हमारे संस्कार हमारी धरोहर
दादी करें जब पूजा-पाठ , और दादाजी सैर - सपाट । इन संस्कारों को अपनायें , धरोहर उनको फिर बनायें
दादी - दादा से मंदिर घर ,
झुकाते अपना माथा हर ।
वृद्धों से घर तीर्थ समान ,
करें सभी उनका गुणगान ।।
दादी करें जब पूजा-पाठ ,
और दादाजी सैर - सपाट ।
इन संस्कारों को अपनायें ,
धरोहर उनको फिर बनायें ।।
ये हमें पढ़ाते रहते रोज ,
नहीं बनें हैं घर में बोझ ।
पापा रखते सबका ध्यान ,
उनको सब बातों का ज्ञान ।।
हर दिन जाते हैं दफ्तर ,
सांझको आते प्रतिदिन घर ।
मम्मी सबकी सेवा करती ,
सुख-दुख समभाव सहती ।।
देती हैं शिक्षा संग संस्कार ,
काम कभी न मानती भार ।
हम भी मेहनत से पढ़ते ,
नहीं कभी किसी से लड़ते ।।
पशु-पक्षियों से करते प्यार ,
चारा-पानी उन्हें हर बार ।
वृद्ध सेवा अतिथि सत्कार ,
हमारे परिवार का संस्कार ।।
नंगे - प्यासे और जो भूखे ,
उनके मन रखते नहीं रूखे ।
मकान बना है हमारा घर ,
बंधा रिश्तों की डोर से हर ।।
सुखी परिवार स्वर्ग समान ,
इसको हर मानव ले जान ।
संस्कार सभी धरोहर बनायें ,
ऐसा कर फिर पुण्य कमायें ।।
क्षणिक होते धन-संपदा हर ,
समझे इस सूत्र को हर ।
धरोहर सच्चे होते संस्कार ,
फिर बन न पाते बच्चे भार ।।
सोच बदलनी होगी सबको ,
राह दिखानी होगी जग को ।
कहें जितने भी हैं नर-नारी ,
संस्कार ही धरोहर हमारी ।।
डॉ.सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
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