The Carpenter and God's Justice : बढ़ई और ईश्वर का न्याय
A mythical tale of a carpenter who crafts golden palanquins for Yamaraj. When his wife uncovers the secret, it leads to unexpected events that take villagers to Yamlok. Discover how a son redeems his parents from torment.

The Carpenter and God's Justice : एक गांव में एक बढ़ई रहता था। उसकी बनी पालकियाँ दूर-दूर तक प्रसिद्ध थीं। वह अपने कार्य में बहुत ही अधिक व्यस्त रहता था। उसके कार्य से स्वयं यमराज भी प्रभावित थे, इसलिए वे आत्माओं को पृथ्वीलोक से स्वर्गलोक तक ले जाने के लिए पालकियों का निर्माण करवाते थे। प्रतिदिन दो यमदूत आते और बढ़ई को स्वर्णरथ पर बैठाकर दूर स्वर्गलोक ले जाते थे। प्रतिदिन यही होता था, इस हेतु बढ़ई देरी से घर पहुँचता था, उसे घर पहुँचते-पहुँचते अर्धरात्रि का समय हो जाता। उसकी पत्नी उसका इंतजार करते-करते थक हारकर सो जाया करती थी।
एक रात्रि जब बढ़ई देरी से घर पहुँचा तो पत्नी ने उसे खाना परोसा और बाहर बर्तन धोने लगी तो पड़ोस की एक स्त्री ने उससे पूछ ही लिया- `दुग्गा! आज खाना बनाने में देरी हो गई क्या? इतनी रात को बर्तन कैसे मांझ रही हो?'
‘कुछ नहीं राधा बहन, आजकल ये बड़े ही व्यस्त रहते हैं काम में और घर भी देरी से आ पाते हैं। काम खत्म करते-करते देर हो जाती है।' दुग्गा ने सहजता से जवाब दिया।
दुग्गा के इस जवाब से भला राधा क्यों संतुष्ट होने लगी। स्त्री का स्वभाव ठहरा भी कुछ ऐसा कि दूसरों के घरों में झाँके बिना और बातों को कुरेदे बिना चैन ही नहीं मिलता। वह दुग्गा से बोली- ‘अरे दुग्गा बहन, बहुत ही सीधी हो तुम। पति ने जैसा कहा तुमने मान लिया! ये मर्द जात होती ही कुछ ऐसी है। ये जानते हैं कि औरत को कैसे बरगलाना है। अरे! दुग्गा बहन तुम्हें पता करना चाहिए कि तुम्हारे पति आखिर इतनी देरी से आते ही क्यों हैं?'
कहावत है कि भड़ काने से तो डूंगर भी भड़क जाते हैं, फिर यह तो एक स्त्री ठहरी। चिंगारी को हवा मिल चुकी थी। दुग्गा की भौंहें चढ़ गईं, उसने तय किया कि अब वह पता लगाकर रहेगी कि उसके पति आखिर इतनी देर से घर क्यों आते हैं।
अगले दिन जब बढ़ई देर रात घर पहुँचा, तो पत्नी को बेसब्री से उसका इंतजार करते पाया। दुग्गा ने अपने पति से सवाल किया- ‘सुनिए जी, आप घर इतना देरी से क्यों आते हैं?'
बढ़ई ने देखा दुग्गा का चेहरा गुस्से से तना हुआ था। बढ़ई ने नजरें फेरते हुए कहा- ‘बताया तो था कि काम बहुत है, खत्म करते-करते देर हो जाती है। फिर बार-बार एक ही सवाल क्यों?'
‘आपको क्या लगता है, आप कुछ भी बताएंगे और मैं सच मान लूंगी? इतनी पागल लगती हूँ मैं आपको? सच-सच बताइए आपको इतनी देर क्यों हो जाती है, नहीं तो मैं अपने पीहर चली जाऊँगी, और फिर कभी वापस नहीं आऊँगी।'
दुग्गा ने अपना अमोघ अस्त्र चला दिया था और दुनिया के किसी भी पति के पास इसका उत्तर नहीं होता। बढ़ई तुरंत घबराते हुए बोला- ‘नहीं, नहीं भागवान! ऐसा न करना। लेकिन तुम मुझसे वादा करो कि जो कुछ भी मैं तुम्हे बताऊंगा तुम ये बात किसी को नहीं बताओगी।'
‘ठीक है, नहीं बताऊँगी।' दुग्गा ने अपने पति की आँखों में झाँकते हुए कहा। बढ़ई ने कहा- ‘तो सुनो, प्रतिदिन मुझे घर आने में देरी इसलिए हो जाती है क्योंकि मुझे देखकर दो यमदूत आकर यमलोक ले जाते हैं और मैं वहाँ पर उनके लिए पालकियाँ बनाता हूँ, जिसमें वे मृत आत्माओं को पृथ्वी से यमलोक ले जाते हैं और देर रात मुझे वापस धरती पर छोड़ जाते हैं। मगर ये बात उन्होंने किसी को भी बताने से मना किया था, किन्तु अब मेरा यह राज़ तुम भी जानती हो। मगर अब तुम किसी को भी नहीं बताओगी, इस बात का वादा करना होगा।'
दुग्गा ने उत्सुकतापूर्वक कहा- ‘ठीक है, लेकिन जब वे तुम्हें लेने आएंगे, तब मैं तुम्हें दूर से देख तो सकती हूँ ना?' ‘ठीक है! लेकिन दूर से। इस बात का ध्यान रहे।'
दुग्गा पति की हाँ सुनकर खुशी से झूम उठी। अगली शाम वह दूर से यमदूतों के आने का इंतजार करने लगी। जब स्वर्णरथ पर सवार यमदूत आए, दुग्गा ने भागकर पालकी के पीछे पकड़ लिया और यमलोक पहुँच गई। वहाँ सब लोग दंग रह गए। यमदूतों ने उसे यमलोक घुमाया और उसे यह भी देखने को मिला कि उसके गांव के कुछ लोग पाप के कारण सजा पा रहे हैं। उसके बाद घटनाओं की श्रृंखला में दुग्गा ने गांव की एक स्त्री कमला को यमलोक में अपने सास-ससुर की हालत बताते हुए कह दिया। कमला ने अपने पति से कहा, बात बढ़ी, गांव के लोग आक्रोश में बढ़ई के घर आ धमके।
बढ़ई ने उन्हें अगले दिन साथ आने को कहा और कमला का पति मनमोहन भी उसी स्वर्णरथ से यमलोक पहुँचा। वहाँ उसने अपने माता-पिता को यातना में देखा और रो पड़ा। उसने यमराज से विनती की। यमराज ने कहा कि यदि वह १० वर्षों तक नंगे पैर गायों को चराए और सेवा करे, तो वह अपने माता-पिता को मुक्त करवा सकता है।
मनमोहन ने यह सजा स्वीकार की और अपने माता-पिता को स्वर्ग में प्रवेश दिलवाया।
डॉ. पीतांबरी
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