Hindi Poetry | मैं कौन हूं?
जन्म से मृत्यु तक आशाओं को ढोता, पूर्वनिश्चित रास्तों पर बेहोशी में लुढ़कता
 
                                    जन्म से मृत्यु तक आशाओं को ढोता, 
पूर्वनिश्चित रास्तों पर बेहोशी में लुढ़कता,
शरीर, समाज और संयोग से बना 
पुतला हूँ मैं।
कामना जनित कर्मों में लिप्त,
प्रकृति के भोगों में आसक्त,
प्रतिपल कुछ पाने को आतुर,
अपूर्ण अहम हूँ मैं।
खोखले विश्वास, खोखली मान्यताओं में,
समाज जनित रीतियों की विवश्ताओं में,
न पूरा जीता, न पूरा मरता
जीवित मुर्दा हूँ मैं।
जो मिला संयोगवश उसका कृतज्ञ नहीं
जीवन की रिक्तताओं के दुःख में,
इसको भी खोता, उसको भी खोता
निपट मूढ़ हूँ मैं।
रंगोली अवस्थी
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