जयप्रकाश भारती बच्चों के प्यारे लेखक
जयप्रकाश भारती का जन्म सन् १९३६ में उत्तर प्रदेश के मेरठ नगर में हुआ था। उनके पिता श्री रघुनाथ सहाय, एडवोकेट मेरठ के पुराने कांग्रेसी और समाजसेवी रहे थे और अपने समय के बहुत प्रसिद्ध वकील और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। भारती ने मेरठ में ही बी.एस.सी. तक अध्ययन किया। क्योंकि उनके पिता समाजसेवा में लगे रहते थे इसलिए उनसे ही प्रभावित जय प्रकाश जी ने छात्र जीवन में ही अनेक समाजसेवी संस्थाओं में प्रमुख रूप से भाग लेना आरंभ कर दिया था। मेरठ में साक्षरता प्रसार के कार्य में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा तथा वर्षों तक उन्होंन नि:शुल्क प्रौढ़ रात्रि - पाठशाला का संचालन किया।

सोहन लाल द्विवेदी जी ने जय प्रकाश भारती जी के लिए एक बार कहा था कि भारती जी की आँखों में बाल साहित्य का एक सपना था। वही उनकी प्राणशक्ति थी, वही आत्मा, वही उनका सर्वस्व था। उनके मित्र और वरिष्ठ साहित्यकार और नंदन पत्रिका में संपादन मंडल के उनके सहयोगी श्री प्रकाश मनु जी ने भारती जी के बारे में कहा कि जब मैं ‘नंदन’ में आया, तो सबसे पहले इसी सपने से बहुत अधिक प्रभावित, बल्कि अभिभूत हुआ। अकसर ‘नंदन’ और बाल साहित्य की चर्चा चलने पर उनकी आँखों में जो तरल सी चमक आती, वह धीरे से मेरे अंदर भी उतर जाती थी और मेरी आत्मा जगमागाने लगती थी। मेरा मन कहता, हाँ! यह बड़ा काम है। यह सचमुच बड़ा काम है जो बच्चे के लिए कुछ करता है, निर्मल मन से कुछ सोचता है, वह ईश्वर के बहुत पास है, क्योंकि वह तो असल में ईश्वर का ही काम कर रहा है!
एक सफल पत्रकार तथा सशक्त लेखक के रूप में हिंदी साहित्य को समृद्ध करने की दृष्टि से भारती जी का उल्लेखनीय योगदान रहा है। उन्होंने नैतिक सामाजिक एवं वैज्ञानिक विषयों पर लेखनी चला कर बाल-साहित्य को अत्यधिक समृद्ध बना दिया है।
जीवन परिचय
जयप्रकाश भारती का जन्म सन् १९३६ में उत्तर प्रदेश के मेरठ नगर में हुआ था। उनके पिता श्री रघुनाथ सहाय, एडवोकेट मेरठ के पुराने कांग्रेसी और समाजसेवी रहे थे और अपने समय के बहुत प्रसिद्ध वकील और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। भारती ने मेरठ में ही बी.एस.सी. तक अध्ययन किया। क्योंकि उनके पिता समाजसेवा में लगे रहते थे इसलिए उनसे ही प्रभावित जय प्रकाश जी ने छात्र जीवन में ही अनेक समाजसेवी संस्थाओं में प्रमुख रूप से भाग लेना आरंभ कर दिया था। मेरठ में साक्षरता प्रसार के कार्य में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा तथा वर्षों तक उन्होंन नि:शुल्क प्रौढ़ रात्रि - पाठशाला का संचालन किया।
उन्होंने 'संपादन कला विशारद' करके 'दैनिक प्रभात' (मेरठ) तथा 'नवभारत टाइम्स (दिल्ली)' में पत्रकारिता का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। साक्षरता निकेतन (लखनऊ) में नवसाक्षर साहित्य के लेखन का उन्होंने विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। हिंदी के पत्रकारिता जगत और किशोरोपयोगी वैज्ञानिक साहित्य के क्षेत्र को उनसे बहुत आशाएं थीं। हिंदी-साहित्य की सेवा करते हुए ५ फरवरी, सन् २००५ में मेरठ में उनका देहावसान हो गया। जयप्रकाश भारती जी को उनकी अधिकांश रचनाओं के लिए यूनेस्को और भारत सरकार द्वारा सम्मानित किया गया।
रचना संसार-
उनकी अनेक पुस्तकें यूनेस्को एवं भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत हुई हैं। ‘हिमालय की पुकार’, ‘अनन्त आकाश: अथाह सागर’ (यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत), ‘विज्ञान की विभूतियाँ’, ‘देश हमारा देश’, ‘चलो चाँद पर चलें’ (भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)।
अन्य प्रकाशित पुस्तकें इस प्रकार हैं - ‘सरदार भगत सिंह’, ‘हमारे गौरव के प्रतीक’, ‘अस्त्र-शस्त्र आदिम युग से अणु युग तक’, ‘उनका बचपन यूँ बीता’, ‘ऐसे थे हमारे बापू’, ‘लोकमान्य तिलक’, ‘बर्फ की गडिया’, ‘संयक्त राष्ट संघ’. ‘भारत का संविधान’. ‘दनिया रंग-बिरंगी’ आदि। उन्होंने लगभग सौ पुस्तकों का सम्पादन भी किया, जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं - ‘भारत की प्रतिनिधि लोककथाएँ’ तथा ‘किरणमाला’ (३ भाग) । नंदन में आने से पहले अनेक वर्षों तक वे ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ में सह-सम्पादक भी रहे थे।
साहित्यिक परिचय
जयप्रकाश भारती जी ने साहित्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। संपादन के क्षेत्र में इन्हें ‘संपादन-कला-विशारद’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके पश्चात् उन्होंने मेरठ से प्रकाशित ‘दैनिक प्रभात’ तथा दिल्ली से प्रकाशित ‘नवभारत टाइम्स’ में पत्रकारिता का व्यावहारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। पत्रकारिता का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ये कई वर्षों तक दिल्ली से प्रकाशित ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ के सह-संपादक के पद पर कार्यरत रहे। इसके पश्चात उन्होंने ३१ वर्षों तक सुप्रसिद्ध बाल-पत्रिका ‘नंदन’ (हिंदुस्तान टाइम्स समूह द्वारा संचालित) का संपादन कार्य किया। यहाँ से २००४ में अवकाश प्राप्त करने के बाद भी अपनी नवीन रचनाओं के माध्यम से ये हिंदी साहित्य की सेवा में लगे रहे। एक सफल पत्रकार एवं सशक्त लेखक के रूप में हिंदी साहित्य को समृद्ध करने की दृष्टि से भारती जी का उल्लेखनीय योगदान रहा है। भारती जी ने लेख, कहानियाँ एवं रिपोर्ताज आदि अन्य रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य की सेवा की है। वैज्ञानिक विषयों को सरल, रोचक, उपयोगी और चित्रात्मक बनाकर उन्होंने हिंदी साहित्य को संपन्न कर दिया।
उनके संपादन में ‘नंदन’ पत्रिका ने एक बहुत ऊँचा स्थान हासिल किया। उनके लेख, कहानियाँ, रिपोर्ताज सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। पत्रिका ‘नंदन’ बाल-वर्ग में वर्तमान समय में भी अत्यधिक लोकप्रिय है। बाल-साहित्य एवं साहित्यिक भाषा में वैज्ञानिक विषयों पर लेखन-कार्य करने में वे निपुण थे। रेडियो पर भी उनकी वार्ताओं तथा रूपकों का प्रसारण हुआ है। उन्होंने अपनी रचनाओं में एकदम सरल एवं मनमोहिनी भाषा का प्रयोग करके अत्यधिक गंभीर विषय को भी पाठकों के अनुरूप व रुचिप्रद बना दिया है जिस कारण भारती जी अपनी रचनाओं के माध्यम से आज भी पाठकों के हृदय में निवास करते हैं। लेखन एवं पत्रकारिता दोनों ही क्षेत्रों में जयप्रकाश भारती जी ने अत्यधिक ख्याति अर्जित की है।
भाषा-शैली
भारती जी ने अपनी सभी रचनाओं में सरल एवं सरस भाषा का प्रयोग किया है। अत्यंत सरल व रुचियुक्त रूप में किसी भी लेख को प्रकाशित करना उनकी पत्रकारिता का मूलभूत उद्देश्य रहा है। ये अपनी भाषा के माध्यम से अत्यधिक नीरस एवं गंभीर विषय में भी पाठक की रुचि उत्पन्न करने में सक्षम थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में नैतिक, सामाजिक एवं वैज्ञानिक विषयों को मुख्य रूप से सम्मिलित किया। विज्ञान की जानकारी को बाल एवं किशोर वर्ग तक पहुँचाने के लिए वे वर्णन को रोचक और नाटकीय बना देते थे। उन्होंने विषय के अनुरूप तद्भव शब्दों, लोकोक्तियों एवं मुहावरों का प्रयोग भी किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में विषय के अनुरूप अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। उन्होंने किसी भी विषय का विस्तार में वर्णन करने के लिए वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्यत: इसी शैली का प्रयोग किया है।
उन्होंने किसी भी विषय का सजीव वर्णन करने के लिए चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया । सरल शब्दों एवं वाक्य-रचनाओं के द्वारा दृश्यों एवं घटनाओं का सजीव चित्रांकन उनकी शैली की विशिष्टता थी। साथ ही कई स्थानों पर अत्यधिक भाव प्रकट करने के लिए भावात्मक शैली का प्रयोग किया ।
बाल साहित्य और बाल साहित्य की बेहतरी के लिए जो काम वे कर गए, उसकी कोई मिसाल नहीं है। बच्चों के लिए लिखने वाले लेखक बहुत हैं पर बच्चों और बाल साहित्य का जयप्रकाश भारती सरीखा पैरवीकार आज ढूँढ़े से भी नहीं मिलता। बालक और बाल साहित्य की चिंता उनके व्यक्तित्व में इस कदर शामिल थी कि सोते-जागते वह उनके साथ ही रहती थी। वे कहीं भी जाएँ, किसी से भी मिलें, किसी भी संदर्भ में बात कर रहे हों, बालक और बाल साहित्य वाली बात घूम-फिरकर आ ही जाती थी। इस विषय पर बात करते हुए वे इतने लयमान हो जाते थे कि समय का उन्हें कुछ होश ही नहीं रहता था। अकसर बच्चे की बात चलते ही उनकी मुखमुद्रा में भी किसी बच्चे जैसी कोमलता और भोलापन नजर आने लगता था और देखते ही देखते उनका समूचा व्यक्तित्व ही बदल जाता था।
आज जयप्रकाश भारती जी को हिंदी साहित्य में एक उच्च सर्वोत्तम स्थान दिया गया है आज जयप्रकाश भारती जी को हिंदी साहित्य में एक उच्च सर्वोत्तम स्थान दिया गया है जयप्रकाश भारती जी ने हिन्दी साहित्य में जो स्थान हासिल किया वह योगदान चिरस्थायी हो गया है।
रचना दीक्षित
ग्रेटर नॉएडा
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