माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
पिताजी की हठ पर अब माँ खीझ जाती हैं... काम करते-करते अब कई बार झीक जाती हैं...
माँ की आँखों में उम्र का जाला पड़ गया है...
बीते वक़्त का मन पे एक छाला पड़ गया है...
बहुत सी कहानियाँ कहते हैं अनुभव उनके...
जीवन का कोई हिस्सा उजला कोई काला पड़ गया है...
माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
पिताजी की हठ पर अब माँ खीझ जाती हैं...
काम करते-करते अब कई बार झीक जाती हैं...
कुछ खाने की अब भी फरमाइश कर दो तो...
थोड़ा और थोड़ा और खिलाने को रीझ जाती हैं...
माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
कभी बीमार ना पड़ने वाली माँ, अब अक्सर बीमार रहने लगी हैं...
यही जब कहो तो 'बुढापा है बुढापा है', अब अक्सर कहने लगी हैं...
पूरा दिन दो रोटी पर गुज़ार देने वाली माँ, अब शुगर कम होने के डर से मीठे बिस्कुट पास रख कर सोती हैं...
सोते पर जब पास बैठी होती हूँ, तो अक्सर कुछ आवाज़ें, अजीब सी साँसे ऊपर नीचे होती हैं...
माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
सबको हॉस्पिटल ले जाने वाली माँ, अब डॉक्टर के नाम से डरती हैं...
मैं यहीं ठीक हो जाऊँगी, बस यही बार-बार कहती हैं...
सबसे हिम्मती माँ, अब मेरा बुखार तेज़ होने पर सामने खड़े होने से डरती हैं...
तू भी तो बीमार पडती है, बस यही कह कह कर अपनी बीमारी को ढकती हैं...
माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
साथ बैठो तो अब माँ पुरानी बातें याद कर कर के कहती हैं...
अब उनकी यादों में नानी, दादी, मौसी, मामी, ताई यही तो बस जैसे रहती हैं...
नानाजी की बचपन की हर सीख दोहरा दोहरा कर मुझे देती हैं...
भाईयों के पुराने किस्से बड़े गर्व से अब भी कहती हैं...
माँ अब बूढ़ी होने लगी हैं...
इतने गठे शरीर वाली माँ, जाने कब इतनी कमज़ोर हो गईं...
समय की गिनती जाने कब सीढ़ियां लांघकर चोर हो गई...
बाल उतने ही लम्बे घने, बस अब उनसे संभलते नहीं है...
पतले-पतले पैर उनके अब बहुत दूर तक चलते नहीं है...
हाथों और गर्दन की त्वचा बहुत हल्की पतली सी हो गई है...
माथे की रेखाएं कुछ और गहरी सी अब हो गईं हैं...
अक्सर, ही अब उनमें एक छोटी बच्ची को रहते मैंने देखा है...
बात बात पर रूठती, मचलती, अब बचपन की वो रेखा है...
अपने बचपन वाले स्वाद ही उनको अब बहुत सुहाते हैं...
वो पुरानी बातें यादें किस्से ही बस उनको लुभाते हैं...
जीवन की है ये एक अवस्था, आज या कल सब पर आनी ही है...
कहिए क्या अपनी माँ पर आपने भी ये पहचानी है...
सब जाना है पर फिर भी कहीं ना कहीं माँ की ये हालत मन ने नहीं स्वीकारी है...
चलें बस जी लें इसे साथ उनके, इतनी तो वो अधिकारी हैं...!!!
डॉ. स्वाति सक्सैना
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