युवा मन
टूटे पत्ते की तरह बिखर जाते है वो लोग जिनको न मंजिल मिलती है न रास्ते
टूटे पत्ते की तरह बिखर जाते है वो लोग
जिनको न मंजिल मिलती है न रास्ते
खुद से खुद की ही लड़ाई लड़कर
अक्सर हार जाते है जो खुद से..
सपनो की इस बेरंग दुनिया में
अक्सर रंगीन क्षण आते है सबके
क्या ही मजा उस रंगीन क्षण का
उसके जीवन में..
जो हार चुका है खुदसे
तूफानों की तीव्र वायु
जिस तरह झकझोरती है पत्तो को
उसी तरह ये रातें झकझोरती रहती...
सदा उसके अंतर्मन को
पत्ते तो टूट जाते है इस झकझोरन से
पर वो न टूट पाता इस जग से
मन की चंचल व्यथाएं
कुंठित करती सदैव उसके अंतर्मन को....
पग न बढ़ पाते है उसके
इस तूफानों से भरे जगजीवन में..
चाहे तूफान बाहरी हो या अंतर्मन की
अक्सर तलाश रहती है इनको
एक छोटे सूर्य की किरण की.......।
बिष्णु गोस्वामी
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