गीतों में मेरे तुम आना...
बुद्धि कलम दावात लिए कोरे पन्नों को हाथ लिए वाणी भावों का विमल विम्ब साहित्य सृजन का सार लिए हे वीणा वादिनि बुद्धि प्रदा वीणा के तार बजा जाना गीतों में मेरे तुम आना, वात्सल्य मधुर माखन लाना

बुद्धि कलम दावात लिए
कोरे पन्नों को हाथ लिए
वाणी भावों का विमल विम्ब
साहित्य सृजन का सार लिए
हे वीणा वादिनि बुद्धि प्रदा
वीणा के तार बजा जाना
गीतों में मेरे तुम आना,
वात्सल्य मधुर माखन लाना
संदेश प्रेम परिभाषित हो
अपनेपन का कलरव लाना
आकर्षण सुखद आभाषित हो
अभिभूत ह्रदय को कर जाना
नव चेतन चिन्तन का विहान
प्रमुदित उर्जित उष्मित उड़ान
उड़ती रज रेणु महक चंदन
नवनीत लिए हंसते आना
गीतों में मेरे तुम आना।।
वर्णो में वर्ण भिन्न बनकर
अक्षर में भाव शिखर बनकर
शुचि शब्द सुघर सुष्मित सुन्दर
साहित्य सृजन नूतन बनकर
गीतों में मेरे तुम आना,
रस से रस रसिक रसाल सदृश
कोयल की कूक पुकार सदृश
जैसे रसभरी सुबह आती
सुमनो में मुदित आभार सदृश
तितली की तरह मचल आना
बागों की महक पवन लाना
भ्रमरों को उद्वेलित करके
गाकर गुंजार लिपट जाना
गीतों में मेरे तुम आना,
छन्दो की लचक लिए आना
गागर में सागर भर जाना
अर्धाली यति अवरोह लिए
मात्रा में स्वर मंगल गाना
पगडंण्डी सा अवरोह लिए
चौपाई में संदेश लिए
उल्टा पुल्टा दोहा बनकर
सोरठा भाव में मुस्काना
गीतों में तुम मेरे आना,
बनकर के भाव भंगिमा में
संगीत गीत की अणिमा में
बस मधुर महक बागन लिए
वैभव का सृजन अपार लिए
बन कला कदम्बिनि झूलति-सी
पुरवा की अलसित डोलति-सी
घट भर पीयूष लिये आना
मेरे गीतों में तुम आना,
सजधज कर शब्द ऋंगार किए
मृदुता का नव उपहार लिए
सुषमा बन अलंकरण जैसी
उन्मुक्त प्यार का सार लिए
स्पर्श अधर जो कर जाए
जिह्वा का स्वाद मधुर आए
रस टपक टपक स्पर्श करे
कर श्रवण पुष्प हिय खुल जाये
बस मन्त्र मुग्ध करते जाना
गीतों में तुम मेरे आना,
तरुणाई का अरुणाभ लिए
ऊषा का सुखद विहान लिए
वह ह्रदय शब्द स्वर फूट पड़े
पतझड में मधुरस टूट पड़े
सुनना गहना चिन्तन करना
व्याकरण करे आकलन सदा
ऐसा सिद्धांत स्वभाव लिए
दृग देखे श्रवण करा जाना
मेरे गीतों में तुम आना,
अरहट पुरवट चरखी कहार
ज्यों रुनक झुनका पायल पुकार
झिंगुर दादुर कलरव प्रपात
शुक कीर सुरीले टीम टार
मद मदन पीर ले पवन बहे
विटपों से लिपटी लता कहे
आनन्दित हो मन महक भरे
अभिसार और मनुहार कहे
संचयन काव्य बन कर छाना
मेरे गीतों में तुम आना,
सरगम के सातों स्वर लेकर
नभ क्षितिज चूमता पल लेकर
आभा हो इन्द्रधनुष जैसी
उडते नभचर का रव लेकर
माँ वीणा वादिनि नमन तुझे
लेखनी समर्पित वरण तुझे
देकर सात्विक सुबुद्धि माते
भावों को सरस बना जाना
मेरे गीतों में तुम आना।।
डॉ. कृपाशंकर मिश्र
मुंबई, महाराष्ट्र
What's Your Reaction?






