प्यार
मोती बनकर `शबनम' आयी, `रजनी' के सूनेपन में। जब `किरनों' तक पहुंच सकी तो, उलझे सब `दरबार' मिले।।

फूलों ने जब `हंसना' चाहा,
कांटों के `बाजार' मिले।
`कलियों' ने जब खिलना चाहा,
उनको उलझे `खार' मिले।।
मोती बनकर `शबनम' आयी,
`रजनी' के सूनेपन में।
जब `किरनों' तक पहुंच सकी तो,
उलझे सब `दरबार' मिले।।
सरिता ने `दम' भरकर अपना,
जब सारा `जोर' लगा डाला।
उसको `पथ' में जगह-जगह पर,
बंध-बंधे सब `द्वार' मिले।।
बहुत मधुर है `दुनियां' ऊपर,
`मिश्ररी' जैसी लगती है।
दुर्लभ है `दिल' का मिल पाना,
दिल का सच्चा `प्यार' मिले।।
डॉ. रोहित सिंह गौर
हरदोई उत्तर प्रदेश
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