महादेवी वर्मा-आधुनिक युग की मीरा

छायावाद काल के स्वर्णिम साहित्य को हिन्दी साहित्य में सबसे ऊपर जगह मिली, सुमित्रा नन्दन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जय शंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा जी ने इस छायावाद को उसके शिखर तक पहुंचाया। कुछ अन्य कवियों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। लेकिन हिन्दी साहित्य में महादेवी वर्मा का जीवन परम्पराओं के विपरीत, सामाजिक विषमताओं के सामने अडिगता के साथ खड़े होकर उन चुनौतियों से लड़ना था।

May 30, 2025 - 18:12
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महादेवी वर्मा-आधुनिक युग की मीरा
Mahadevi Varma- Meera of the modern era

हिन्दी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव जिस पर हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवियों ने अपने हस्ताक्षर से इस काल को कालजयी बना दिया, हिन्दी साहित्य के इतिहास की लम्बी यात्रा में अनेकानेक साहित्यकरों ने अपने सृजन से इसे समृद्ध और वैभव पूर्ण वनाया है, युगान्तर के सफर में स्थितियां और परिस्थितियां भी बदलती रही, लेकिन साहित्यकारों की लेखनी अविरल चलती रही। समाजिक और राष्ट्रीय की विषम परिस्थितियों में भी लेखको कवियों साहित्यकारों ने अपने सापेक्ष दृष्टिकोण को भलीभाँति जन मानस तक पहुंचाने का कार्य किया, कृष्ण को अपना पति मानकर उनकी आराधना करने वाली मीरा, राजघराने से ताल्लुक रखती थी किन्तु उसकी आस्था की वृत्तियां उस राजघराने के अनुकूल नहीं थी, अतः मीरा कृष्ण की दिवानी होकर उनका भजन कीर्तन करने लगी थी, एक राजतंत्रात्मक व्यवस्था के समक्ष मीरा ने स्वतंत्रता का विगुल फूंक दिया था। हिन्दी साहित्य में भी ऐसी ही एक मीरा ने जन्म लिया था,जो सामाजिक परिस्थितियों से लडकर स्वयं को देवी से महादेवी बना लिया था।
छायावाद काल के स्वर्णिम साहित्य को हिन्दी साहित्य में सबसे ऊपर जगह मिली, सुमित्रा नन्दन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जय शंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा जी ने इस छायावाद को उसके शिखर तक पहुंचाया। कुछ अन्य कवियों ने अपनी अमिट छाप छोड़ी है। लेकिन हिन्दी साहित्य में महादेवी वर्मा का जीवन परम्पराओं के विपरीत, सामाजिक विषमताओं के सामने अडिगता के साथ खड़े होकर उन चुनौतियों से लड़ना था। संघर्ष की यह गौरव गाथा उन्हें महान तो बनाती ही है लेकिन हिन्दी साहित्य के छायावादी युग को एक नयी दिशा और दशा भी प्रदान करती है, किसी भी साहित्यकार की पूरी ज़िन्दगी के विषय में जाने विना उसके साहित्य को समझ पाना मुश्किल कार्य होता है। सामाजिक जीवन और पारम्परिक परिस्थितियों के बीच सामंजस्य विठाना भी जीवन की एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता है, इसलिए महादेवी वर्मा का जीवन जानना आवश्यक है।
महादेवी वर्मा जी का जन्म २६ मार्च १९०७ ई. फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ था इनके पिताजी का नाम श्री गोविंद प्रसाद वर्मा था, आपके पतिदेव जी का नाम डाँ. स्वरूप नारायण वर्मा था, आपने संस्कृत से परास्नातक किया था आपकी माता का नाम श्रीमती हेमारनी वर्मा था। आपकी साहित्यिक रचनाएं इस प्रकार थी।
निहार, रश्मि, नीरजा, सान्ध्य गीत, अग्नि रेखा, यामा, दीप शिखा, सप्त पर्णा आदि थी। आपको पद्मविभूषण,पद्म भूषण ज्ञानपीठ, भारतेन्दु पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। आपने चांद पत्रिका का संपादन भी किया था, नीरजा पर ५०० रुपये का पहला सक्सेरिया सम्मान मिला।
महादेवी वर्मा के परिवार में पिछले दो सौ वर्षो तक कोई पुत्री का जन्म नहीं हुआ था, जब इस परिवार में एक पुत्री ने जन्म लिया तो इनका नाम इनके दादा जी बांके बिहारी जी ने महादेवी रखा, परिवार की देवी से इनका नाम महादेवी पडा, महादेवी जी के पिता जी भागलपुर में एक कालेज के प्राध्यापक थे और उनकी माता एक धार्मिक सहिष्णु महिला थी। १९१६ जब वे कम उम्र की थी तभी उनका विवाह स्वरूप नारायण वर्मा से हो गया। विवाह होने के पश्चात भी देवी ने अपना जीवन अविवाहित ही विताया, ऐसी विषम परिस्थिति में सभी रूढ़ीधादी विचार धाराओं को दरकिनार करते हुए अपना संपूर्ण जीवन शिक्षा और साहित्य को समर्पित किया, आरम्भिक शिक्षा उज्जैन में हुई, आपकी अभिरूचि चित्रकला काव्यात्मक कला में थी। साहित्यकार संसद की संस्थापिका भी थी। निराला के वैशिष्ट चतुरंगिणी में चौथे स्तंभ के रूप मे आपको जाना जाता था। प्रणय-वेदना, जड़-चेतन का एकात्म भाव, सौन्दर्यानुभूति, मूल्य चेतना और रहस्यात्मकता उनके सृजन का मूल विषय था। आप स्वतंत्रता सेनानी भी रही हैं। गीति काव्यात्मक शैली उनकी रचना धर्मिता रही थी। उनकी भाषा शैली से ही उनके भावनात्मक विवेचना का दर्शन होता है, शब्दों का संचयन, वेदनात्मकता ह्रदय को छू जाते हैं, प्रकृति प्रेम और जीवन की सुन्दरता को चित्रित करने में महादेवी को महारत हासिल था। गहनतम विचारों को भी अपनी तूलिका से सहज भावों में प्रस्तुतिकरण उनका स्वभाव था, रूपक उपमा और अलंकारों को भावनुरूप अभिव्यक्ति उनकी विशेषता थी। प्रतीकात्मकता में छायावादी मौलिक विम्बों का संयोजन और कुशलतापूर्वक उसका प्रयोग लेखिका के साहित्य को शिखर तक ले जाता है। अप्रस्तु को भी प्रस्तुति के माध्यम से महनीय बना देना किसी साहित्यिक कलात्मकता से कम नहीं। 
महादेवी का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही पीड़ादायक रहा था, विवाह के पश्चात भी पति का विछोह उन्हें उनके वियोग और विरह को एक नयी ऊंचाई प्रदान करता है, वियोगी होगा पहला कवि की उक्ति चरितार्थ होती है। यही वियोग और विरह उनके साहित्य की बुनियाद बनती है, ऐसा विषम परिवेश जिस नारी के साथ हो उसका अपने आप स्वयं को साबित करना किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इन्दौर के मिशन स्कूल, इलाहाबाद के क्रास्थवेट गर्ल्स कालेज और उसी कालेज के छात्रावास में रहकर स्वयं को संयोजित किया। सुभद्रा कुमारी की खोज महादेवी वर्मा कही जा सकती है।
सुभद्रा कुमारी और महादेवी जी मिलकर अपनी रचनाएं साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में भेजा करती थी। साहित्य में छायावाद काल में एक छायावादी कवयित्री का उदय किसी क्रान्ति से कम नहीं था। भारतीय दर्शन की माधुरिम मीठास के साथ ह्रदय को छू लेने वाली रचनाओं को देवी ने अपनी प्रस्तुति का आधार बनाया। उनके जीवन का कारुणिक संदर्भ महादेवी की भाव भंगिमा बन गयी। शिक्षा में शिक्षक और फिर सुजाता बोस कालेज की प्रधानाचार्या बन गयी। आप साहित्य अकादमी की सदस्या बनने का पहला गौरव प्राप्त किया। निबन्ध संकलन और काव्यात्मक विधा में आपने अपनी जीवन शैली की आधार शिला बना दिया। संघर्षो की जीवन यात्रा को अकेले चलकर लक्ष्य तक पहुंचना यह केवल महादेवी में ही संभव था। सामाजिक जीवन को स्वीकार करते हुए महादेवी ने नारी शक्तियों के लिए एक लकीर खीची है। कुछ काव्यात्मक रचनाएं प्रस्तुत हैं-
तुम दुख बन इस पथ से आना 
शूलों में नित मृदु पाटल सा,
खिलने देना मेरा जीवन ।
देखिए ृ
मैं नीर भरी दुख की बदली 
स्पंदन में चिर निस्पंद बसा 
क्रन्दन में आहत विश्व हंसा 
नयनोें में दीपक-सा जलते 
पलकों में निर्झरिणी मचली।
देखिए ृ
चिर सजग आंखे उंनीदी आज कैसा व्यस्त बाना। 
जाग तुझको दूर जाना। 
अचल हिमगिरि के ह्रदय में आज चाहे कंप हो ले 
या प्रलय के आंसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले।।
देखिए ृ
बीन भी हूं मैं तुम्हारी रागिनी भी हूं। 
नींद थी मेरी अचल निस्पंद कण कण में 
प्रथम जागृति थी जगत के प्रथम स्पंदन में 
प्रलय में मेरा पता पद चिन्ह जीवन में 
शाप हूं जो बन गया वरदान बंधन में 
फूल भी हूं कुलहीन प्रवाहिनी भी हूं। ।
देखिए ृ
कौन तुम मेरे ह्रदय में
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरचित?
देखिए ृ
पूंछता क्यों शेष कितनी रात 
मैं नीर भरी दुख की बदली। 
आदि ऐसी रचनाएं हमारे सामाजिक व्यवस्था को तार तार कर उनकी रूढियों से उन्हें ललकारती है। 
वर्तमान की मीरा का सार्थक सामंजस्य स्थापित कर महादेवी को सर्वश्रेष्ठ नारी की गरिमा की कतार में खड़ा कर देता है।

डॉ. कृपाशंकर मिश्र 
मुम्बई, महाराष्ट्र 

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