विश्व की भाषा बनने को अग्रसर हमारी हिंदी

भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र विश्वबंधुत्व एवं वसुधैवकुटुम्बुकम् है. विभिन्न देशों की संस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को समाहित करने की शक्ति हमारी संस्कृति में है. इंटरनेट के इस युग ने हिंदी को वैश्विक धाक जमाने में नया आसमान मुहैया कराया है. भूमंडलीकरण युग के कारण दुनिया दिन ब दिन सिमटती हुई सबकी मुट्ठी में आ गई है. हम विश्व भर में कहाँ क्या घटित हो रहा है, उसका समाचार तत्काल जान सकते हैं. 

Dec 3, 2024 - 12:47
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विश्व की भाषा बनने को अग्रसर हमारी हिंदी
Our Hindi is moving towards

भारतीय संस्कृति का मूलमंत्र विश्वबंधुत्व एवं वसुधैवकुटुम्बुकम् है. विभिन्न देशों की संस्कृति के श्रेष्ठ तत्वों को समाहित करने की शक्ति हमारी संस्कृति में है. इंटरनेट के इस युग ने हिंदी को वैश्विक धाक जमाने में नया आसमान मुहैया कराया है. भूमंडलीकरण युग के कारण दुनिया दिन ब दिन सिमटती हुई सबकी मुट्ठी में आ गई है. हम विश्व भर में कहाँ क्या घटित हो रहा है, उसका समाचार तत्काल जान सकते हैं. 

विश्व की भाषा हिंदी आज अरबी, फारसी, संस्कृत,ईरानी, तुर्की,दक्खिनी जैसे देशज शब्दों को आत्मसात् करके एक विराट रूप ग्रहण करके अपनी जड़ों को मजबूत कर रही है. अब तक दुनिया में द्वितीय और तृतीय स्थान पर जो भाषा खड़ी हुई थी वही अब प्रथम स्थान तक पहुँचने के लिये प्रयासरत है. प्रवासी भारतीयों की संख्या दिनोंदिन बढती जा रही है, विश्व में भारत की पहचान तो है ही... ऐसी स्थिति में हिंदी ही संपर्क भाषा की भूमिका निभा सकती है . 

आज अनेक विदेशी और बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं को जानने वाले अधिकारियों को नियुक्त करने में विशेष रुचि दिखा रही हैं क्यों कि वह समझ रहे हैं कि यदि भारत के बाजार को हस्तगत करना है तो हिंदी ही सबसे सशक्त माध्यम है. 

विश्व के लगभग १३२ देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग २ करोड़ लोग हिंदी माध्यम से ही अपना काम करते हैं,हिंदी बोले जाने पर भी इसका क्षेत्र सीमित है.यह दुनिया की सबसे सरल भाषा है.क्योंकि जैसे बोली जाती है वैसे ही लिखी भी जाती है. 

वर्तमान समय में हिंदी का प्रचार प्रसार दो तरह से हो रहा है ...
प्रथम के अंतर्गत वह देश आते हैं जहाँ के लोग विश्व भाषा के रूप में पढते और सीखते हैं... इसके अंतर्गत् रूस, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, इटली, बेल्जियम, प्रâांस,चेकोस्लोवाकिया,रुमानिया, चीन,जापान,नार्वे, स्वीडन, पोलैंड, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको, आदि देश आते हैं. 

दूसरे वो देश हैं जहाँ प्रवासी भारतीय और भारतवंशी लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं. जिनकी मातृभाषा हिंदी रही जो आजकल फिजी, सूरीनाम, गुयाना, बर्मा, थाईलैंड, नेपाल, श्रीलंका, मलेशिया व  दक्षिण अप्रâीका, मॉरीशस आदि देशों में रह रहे हैं. 

इन दोनों प्रकार के देशों का रचना संसार बहुत विपुल और समृद्ध है . इन्होंने चरितार्थ कर दिया है ...
निज भाषा उन्नति अहै , निज उन्नति को मूल 
बिन निज भाषा ज्ञान के , मिटै न हिय को सूल 

हमारे देशवासी भारतीय जहाँ जहाँ भी गये हैं अपने साथ हमारी संस्कृति, साहित्य और भाषा को साथ में लेकर गये हैं, साथ ही अपनी मातृभाषा को नहीं भूले हैं वरन् उसको अमूल्य निधि की तरह संजो कर रखा है. यही कारण है कि फिजी, मॉरिशस, सूरिनाम, दक्षिण अप्रâीका जैसे देशों में रहने वाले भारत वंशियों के बीच में आज भी हिंदी मातृभाषा के रूप में बोली जाती है. 

हिंदी विभिन्न देशों में विदेशी भाषा के रूप में पढाई जाती है. प्रवासी भारतीय सांस्कृतिक एवं सामाजिक अस्मिता की भाषा समझकर उस धरोहर को सुरक्षित रखना चाहते हैं. भारत को बेहतर ढंग से जानने के लिये दुनिया के करीब ११५ शिक्षण संस्थानों में हिंदी का अध्ययन अध्यापन होता है ....

अमेरिका के ३२ विश्वविद्यालयों में और शिक्षण संस्थानों में हिंदी पढाई जाती है.ब्रिटेन की लंदन यूनिवर्सिटी, कैंब्रिज और यार्क यूनिवर्सिटी में हिंदी पढाई जाती है. जर्मनी के १५ शिक्षण संस्थानों में हिंदी भाषा और साहित्य का अध्ययन होता है . कई संगठन हिंदी का प्रचार करते हैं. 

चीन में १९४२ से हिंदी का अध्ययन शुरू हुआ. १९५७ से हिंदी रचनाऔं का अनुवाद कार्य आरंभ हुआ. हिंदी का गहन अध्ययन और अध्यापन जिन देशों में हो रहा है वह  अपने शोधार्थियों और अध्यापकों को अध्यापन के विशेष प्रशिक्षण के लिये भारत भेज रहे हैं. कुछ देश अपने विश्वविद्यालय में हिंदी अध्यापन के लिये भारतीय विद्वानों को आमंत्रित करते हैं. भारत सरकार के विनिमय योजना के अंतर्गत् दी जाने वाली छात्रवृत्ति के आधार पर कई विदेशी भारतीय अध्ययन करने भारत आते हैं.

पिछले कुछ वर्षों  से संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी को स्थान दिलाने के लिये निरंतर प्रयास जारी रहा है.८ विश्व हिंदी सम्मेलनों को इसी परिप्रेक्ष्य में आयोजित किये जाते रहे हैं, इनसे ही हम विश्व में  हिंदी के बढते कदम की गति को जान सकते हैं. हिंदी भारतवासियों के लिये साहित्य ही नहीं वरन्  एक दूसरे के हृदय को जोड़ने वाली ऊर्जा है. आपसी रिश्तों में प्रेम उपजाने वाला माध्यम है.

एक अमेरिकी भारतीय ने अपने दिल की बात साझा करते हुये कहा कि यहाँ प्रवासी भारतीयों को हिंदी की बहुत जरूरत है. यदि हमारे बच्चे हिंदी नहीं जानेंगें तो वह रामचरित मानस, हमारी प्राथनायें, ताजमहल को भूल जायेगें. हम सबके लिये हिंदी केवल भाषा नहीं वरन् हमारी संस्कृति की संचार वाहक है. इन सब कारणों से संसार के अनेक देशों में हिंदी का अध्ययन अध्यापन विविध रूपों से हो रहा है. 

अच्छी बात यह है कि इंटरनेट से हिंदी को नई ताकत मिली है. स्मार्ट फोन में औसतन ३२ एप्लिकेशन होते हैं जिनमें ८ या ९ हिंदी के हैं, ळर्‍घ्ण्ध्DE ने अहम् भूमिका निभाई है- ये तकनीक ऐसी है कि हर अक्षर को एक विशेष नंबर प्रदान करता है... इससे हिंदी में काम करना बहुत आसान हो गया है. 

इस स्ामय इंटरनेट पर हिंदी के १५ से ज्यादा सर्च इंजन मौजूद हैं.... इंटरनेट पर हिंदी के बढते कदम से भविष्य के प्रति आशा दृढ होती है.
एक अध्ययन के अनुसार हिंदी सामग्री की खपत करीब ९४ ज्ञ् तक बढी है. हर ५ में से एक व्यक्ति हिंदी में इंटरनेट प्रयोग करता है . फेसबुक, ट्विटर, और व्हाट्सऐप में हिंदी में लिख सकते हैं. गूगल हिंदी इनपुट, लिपिकडॉट इन, जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लिकेशन मौजूद हैं . इंग्लिश हिंदी अनुवाद भी संभव है.

तकनीकी विकास के साथ-साथ हिंदी भाषा ने भी डिजिटल दुनिया में अपनी जड़ें जमाई हैं . आज हिंदी में वेबसाइटें, ऐप्स, और यूट्यूब जैसे बड़े प्लेटफार्म पर हिंदी सामग्री की मांग और उपलब्धता तेजी से बढ रही है, इससे स्पष्ट होता है कि हिंदी अब एक वैश्विक डिजिटल भाषा के रूप में भी अपने कदम बढा रही है .

आजकल विदेशों में भी हिंदी के पत्र पत्रिकायें प्रकाशित हो रहे हैं. फीजी टाइम्स द्वारा प्रकाशित हिंदी ‘शांतिदूत’ साप्ताहिक पत्रिका विदेशी पत्रकारिता के लिये मील का पत्थर बन गयी है. मॉरिशस से प्रकाशित ‘वसंत’ इंग्लैंड से प्रकाशित ‘पुरवाई’, अमेरिका से प्रकाशित ‘सौरभ’ और ‘विश्व विवेक’ इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. तुलसीदास, सूर, कबीर, बिहारी जैसे कवियों की कवितायें विदेशी भाषा में अनूदित हुये हैं. आज व्यापक स्तर पर अनुवाद कार्य किया जा रहा है. प्रेम चंद्र का गोदान लगभग सभी भाषाओं में अनूदित हो चुका है. प्रसन्नता का विषय यह है कि विदेशियों के द्वारा हिंदी साहित्य का अनुवाद किया जा रहा है. 

आधुनिक युग विज्ञापन का युग है. हिंदी के मुहावरे और लोकोक्तियाँ जनता पर सीधा प्रभाव डालती हैं इसलिये अनेक अँग्रेजी चैनल हिंदी को विज्ञापनों का माध्यम बना रहे हैं.

विश्व मंच पर हिंदी की भूमिका संगीत और फिल्मों से भी जुड़ी हुई है. जगजीत सिंह, अनूप जलोटा, पंकज उधास, हरिओम शरण जैसे गायकों ने अपने गीत संगीत और गजलों के माध्यम से पूरे विश्व में हिंदी भाषा को पहुँचाया है. 
हिंदी की फिल्में, गाने, टी.वी. कार्यक्रमों ने विश्व में हिंदी को इतना लोकप्रिय बना दिया है कि केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी पढने वाले ६७ देशों के विदेशी छात्रों ने बताया कि हिंदी फिल्मी गानों को सुन कर हिंदी सीखने में मदद मिली. यूरोप में कोलाने, बीबीसी, ब्रिटिश रेडियो, सनराइज आदि चैनलों के हिंदी सेवा कार्यक्रमों को बड़े चाव से लोग देख रहे हैं. ‘आवारा हूँ’, ‘मुड़ मुड़ के न देख मुड़ मुड़ के’, ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘दम मारो दम मिट जाये गम,’ ‘चंदा हो चंदा’, ‘आ जा परदेसी’, ‘मैं तो खड़ी इस पार’, आदि मनपसंद प्रचलित गीत हैं. १९५५ के बाद से हिंदी फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों ने विश्वव्यापी लोकप्रियता प्राप्त की है. 

अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हिंदी आज विश्व की एक प्रतिष्ठित और मान्यता प्राप्त भाषा बन गई है. प्रवासी भारतीय हिंदी को भारतीय अस्मिता से जोड़ कर निरंतर उसकी प्रतिष्ठा के लिये कार्यरत हैं. यही कारण है कि हिंदी पूरे विश्व में जनभाषा के रूप में प्रचलित है. 
१- इसके विश्व व्यापी प्रचार प्रसार के लिये तकनीकी और पारिभाषिक तथा कोष ग्रंथों को विस्तृत रूप से उपलब्ध कराया जाये. हिंदीभाषा के ऐसे पाठ्यक्रम उपलब्ध कराये जायें जिसकी सहायता से चिकित्सा, इंजीनियरिंग जैसे तकनीकी और वैज्ञानिक विषयो को भी सीखा जा सकें . 
२- हिंदी भाषा में सीखने में लिंग का प्रयोग एवं पहचानने में कठिनाई महसूस होती है. हिंदी में स्त्री लिंग और पुल्लिंग है तीसरा नपुंसक लिंग नहीं है ..हिंदी के विद्वान भी कई बार गलती कर जाते हैं जैसे टेबिल जैसे निर्जीव वस्तु के लिये पुल्लिंग का प्रयोग मेज के लिये स्त्रीलिंग मेज अच्छी है. इसलिये यदि इस भाषा में भी न्यूट्रल जेंडर यानी नपुंसक लिंग को जोड़ देने से लिंग संबंधी समस्या हल हो सकती है. 
३- हिंदी की व्यवहारिक शैली में भी सरलता लानी चाहिये . हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम अपनी भाषा हिंदी को उस समाज के सामने ले जाना चाह रहे हैं जो इस भाषा से बिल्कुल भी संबद्ध नहीं है. हमें उनकी सुविधा के लिये सरल शब्दों का प्रयोग करना होगा और साथ ही उनकी भाषा और संस्कृति के प्रति आदर का भाव रखना होगा . 
४- वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार प्रसार में एक बाधा आर्थिक विषमता है ...हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार कार्य के लिये आवश्यक संसाधनों का अभाव है. अतः आवश्यकता है कि इसके लिये जारी धनराशि में बढोत्तरी की जाये.
५-हिंदी भाषा के विकास में हिंदीतर भाषी लोगों का भी योगदान अविस्मरणीय है. देश की विभिन्न संस्थायें जैसे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा...चेन्नई , केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा आदि संस्थायें हिंदी भाषा के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं किंतु इनका क्षेत्र केवल भारत तक सीमित न रहे वरन् समूचा विश्व हो. 
६- विश्व स्तर पर हिंदी की परीक्षा का आयोजन कर विदेशों में हिंदी के प्रति रुचि रखने वालों को प्रोत्साहित कर सकते हैं. 
७- विश्व के कई देशों में व्यापक रूप से हिंदी का अध्ययन और अध्यापन हो रहा है. विदेशी विश्वविद्यालय तो हिंदी भाषा अध्ययन के महत्वपूर्ण केंद्र बन गये हैं. 

भाषा एवं साहित्य सृजन का कार्य केवल भारत में ही नहीं हो रहा है वरन् विश्व के कई प्रवासी भारतीयों तथा विदेशियों के द्वारा भी हो रहा है. फिजी के कमला प्रसाद मिश्र , रामनारायण, जोगेन्द्र सिंह, कँवल सुब्रमणी, मॉरिशस के अभिमन्यु अनन्त, बृजेंद्र कुमार, भगत मधुकर आदि के योगदान महत्वपूर्ण है. सच तो यह है कि हिंदी की यह अंतर्राष्ट्रीय भूमिका एक स्वप्न नहीं वरन् विश्व भाषा की ओर बढते कदम हैं. जाति धर्म, वर्ण और राष्ट्र की सीमा से परे हिंदी प्रेम, अहिंसा, शांति, मित्रता, सौहार्द्र, सहिष्णुता, सेवा सद्भावना की भाषा के रूप में विश्व में प्रतिष्ठित है. हमारी हिंदी भाषा और संस्कृति मानव जाति को आपस में जोड़ने का संदेश देती है.

विश्व के हिंदी समुदाय को एक सूत्र में बाँधने के लिये भारत तथा अन्य देशों के अध्यापकों, हिंदी अध्यापकों, हिंदी अध्यापन कैंद्रों और हिंदी लेखकों का एक विश्व परिचय कोष बनाने की पहल की जानी चाहिये. 
विश्व हिंदी सम्मेलनों का आयोजन लंबे अंतराल के बाद न आयोजित किये जायें वरन् अल्पावधि में नियत किया जाये. उनके आयोजन के लिये विश्व हिंदी समिति का गठन किया जाये. 

भारत से बाहर के विद्वानों ने हिंदी में जो रचनायें दी हैं उनके प्रकाशन की व्यवस्था हो. उन रचनाओं को हिंदी साहित्य में समुचित स्थान दिया जाये और उनका समावेश भारत के विद्यालयों, महाविद्यालय तथा विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में किया जाये .

विभिन्न देशों के श्रेष्ठ लेखकों को भारत में बुलाकर सम्मानित और पुरुस्कृत किया जाये तथा उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन प्रकाशित किया जाये. भारत से बाहर रहने वाले हिंदी प्रेमियों को नवीनतम हिंदी प्रकाशनों की सूचना आसानी से उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाये.

प्रवासी भारतीय साहित्यकारों को हिंदी साहित्य के इतिहास में स्थान मिलना चाहिये. आदान प्रदान को दृष्टि में रख कर ब्रिटिश काउंसिल की तरह एक संस्था की स्थापना  भारत में भी की जाये जो भारत सरकार और भारतीय जनता के आर्थिक सहयोग से संचालित हो. ऐसी संस्थाओं के लिये अपेक्षित सहायता प्रवासी भारतीय भी कर सकें. 

इन संस्थाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति, कला और राष्ट्र भाषा हिंदी तथा अन्य विदेशी भाषा के सभी विद्वानों को एकत्र करके हिंदी शिक्षण के लिये पाठ्य पुस्तकें  तैयार की जानी चाहिये.
आजकल विज्ञापन का समय है विज्ञापन के सहारे मूल्यहीन वस्तु को मूल्यवान बनाया जा सकता है. आधुनिक वैश्विक बाजार में विनिमय करने के लिये विज्ञापन का सहारा लेकर आगे बढना है. 
आज की स्पर्धा की दुनिया में हिंदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है. इसके लिये हमें भी बदलते परिवेश के साथ कदम से कदम मिला कर आगे बढना है. भूमंडलीकरण का युग व्यापार का युग है. एक देश का पड़ोसी देश बाजार है इसलिये हिंदी को भी अब व्यापारी का मुखौटा पहनना पड़ेगा. 

हमारी हिंदी केवल एक भाषा नहीं है, वरन् संस्कृति, विचारधारा और विश्व दृष्टिकोण का प्रतीक है. वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्वीकार्यता और प्रभाव बढने के साथ, यह कहना गलत नहीं होगा कि भविष्य में हिंदी एक सशक्त वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित अवश्य होगी. 

पद्मा अग्रवाल

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