सूखे गुलाब

वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा था, उसके पैरों की जगह खालीपन था, जैसे किसी ने उसकी देह से दो पेड़ उखाड़ दिए हों। हवा में डिसइन्फेक्टेंट की गंध घुली थी, और उसकी नसों में दर्द की एक लहर धीरे-धीरे उठती-गिरती रहती थी। उसने अपनी हथेली खोली-वहाँ एक सूखा गुलाब रखा था, जिसकी पंखुड़ियाँ कागज की तरह भुरभुरी हो चुकी थीं। यह गुलाब उसकी पत्नी का अंतिम उपहार था, वैलेंटाइन डे का वह लिफाफा जिसमें लिखा था: `तुम्हारी सांसों की गर्मी ही मेरी हवा है...' 

May 30, 2025 - 16:37
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सूखे गुलाब
dried roses

प्रथम: सफेद दीवारें और बिखरे हुए क्षण
उसकी आँखें खुलीं तो सामने सफेद दीवार थी-एक खाली कैनवास जिस पर समय की धूल जमी हुई थी। वह अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा था, उसके पैरों की जगह खालीपन था, जैसे किसी ने उसकी देह से दो पेड़ उखाड़ दिए हों। हवा में डिसइन्फेक्टेंट की गंध घुली थी, और उसकी नसों में दर्द की एक लहर धीरे-धीरे उठती-गिरती रहती थी। उसने अपनी हथेली खोली-वहाँ एक सूखा गुलाब रखा था, जिसकी पंखुड़ियाँ कागज की तरह भुरभुरी हो चुकी थीं। यह गुलाब उसकी पत्नी का अंतिम उपहार था, वैलेंटाइन डे का वह लिफाफा जिसमें लिखा था: `तुम्हारी सांसों की गर्मी ही मेरी हवा है...' 
उसने आँखें मूँद लीं। अचानक, समय की परतें खिसकने लगीं। वह फिर उस रात में था-जब बारिश की बूँदें कार की खिड़की पर टकरा रही थीं, और उसकी पत्नी ने हँसते हुए कहा था, `डरो मत, हम घर पहुँच जाएँगे।' पर वे नहीं पहुँचे। एक ट्रक की लाइटें अँधेरे में चीख उठीं, और फिर सब कुछ शांत हो गया-जैसे किसी ने दुनिया का स्विच ऑफ कर दिया हो।

द्वितीय: शरीर की भाषा और गायब होते प्रतिबिंब
उसकी पत्नी, नैना, एक चित्रकार थी। वह कहती थी,`शरीर भी एक कैनवास है-जिस पर दर्द और प्रेम के रंग उकेरे जाते हैं।' उसके हाथों में हमेशा पेंट के दाग होते थे, जैसे उसकी उँगलियाँ रंगों से बातें करती हों। अब वह नहीं थी, पर उसकी कलाकृतियाँ अभी भी उनकी दीवारों पर लटकी थीं-एक सफेद कैनवास पर नीले रंग की अराजक लकीरें, जो नैना के अंतिम दिनों की चुप्पी को दर्शाती थीं।
उसने अपने पैरों की ओर देखा। खालीपन उसे निगल रहा था। उसे याद आया कि कैसे नैना ने एक बार उसके घावों को चित्रित किया था-सिपाही की देह पर उभरे निशानों को उसने फूलों में बदल दिया था। `दर्द भी सौंदर्य बन सकता है,' वह कहती थी। पर आज उसके अपने घाव बदसूरत थे-नंगी हड्डियों और मांस के टुकड़ों की एक अधूरी कहानी।

 तृतीय: स्मृतियों का अतियथार्थवाद
रातों में, जब अस्पताल की घड़ी की टिक-टिक उसकी नींद को काट देती, वह नैना के साथ उनके पुराने घर की छत पर खड़ा होता। हवा में नमक की गंध थी, और समुद्र की लहरें दूर से गूँज रही थीं। नैना ने उसके कान में फुसफुसाया,`क्या तुम्हें लगता है कि मौत के बाद भी रंग होते हैं?' उसने कोई जवाब नहीं दिया। वह जानता था कि यह सिर्फ एक सपना है-एक ऐसा सपना जिसमें मृत लोग जीवितों से ज्यादा सच्चे लगते हैं।
कभी-कभी, वह उस दुर्घटना को फिर से जीता-ट्रक की चीख, कांच के टुकड़े हवा में उड़ते, और नैना का हाथ उसकी हथेली से फिसलता हुआ। `माफ करना,' वह चिल्लाता, पर उसकी आवाज बारिश में डूब जाती। उसकी चेतना अतीत और वर्तमान के बीच डगमगाती थी-एक ऐसी धारा जिसमें सच और कल्पना का अंतर मिट चुका हो ।

चतुर्थ: गुलाब

 की पंखुड़ियों का गणितनैना ने गुलाब को सूखने दिया था। `यह हमारे प्यार का प्रमाण होगा-समय के सामने झुकने वाला, पर टूटने वाला नहीं,' उसने कहा था। पर अब वह गुलाब उसकी हथेली में था-एक नाजुक अवशेष, जिसे छूने से डर लगता था। यह सफेद नहीं था, बल्कि लाल रंग का मुरझाया हुआ एक टुकड़ा था-जीवन की नाजुकता का प्रतीक ।
एक सुबह, उसने नर्स से कहा, `क्या आप इसे फेंक देंगी?' नर्स ने सिर हिलाया, पर उसने गुलाब को कूड़ेदान में नहीं, बल्कि अपनी जेब में रख लिया। वह जानता था कि यह उसकी अंतिम कड़ी है—नैना के साथ बिताए उन पलों की, जब दुनिया अभी भी संपूर्ण थी।

पंचम: मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच
युद्ध के मैदान में, उसने देखा था कि कैसे लोग मरते हैं—एक पल में चीखते हुए, अगले पल में शांत। पर नैना की मौत अलग थी। वह धीरे-धीरे उसके हाथों से फिसली, जैसे कोई छाया हो। कभी-कभी, वह सोचता कि क्या मृत्यु भी एक तरह का अनुवाद है। शायद नैना अब किसी और भाषा में जी रही थी, जहाँ दर्द नहीं, सिर्फ रंग थे।
उसने अपनी डायरी खोली-एक खाली पन्ने पर उसने लिखा: 'तुम्हारे बिना, मेरा शरीर सिर्फ एक कब्र है।' यह वाक्य अधूरा रह गया, जैसे उसकी जिंदगी।

षष्ठ: अंतिम सांसों का संगीत
जिस दिन उसे अस्पताल से छुट्टी मिली, उसने गुलाब को समुद्र में बहा दिया। पानी की लहरें उसे दूर ले गईं-एक सूखे फूल को, जो कभी ताजा था। यह एक विदाई थी-न किसी विजय की, न हार की,बल्कि सिर्फ स्वीकार की।
उस रात, उसने सपना देखा कि नैना एक सफेद कैनवास पर चित्र बना रही है। उसके पैर वापस आ गए थे, और वह दौड़कर उसके पास पहुँचा। पर जैसे ही उसने उसे छुआ, वह धुंधला गई-सिर्फ गुलाब की पंखुड़ियाँ हवा में तैरती रह गईं।

प्रकाश नीरव 
रोहतास (बिहार)

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