सालों से रजवाड़े खानदानों की कई हवेलियां और धर्मशालाएं बनी हुई हैं जैसे कि भोसले हाउस, सिंह हाउस, होल्कर हॉउस इस तरह और आज भी बड़ी बड़ी धर्मशालाएं हैं ।इन धर्मशालाओं में तरह-तरह के फलों के पेड़ हैं और पानी की भी व्यवस्था है। यहां रहने की
भी अच्छी व्यवस्था है।उन्ही में से एक धर्मशाला पड़ती थी जिसका नाम था अहिल्याबाई होल्कर हाउस और धर्म शाला। इसमें ठंडे पानी की भी व्यवस्था थी। बच्चे बस से उतरकर पहले ठंडा पानी पीते फिर गलियों में से होते हुए अपने घर
चले जाते थे।
एक दिन बच्चे पानी पी रहे थे कि उनमें से एक की नजर धर्मशाला में लगे कटहल के
पेड़ पर पड़ी। कटहल के पेड़ में उसके तने में नीचे जमीन तक कटहल ही कटहल लदे पड़े थे। बालक और बानर दोनों एक जैसे कहे गये हैं यानी दोनों ही चंचलता में समान होते हैं।
एक बच्चे ने कहा,"सामने देखो कटहल के पेड़
पर कितने सारे कटहल लगे हुए हैं।"
"अरे हां जमीन तक लदे पड़े हैं चलो तोड़ते है
घर ले चलेंगे । यह देखकर मां बहुत खुश होंगी।"
सभी बच्चों ने एक एक कटहल तोड़कर
अपने अपने बैग में रख लिया और सब घर चले गए। उन्हीं पांच बच्चों में रत्ना का बेटा अंकुश
भी था। वैसे तो उसके स्कूल से आने के बाद
रत्ना रोज उसका बैग देखती थी कि अभी वह बच्चा है, उसके बैग में गलती से भी किसी की
कोई वस्तु तो नहीं आ गई। पर आज तो इसका
उल्टा हुआ ।अंकुश ने अपने आप बैग मां के
सामने कर दिया,"मम्मी देखो आज मैं क्या ले आया हूं?"यह कहते-कहते उसने कटहल मां के
सामने कर दिया।
कटहल देखकर मां आवाक रह गई। उसने
पूछा, "बेटा कहां मिला यह ?"
बच्चे ने सबकुछ ज्यों का त्यों बता दिया।
रत्ना ने उस समय बच्चे को कुछ नहीं कहा। उसने बेटे का यूनिफॉर्म बदलवाया,खाना खिलाया फिर उससे
बोली ,"अब कटहल बैग में रखो और तुम मेरे साथ वहाँ चलो जहाँ से इसे तोड़ा है।"
"जी मम्मी!" कहकर अंकुश ने ठीक वैसा ही किया जैसा माँ ने आदेश दिया। उसको अभी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की उसकी माँ करना क्या चाहती हैं?
दोपहर की सख्त चिलचिलाती धूप की परवाह किए बिना रत्ना ने अपने सिर पर पल्लू रखा और बेटे का हाथ पकड़ कर वहाँ चल दीं जहाँ से वह कटहल तोड़कर ले आया था। रत्ना की आदत कहीं बाहर जाने की नहीं थी । वह घर से बाहर शायद ही कभी निकलती हो इस कारण उसे वहाँ के किसी भी जगह का पता नहीं था। पर इन सब की परवाह किए बिना वह अहिल्या बाई धर्म शाला पूछते हुए चल दीं।उसका बेटा अंकुश ही उसे उस धर्म शाला तक ले आया। वहाँ पहुँचने पर उसे देखकर के वहाँ का मैनेजर तुरंत ही बाहर निकल आया लग रहा था मानों उसे जानता हो , और बोला, "जी भाभी जी ,आप कैसे यहाँ तक आयीं?"
रत्ना ने बेटे की ओर देखकर कहा , "बेटे कटहल निकाल कर अंकल जी को दो और उन्हें बताओ कि तुम उसे यहाँ से तोड़ कर ले गये थे।"
बच्चे ने वैसा ही किया ।उसे अब बहुत शर्म सी लग रही थी। जब बच्चे ने कटहल दे दिया तब फिर बोली," बेटे अब अंकल से सॉरी बोलो और कहो की अब तुम कभी भी ऐसा काम नहीं करोगे !"
बेटे ने फिर वैसा ही किया। उसकी आंखों में अब
आँसू भर आया था , उसे अबतक पता चल गया था कि
उसने वहाँ से कटहल तोड़कर सही काम नहीं किया है।
मैनेजर ने कटहल वापस देते हुए कहा ,"कोई बात नहीं भाभी जी आप इसे अपने घर ले जाइए और कोफ्ते बना लीजिएगा।"
मगर रत्ना ने उसे लेने से मना कर दिया। वह बोली, "भाई साहब अगर आज मैं इसे ले लूँगी तो आगे चलकर यह चोर बन जायेगा।"
शाम को यह सारी बात जब रामप्रसाद जी ने सुनी तो रत्ना के लिए उनके मन में गर्व के भाव जाग उठे। उन्होंने पहले बच्चे को अपने पास बुलाकर समझाया ,"बेटा किसी की भी कोई भी वस्तु नहीं लेनी चाहिए । बिना पूछे यदि हम किसी की चीज लेते हैं तो उसे चोरी कहा जाता है ।" बच्चे ने आइन्दा किसी की भी चीज न लेने का वादा किया। फिर उन्होंने रत्ना को बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,"बहू मां हो तो तुम्हारी जैसी। अगर सभी माताएं ऐसी ही हो जायें तो पूरा समाज ही सुधर जाए। "
यही नहीं वहां पर मौजूद सभी लोग रत्ना की आदर्शवादी चरित्र की दिल से तारीफ कर रहे थे।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली
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