जय हिन्द, जय भारत

सीमा पर फिर सन्नाटा है, पर ज्वाला भीतर जलती है,
वीरों की इस पावन धरती पर अब भी प्रतिज्ञा पलती है।
हथियार थमे हैं हाथों में, पर मन का रण बाकी है,
सीजफायर की चुप्पी में भी, भारत की गूँज थिरकती है।।१।।
न भूलो कारगिल की घाटी, न यादें भटिंडा की गुम हों,
जहाँ-जहाँ दुश्मन ने लाँघा, वहीं-वहीं वीरों के तुम हो।
रणभेरी जब-जब बजी है, लहू हमारा उबल गया,
कंधार हो या पुलवामा, भारत फिर अडिग चल गया।।२।।
तू बात करे सीजफायर की, हम बात करें मर्यादा की,
हम शांतिपथ के राही हैं, पर बात चले गर स्वाभिमान की—
तो चट्टानों से टकरा जाए, वो भी अपनी चाल सुधारे,
भारत जब रण में उतर जाए, दुश्मन पग-पग थर्राए।।३।।
तू वार करे पीठ पीछे से, हम सीना खोल खड़े होते हैं,
तू झूठों की बिसात बिछा, हम सत्य की मशाल लिए होते हैं।
तेरे छल के उत्तर में, हम धैर्य धारण करते हैं,
पर सहने की सीमा पर, शत्रु-विनाश का व्रत रचते हैं।।४।।
वो पैंतरे, वो कूटनीति— सब तेरे भ्रम का हिस्सा हैं,
पर भारत के तेज और नीति, हर युद्ध में उसका किस्सा है।
जब-जब तिरंगा थाम खड़ा, सैनिक सीमा पर जाता है,
तब-तब इतिहास गर्जना करता, भारत फिर शौर्य निभाता है।।५।।
सीजफायर है, पर कमजोर नहीं, ये मत कोई भ्रम पालो,
हम शांत हैं तो शस्त्र निखरे, क्षत्रधर्म ना टालो।
शांति का मोल जानते हैं, पर युद्ध का भी संकल्प लिए,
भारत तब भी जय करता है, जब युद्ध छिड़े, या युद्ध थमे।।६।।
डॉ. उमेश चन्द्र शुक्ल
परेल, मुंबई -12
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