डोलियां उठने लगी बरसात की
सर्दियों के दिन सुनहरे आ रहे ।
गुनगुनी सी धूप में
सोना बिखरता जा रहा है
सुआ पंखी रंग घर
आंगन उतरता जा रहा है
क्यारियों में फूल खिलते
खूबसूरत मन को लुभाते
रजनीगंधा रातरानी
झूमते खूश्बू लुटाते
छतों पर छप्परों पर
पहुंची लताएं झुमती
हवा पेड़ों की मचलती
फूनगियो को चुमती
हर सुबह तितली फूलों के
कान कहती मुस्कुराओ
शाम को कहता अंधेरा
द्वार पर दीपक जलाओ
खेलते बच्चे भले लगते बहुत
खिलखिलाते चेहरे सबको भा रहे ।
पत्तियों की छन्नियो से
रोज छनकर धूप आती
रातरानी मोगरे के साथ
मिलकर गुनगुनाती
रोज बरगद नीम पीपल
धूप का आनंद लेते
नदी की लहरों पे किरणें
बुलबुलों की नाव खेते
हर सुबह से शाम पीली
धूप का ही राज रहता
पंछियों की बोलियों का
हर सुबह आगाज रहता
शाम सिंदूरी हवाओं को
मधुर शीतल बनाती
रात बुनती चादरें
खामोशियों में गुनगुनाती
नम हवाएं खोले यादों के दरीचे
पल बहुत खामोशियों के छा रहे ।
आओ बातें करें
एक दिन फिर समुन्दर में लो खो गया
आओ बातें करें चाय पर शाम की ।
फिर गुणा भाग में मैं भटकने लगा
आंख में कोई सपना खटकने लगा
बात करना भी तो है जरूरी बहुत
बोलते बोलते मैं अटकने लगा
कुछ न कुछ सोचते मौन होता हूं मैं
अपने मन से जीऊं कौन होता हूं मैं
धूप में छांव में शहर में गांव में
मुख्य घर के सपन गौण होता हूं मैं
राह चलते हुए क्या से क्या हो रहा
मेरे होंठों पर बातें तेरे नाम की ।
सुबह शाम तक लाभ हानि की बातें
शक्कर नमक तेल पानी की बातें
घर और आफिस पर देर तक
चलती रही जिंदगानी की बातें
छोटी छोटी ख़ुशी के पलों में रहो
मंद शीतल पवन की लहर में बहो
कुछ घड़ी आओ सपनों में खो जाएं हम
तुम मेरा प्यार हो आओ मुझसे कहो
वक्त की इस लहर में जरा डूब जा
इक घड़ी आ रही है ये आराम की ।
मुकेश तिरपुडे