लौटना
बेटियाँ जब लौट आती हैं पीहर देखती है रूठा घर -द्वार अपना
बेटियाँ जब लौट आती हैं पीहर
साथ में लाती हैं टूटते सपने
मेहंदी रचे हाथों में उलझी लकीरें
माथे पर फीकी पड़ती बिंदिया
पैरौं में उदास पड़ी रूनझुन पायल
अनेकों अनुतरित प्रश्न भी
बेटियाँ जब लौट आती हैं पीहर
देखती है रूठा घर -द्वार अपना
पढ़ लेती है स्वजनों की कटूता
जान लेती है अस्वीकार्य अपनत्व
सब में खोजती है खुद को
अनेकों खुलते बंद होते द्वार भी
बेटियाँ जब लौट आती हैं पीहर
नये घर की रची बसी खुशबू संग
नये घर की कड़वी तीखी बातें भी
नये घर में संतुलित करती सौ यादें
अपने ही अस्तित्व को समेटती हुई
बेटियाँ लौट आती हैं..।
डॉ नीना छिब्बर
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