क्यूँ बने हो अश्म
पर्यंक पड़ा है खाली , प्रयूषण लगे है थाली ।
ये बैरन राका ,
ले गई मेरी गुड़ाका ।
पर्यंक पड़ा है खाली ,
प्रयूषण लगे है थाली ।
चमक रही ये प्यारी अंशु,
आँखों में मेरे अंबु ।
क्यूँ बने हो अश्म,
क्यूँ न दिखें मेरे अश्क ।
आ जाओ तुम मोरे आँगन ,
तन मन प्यासे है साजन ।
आ जाओ तुम तो ,
लगाऊँ मैं अँखियों में अंजन,
आ जाओ तुम तो ,
पहनूँ मैं हाथों में कंगन ।
आओ जीमो तुम व्यंजन,
बैठो झलती हूँ मैं व्यजन।
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राका- चाँदनी रात अंबु - आँसू
गुड़ाका - नींद , अश्म -पत्थर
पर्यंक - पलंग , व्यंजन- खाद्य पदार्थ
पर्यूषण - स्वाद रहित, व्यजन -पंखा अंशु - किरण
डॉ. ( श्रीमती) प्रवीण शर्मा
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