हिन्दी प्रेमी
अगर हिन्दी नहीं बोलेंगे हम हिन्दोस्ताँ वाले, तो फिर सोचें कि क्या सोचेंगे ये सारे जहाँ वाले।
अगर हिन्दी नहीं बोलेंगे हम हिन्दोस्ताँ वाले,
तो फिर सोचें कि क्या सोचेंगे ये सारे जहाँ वाले।
यहाँ बोलें, वहाँ बोलें, जहाँ जाएं वहाँ बोलें,
बता दें सारी दुनिया को, कि हम सब हैं कहाँ वाले।
सहज हिन्दी को पढ़ना है, सरल इसकी लिखावट है,
बड़ाई करते हिन्दी की, यहाँ वाले, वहाँ वाले।
ये हिन्दी मात्र इक भाषा नहीं है, मातृभाषा है !
चलो मिलकर कहें हम सब, कि हम हैं एक माँ वाले।
न कोई वैर उर्दू से, न अंग्रेज़ी से है झगड़ा,
हर इक भाषा के शुभचिंतक हैं हम हिन्दी ज़ुबाँ वाले।
सुनिश्चित रूप से ऐ नियाज़, तुम हिन्दी प्रेमी हो !
तभी तो तुम में भी कुछ गुण हैं, इंशाअल्ला ख़ाँ वाले।
नियाज़ कपिलवस्तुवी
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