ना मोक्ष कामना, ना पाप है धोना…
जब इलाहाबाद में इनकी पोस्टिंग थी तो ख़ूब अर्द्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ नहाए। घर पर आए मेहमानों को भी पतिदेव ने अपने स्कूटर पर ट्रिपल सवारी कर नहला चुके हैं। बहुत पुण्य कमाया हैं। इस धर्म धक्का में कौन जाए... अब तो उम्र भी हो रही है, कुछ हो हवा जाए या बिछड़ जाए या कहीं भगदड़ में देह की दुर्गति हो जाए तो क्या होगा? ऊपर से बच्चों की सख्त हिदायत नहीं जाना है कुंभ बसष्ठ। हमने कहा भी कि देखो, सीखो कितने लोग अपने माता-पिता को ले जाकर नहलवा दिए, एक तुम लोग हो खुद तो गए नहीं ऊपर से मना कर रहे हो...।

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुखसागर रघुबर सुखु पावा।।।
भावार्थ
पापों के समूह रूपी हाथी के मारने के लिए सिंह रूप प्रयागराज का प्रभाव (महत्व-माहात्म्य) कौनकह सकता है। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ श्री राम जी ने भी सुख पाया।।
इस शहर की अहमियत दस साल इलाहाबाद में वास करने पर भी नहीं हुई थी जितनी २०२५ महाकुंभ का भव्य आयोजन ने दिलाया। हमारे दिलो दिमाग पर प्रयागराज महा कुंभ इस क़दर तांडव कर रहा था कि सोते, उठते, बैठते बस चारों तरफ सभी जन आस्था की डुबकी लगाते नजर आते। जिसे देखो देशी, विदेशों सब कुंभ मय।
चर्चा, परिचर्चा १४४ वर्ष बाद महा कुंभ, ग्रह, नक्षत्र, शुभ घड़ी, अमृत स्नान, नागा, साधु संत, किन्नर के उत्साह, उल्लास आदि देख सुन कर ह्रदय में ग्लानि सी होने लगी और खुद से प्रश्न करने लगी कि क्या मैं आस्तिक नहीं? जहाँ देखो, जिसे देखो पूछ बैठता कुंभ हो आई? अरे, मैं तो हो आईष्ठ अगला जवाब सुने बिना तपाक से बोल पड़ता।
प्रारंभ में तो मैं संतोष करके बैठी थी कि अरे! जब इलाहाबाद में इनकी पोस्टिंग थी तो ख़ूब अर्द्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ नहाए। घर पर आए मेहमानों को भी पतिदेव ने अपने स्कूटर पर ट्रिपल सवारी कर नहला चुके हैं। बहुत पुण्य कमाया हैं। इस धर्म धक्का में कौन जाए... अब तो उम्र भी हो रही है, कुछ हो हवा जाए या बिछड़ जाए या कहीं भगदड़ में देह की दुर्गति हो जाए तो क्या होगा? ऊपर से बच्चों की सख्त हिदायत नहीं जाना है कुंभ बसष्ठ। हमने कहा भी कि देखो, सीखो कितने लोग अपने माता-पिता को ले जाकर नहलवा दिए, एक तुम लोग हो खुद तो गए नहीं ऊपर से मना कर रहे हो...।
टीवी, अख़बार वाले तो जले पर नमक छिड़क ही रहे थे। पतिदेव तो अपने पैर पर प्लास्टर की दुहाई दे रहे थे, कह रहे थे बस कुछ दिन की बात है प्लास्टर कटते ही चले चलेंगे। तब भी मैंने साफ मना कर दिया ना ना कोई जरूरत नहीं, कहीं ठेलम ठेल में किसी का पैर या बक्सा पैर के ऊपर आ जाए तो दुबारा प्लास्टर चढ़ जाएगा.. रहने दीजिये।
लेकिन दिल है कि मानता नहीं... टीवी पर टकटकी लगाए सबको कुंभ स्नान करते देखना अच्छा लगता। दोस्तों या अन्य के स्टेटस देखकर मन बेचैन हो उठता... पर हाँ, ये बात बिल्कुल मन में नहीं उठती कि पाप धोना है या मोक्ष प्राप्त करना है। बस इच्छा होती कि काश मैं भी इस ऐतिहासिक पल की साक्षी बन पाती। देश विदेश सब घूम के बैठी हूँ। मानसरोवर की दुरूह यात्रा कर चुकी हूँ। यहाँ जाना तो कितना आसान है पर जन सैलाब और वहाँ पहुँचने की कष्टदायक यात्रा वृतांत सुनकर, देख कर हिम्मत टूट जाती। ट्रेनों में चढ़ने की जद्दोजहद, मारा मारी बाथरूम तक में धर्म की जीत क़ाबिज़ थी, रही सही हिम्मत सड़क हादसों ने तोड़ दी.. कितने श्रद्धालु घर तक वापस पहुंच नहीं पाए... ना बाबा ना जान है, तो जहान है। सनातनी औ धर्म परायणता अपनी जगह है पर इतना पैदल चलना और कष्ट सहने की आदत नहीं... हमसे नहीं हो पाएगा।
कहते हैं ना शिद्दत से जिसे चाहो वो अवश्य मिल जाता है। आस्था में बहुत ताक़त होती है। जहाँ चाह वहाँ राह और देखिए बन गया संयोग। किसी शुभचिंतक ने कहा चलिए हम लोग गाड़ी से जा रहे हैं आप लोग चलिए। मगर सड़क मार्ग से जाना मुझे गंवारा न था, मन में बस बुरे ख़्याल आते और मैंने उन्हें साफ़ मना कर दिया। तब उन्होंने सुझाव दिया कि ट्रेन का टिकट ले लीजिए। टिकट भी अनुपलब्ध थी। लंबी वेटिंग लिस्ट थी राजधानी ट्रेन में क्योंकि अन्य ट्रेन से जाना सुरक्षित नहीं था। उन्होंने आश्वासन दिलाया वेटिंग ले लें मैं कोटा के माध्यम से आरक्षण दिलवा दूँगा। हम भी अनमने से २३ फ़रवरी का वेटिंग टिकट ले लिए। इस मारा-मारी में आरक्षण मिलना तो मुश्किल है पर प्रभु की माया अथवा कर्मों का फल कहिए जाने के चार दिन पहले टिकट बिना कोटा के सहयोग लिए अपने आप आरक्षित हो गया। निर्धारित समय, तिथि पर हम बिना किसी परेशानी के राँची स्टेशन से शाम पाँच चालीस बजे ट्रेन में बैठ गए और दूसरे दिन प्रातः पाँच बजे हम प्रयाग राज स्टेशन पहुँच गए।
वहाँ पहुँचने पर भला हो मोटर साइकिल वालों का जो देव दूत की तरह यात्रियों को गलियों से गुज़रते हुए सही सलामत बोट क्लब तक पहुँचा देते। हमने भी उन्हीं का सहारा लिया। हालाँकि कभी मोटरसाइकिल की सवारी नहीं की थी तो भयभीत थी, कहीं गिर गिरा गए तो लेने का देना पड़ जाएगा। खैर, वहाँ पहुँच कर नाविकों की अवसरवादिता के चर्चे सुन रखा था वही नजारा था,पूरी लूट मचा रखी थी। वो कहते हैं ना बहती गंगा में हाथ धोना वो यहाँ चरितार्थ हो रहा था। खैर, मोल मोलाई कर हम नाव पर बैठ गए।
प्रात: बेला का नयनाभिराम सौंदर्य देखते ही बन रहा था। अलौकिक, दिव्य सूर्य देव जो हौले-हौले आकाश में उदित हो रहे थे और मद्धम मद्धम अपनी सिंदूरी आभा बिखेर रहे थे। यमुना जी भी सूर्योदय की बेला में रक्तिम कल-कल बह रही थी। नाविक की मेहनत देख लगा कि बेचारे वाक़ई परिश्रम करते हैं। नदी में चप्पू की थाप सरगम की तरह मन मस्तिष्क में मृदंग बजा रहे थे। नाव पर हमारे संग कुछ विदेशी श्रद्धालु बैठी थीं, जो कैनेडा से कुंभ स्नान के लिए आई थीं। उनके मुख से भारत के प्रति और इस अविस्मरणीय पल के लिए उनके जज़्बात सुन कर लगा कि भारतीय कहीं भी रहे, चाहे कितना भी ऐशो आराम हो पर भारत के प्रति उनका प्यार, आत्मीयता कभी कम नहीं होता। वो महिला कहते नहीं थक रही थीं कि ये सुख ये वातावरण वहाँ कहाँ... इस अनुभव का जवाब नहीं। चंद मिनटों के गु़फ्तगू और थोड़ी-सी मेरी सलाह, परवाह से मैं उस सहयात्री को भा गई और उसने अपने पर्स से निकाल कर एक मोतियों का माला उपहार स्वरूप मुझे भेंट कर दिया। दो चार यूरोपीय भी नाव पर सवार थे जो शांति से नौकायन का लुत्फ उठा रहे थे। मन में सवाल उठ रहा था कि इनको किस आकर्षण ने यहाँ खींच लाया है।
पचास मिनट में हम त्रिवेणी घाट पहुँच गए। सैकड़ों की तादाद मे नाव, मोटर बोट, जहाज़ वहाँ लगे हुए थे। नाविक ने अपने सामान साथ ले जाने को कह नाव एक जगह नावों की भीड़ में लगा दी। हम पति पत्नी पवित्र गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में आस्था की डुबकी लगा साड़ी, नारियल, दीप सहित पूजा पाठ कर तृप्त,तन और मन से भींगे हुए थे। ऐसी नैसर्गिक अनुभूति को कैमरे में तो क़ैद नहीं किया जा सकता पर उन पलों को हम अपने मोबाइल के कैमरे में क़ैद करते हुए वापस आगे बढ़ रहे थे। रास्ते भर नदी के ऊपर उड़ते विदेश से आए साइबेरियन पक्षियों के आखेट, उनकी चहचहाहट मानों कह रहे थे कि तुम जा रहे हो ना! देखो हम अभी कुछ दिन और रहेंगे तो उनसे ईर्ष्या लाज़मी थी काश हमारे भी पंख होते.. मेरा कवि मन नाव पर बैठे बैठे डोल रहा था तो चंद पंक्तियाँ लहरों के साथ गढ़ डाला ।
धन्य हुए करके कुंभ का दर्शन।
पवित्र जल का अमृत आचमन।।
दिव्य भव्य महा कुंभ आयोजन।
फहरा विजय पताका सनातन।।
सविता गुप्ता
राँची झारखंड
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