पुरानी किताबें और स्मृतियां
दायित्वों के बोझ तले, इक अरसा हुआ बिना मिले। घनिष्ठ मित्रता थी जिनसे, दायित्वों में फंस किया परे।
अलमारी से झांक रही,
अपने पास बुला रही।
किताबें थी बहुत पुरानी,
उत्सुकता मेरी जगा रही।
दायित्वों के बोझ तले,
इक अरसा हुआ बिना मिले।
घनिष्ठ मित्रता थी जिनसे,
दायित्वों में फंस किया परे।
खोल अलमारी निकाली किताब,
स्मृतियां उनमें बेहिसाब।
कहीं सूखे पुष्प मिले,
कहीं स्मृतियों के निशां मिले।
कितने राज़ छिपे थे उनमें,
वक्त के संग दफ़न हुए।
आज पुनः खोली किताब,
सब के सब दृष्टिगत हुए।
घिर गई उन स्मृतियों में,
जिन्हें सबसे छिपाया था।
स्पर्श किया पुष्प गालों से,
जिसने बहुत लुभाया था।
सविता सक्सेना 'दिशा'
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