कहा क्यों नहीं?
अपने शरीर से थोड़ी दूर खड़ी हो कह रही थी खुद से जो किया सही किया माँ-बाबा का मान रख लिया
अपने शरीर से थोड़ी दूर खड़ी हो
कह रही थी खुद से
जो किया सही किया
माँ-बाबा का मान रख लिया
कोने में बैठे अपने पति को देखा
उनकी आँखों में देख बोली
लो तुम्हारे खातिर खुद को मिटा दिया
तभी एक नज़र देखा सिसकती माँ को
जोर-जोर से बिलखते पिता को
रोते बिलखते कह रहे थे
बेटी तुझे देखा, कभी पढ़ा नहीं
क्यों मैंने कभी तेरे मन को सुना नहीं?
माँ की सिसकियाँ कह रही थी
क्यों लाडो तुझे आवाज उठाने को कहा नहीं?
जाके पास बैठी एक नज़र उन्हें देखा
और फिर वो बोली यूँ
जब जिंदा थी तो कहते थे
कहती क्यों हो, सहती क्यों नहीं
आज जब नहीं हूँ तो सिसकते हो
सहती क्यों कहा क्यों नहीं
संगीता दवे
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