विज्ञान का चमत्कार - मेरा वो पहला मोबाइल फोन
एक दिन की बात है। मेरी बड़ी बेटी बीमार हो गई और वह स्कूल नहीं जा पाई। वह घर में ही थी। मेरे पति ऑफिस चले गए और मैं शिक्षिका छुट्टी नहीं ले पाई, विद्यालय चली गई। सोची कि विद्यालय के लैंडलाइन फोन से घर के लैंडलाइन फोन पर बेटी से हाल-चाल पूछ लूँगी। फिर मैं विद्यालय जाकर घर का फोन लगाने लगी तो हमेशा इंगेज नंबर आता था और फोन लगता ही नहीं था।

शायद २००४-०५ का समय रहा होगा, मेरे घर में सबसे पहले मेरे पति ने लाल रंग का नोकिया का मोबाइल फोन खरीदा जिसका मूल्य ४००० रुपए के करीब था। यह मेरे घर का पहला मोबाइल फोन था। इसमें कीपैड था और मैसेज के लिए शब्दों को टाइप करनी पड़ती थी। मुझे पति के मोबाइल फोन में कोई रुचि नहीं थी। घर में लैंडलाइन फोन था, सब काम हो जाता था।
एक दिन की बात है। मेरी बड़ी बेटी बीमार हो गई और वह स्कूल नहीं जा पाई। वह घर में ही थी। मेरे पति ऑफिस चले गए और मैं शिक्षिका छुट्टी नहीं ले पाई, विद्यालय चली गई। सोची कि विद्यालय के लैंडलाइन फोन से घर के लैंडलाइन फोन पर बेटी से हाल-चाल पूछ लूँगी। फिर मैं विद्यालय जाकर घर का फोन लगाने लगी तो हमेशा इंगेज नंबर आता था और फोन लगता ही नहीं था। मेरा मन बहुत घबरा रहा था फिर मैंने विद्यालय के लैंडलाइन फोन से पति के मोबाइल पर फोन किया और सारी बातें बताई। पति भी घर पर फोन किए लेकिन नतीजा वही, बस इंगेज टोन की आवाज कानों में सुनाई देती थी। पति का ऑफिस दूर था इसलिए मैंने फैसला किया कि हाफ डे (आधी दिन की छुट्टी) लेकर घर चली जाऊँगी। मैं घर पहुँची तो देखती हूँ कि बेटी तेज बुखार से तप रही थी। उसकी आँखें बंद थी। फिर मैंने उसे जल्दी-जल्दी गीले कपड़े की पट्टी दी। बुखार की दवाई दी। थोड़ी देर में उसका बुखार थोड़ा कम हुआ। मेरे पति को भी मन नहीं लगा और वो भी आफिस से जल्दी घर आ गए। बाद में पता चला कि उस क्षेत्र के सभी लैंडलाइन फोनों के सिग्नल में कुछ समस्या आ गई थी। सिग्नल ठीक होने में दो-चार दिन का समय लग सकता था।
उसी दिन मेरे पति नोकिया के शोरूम गए और वहाँ से २३५० रुपए में मेरे लिए हल्के नीले रंग का छोटा प्यारा सा फोन और अपने आईडी पर एयरटेल का सिम लगाकर ले आए। मेरे पति आकर बोले, `यह फोन तुम्हारा है, इसका सिम कल से काम करेगा, जब बच्चे घर पर रहेंगे तो इस फोन को घर पर छोड़कर जाएंगे, वरना इसे तुम अपने पास रखना।' मेरे विद्यालय में फोन रखने की परमिशन नहीं थी। मैं फोन को घर पर ही रखती थी। मुझ से पहले तो मेरी बेटी फोन चलाना सीख गई। वो मेरा पहला फोन था और मुझे बहुत प्रिय था। सबसे पहले तो मैं नंबर को सेव करना सीखी, मैसेज टाइप करना सीखी और मैसेज भेजना भी सीखी। जब मैं कहीं जाती थी तो शान से फोन को ले जाती थी। फोन पर भी बातें करने की मेरी अपनी स्टाइल थी। भले ही वो स्मार्टफोन नहीं था लेकिन वह फोन मेरी दुनिया थी।
स्मार्टफोन के आने से मेरे घर के हर सदस्यों ने स्मार्टफोन खरीद लिया लेकिन मैं अपने पहले मोबाइल फोन को सीने से लगाकर घूमती थी। जब मेरे घर में कारपेंटर का काम चल रहा था तो एक कारपेंटर ने मेरे उस प्रिय फोन को चुरा लिया। मैं अपने फोन के लिए बहुत रोई और दो दिनों तक सोई नहीं। फिर मैंने सभी कारपेंटर को बहुत समझाया। दो दिनों के बाद वह फोन मुझे उसी जगह पर मिला जहाँ मैं रखती थी। फोन को देखकर तो मेरी जान में जान आई थी। आज भी वो पहला मोबाइल फोन को मैं कभी नहीं भूल पाती हूँ।
मनोरमा शर्मा मनु
हैदराबाद, तेलंगाना
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