Hindi Poetry | क्या से क्या बन गए आप
शांति और सकून ममता और अपनत्व क्या क्या समझा था क्या से क्या बन गए आप ।
शांति और सकून
ममता और अपनत्व
क्या क्या समझा था
क्या से क्या बन गए आप ।
सब दिन मान रखा,
अपनों सा ख्याल रखा
किसी के लगाव को
खोते जा रहे हैं आप।
क्या से क्या बन गए आप ।।
जिसे पानी समझ रहे हैं
वह पानी नहीं है
मृगतृष्णा में भटक रहें हैं आप।
क्या से क्या बन गए आप ।।
आप कैसे थे?
अरुणोदय में दर्शन होते थे,
शबनम में आभा दमकते थे,
दुख दर्द में सदा साथ थे ,
हाथों में हाथ ना थे ,
फिर भी दोनों साथ थे ।
आंखों से आंख मिलते थे,
सवाल के जवाब होते थे,
धूल के फूल की तरह
बिखर रहे हैं रिश्ते नाते ।
लोग नए रिश्ते से खुश हैं,
विरासत से टूट रहे हैं नाते।
प्रसून से पाषाण बन गए आप ।
क्या से क्या बन गए आप।।
आपमें ही शारदे ढूंढता हूं,
गणेश लक्ष्मी रिद्धि सिद्धि भी
वाणी में गजल ढूंढता हूं,
शुभ लाभ भी और प्रसिद्धि भी,
ढूंढते हुए भी आपको ना ढूंढ पाया
माप ना पाया प्रेम की परिधि भी ,
नारी मन है क्षण क्षण मन है
तारीख जैसे बदल रहे हैं आप
क्या से क्या बन गए आप ।
अरुण यादव "अरुण"
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