जहां चाह वहाँ राह
। एक ऐसी लड़की जो बिना पांव के भी एवरेस्ट की ऊंचाइयों को छूकर आती है। एक ऐसी लड़की, जो अपने पक्के इरादे, कड़ी मेहनत एवं प्रतिबद्धता से हिमालय की ऊंचाइयों को भी छू लेती है। अरुणिमा सिन्हा अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश की रहने वाली एक लड़की है, जो वॉलीबॉल की नेशनल खिलाड़ी भी रही है। १२ अप्रैल २०११ को सी.आई.एस.एफ. की परीक्षा देने के लिए वह दिल्ली से लखनऊ पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन से जनरल कोच में यात्रा कर रही थी।

ऊंचा उठना है जीवन में,
लक्ष्य ऊँचे अपनाने होंगे,
कड़ी मेहनत पक्के इरादे से,
लक्ष्य अपने पाने होंगे।।
हम जो ठान लेते हैं वह अवश्य पूरा करते हैं। हम जैसे सोचते हैं, वैसे ही होता है। हमारा जीवन हमारी सोच, विचार तथा मेहनत का प्रतिफल होता है।
यह कहानी है अरुणिमा सिन्हा की जो की एक विश्वविख्यात भारतीय पर्वतारोही हैं, उन्होंने दुनियाँ की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर इतिहास के पन्नों पर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित किया है। अरुणिमा भारत की पहली दिव्यांग महिला है जिन्होंने यह ख्याति अर्जित की है। एक ऐसी लड़की जो बिना पांव के भी एवरेस्ट की ऊंचाइयों को छूकर आती है। एक ऐसी लड़की, जो अपने पक्के इरादे, कड़ी मेहनत एवं प्रतिबद्धता से हिमालय की ऊंचाइयों को भी छू लेती है। अरुणिमा सिन्हा अम्बेडकर नगर उत्तर प्रदेश की रहने वाली एक लड़की है, जो वॉलीबॉल की नेशनल खिलाड़ी भी रही है। १२ अप्रैल २०११ को सी.आई.एस.एफ. की परीक्षा देने के लिए वह दिल्ली से लखनऊ पद्मावती एक्सप्रेस ट्रेन से जनरल कोच में यात्रा कर रही थी।
उसी यात्रा में कुछ बदमाशों ने उनका बैग और सोने की चैन छीनने की कोशिश की उनके विरोध करने पर उन्हें ट्रेन से नीचे धक्का दे दिया गया वह ट्रेन से नीचे गिर गई तथा समानांतर रेलवे ट्रैक पर चल रही दूसरी ट्रैन ने उनके घुटने के नीचे का पैर कुचल दिया। डॉक्टरों ने उनकी जान बचाने के लिए उनके बाएं पांव को काट दिया। इस ट्रेन हादसे में उनको अपना बायां पावं गवाना पड़ा। ट्रेन हादसा उनके पांव को तो ले गया परन्तु उनके हौसलों का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। अरुणिमा सिन्हा ने निश्चय किया कि मैं हिमालय पर्वत की ऊंचाई को बिना एक पांव के भी छूना चाहूंगी। जब वह अस्पताल में थी जीवन एवं मृत्यु से संघर्ष कर रही थी तथा लोग उसके हौसलों को गिराने का प्रयास कर रहे थे, वहीं वह एक ऐसा निर्णय ले रही थी जो अपने आप में एक प्रश्न चिन्ह था। अरुणिमा ने सोचा कि मैं बिना एक पांव के भी हिमालय की सर्वोच्च चोटी एवरेस्ट को फतेह करूंगी। अरुणिमा ने उसके लिए अपने मन में एक पक्का इरादा किया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद इस दिशा में वह पुरजोर तरीके से लग गई।
कहते हैं जहां चाह वहां रहा अपनी इसी चाह, पक्के इरादे और कड़ी मेहनत से उन्होंने २१ मई वर्ष २०१३ में बिना एक पांव के भी एवरेस्ट की चोटी को फ़तेह किया। अरुणिमा ने सात महाद्वीप की सात सबसे ऊँची चोटियों पर चढ़ाई करने वाली भारत की पहली दिव्यांग महिला की ख्याति भी अर्जित की। उनके अदम्य साहस तथा उपलब्धियों के लिए भारत सरकार ने उन्हें देश के शीर्ष सम्मान पदम् श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। अरुणिमा का सम्पूर्ण विश्व को सन्देश है की जीवन में किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है और हमे कभी भी हार नहीं माननी चाहिए उन्होंने अपने संघर्ष एवं कड़ी मेहनत से साबित किया है कि हम सभी अपने उद्देश्यों को पूरा कर सकते हैं और कोई भी बाधा हमारे मार्ग को बाधित नहीं कर सकती है। आज संपूर्ण विश्व उनके जज्बे के लिए उनको सलाम करता है।
यह लेख लिखने के पीछे जो उद्देश्य छिपा है वह यही है कि एक पक्का इरादा जीवन में सफलता का मूल मंत्र होता है। जीवन को आकर्षक बनाने के लिए लक्ष्य निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक होता है और उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संपूर्ण न्योछावर करना ही सफलता का मूल मंत्र है। अपनी जीवन रुपी पतंग को इतना ऊँचा उड़ाईये कि सभी आप जैसा बनना चाहें। अपने जीवन को अनुशासित मर्यादिद एवं संस्कारवान बना कर सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की कल्पना कीजिए तथा सम्पूर्ण विश्व को सपनो से भी सुन्दर बनाइए इसी आशा के साथ की आप सभी अपनी अपनी मंजिलें प्राप्त करेंगे तथा सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान बनाएंगे तथा सम्पूर्ण विश्व की मंगल कामना के साथ आप सभी को सादर प्रणाम।
डॉक्टर अनुराग शर्मा
कोटद्वार, उत्तराखंड
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