वाकपटुता
नन्ही परी की आंख का वो सूरमा
एक उपमा है
नटखट सी वो वाकपटुता
उसकी वो रहस्यमई मुस्कान
ग्रंथ की एक छंद है
समायोजित लहजे मे
पिरोये उसके अल्फाज़
परिपक्व होने का आभास कराती है
वो चंचल है,
बसंत की बयार सी
भावुक है
वो जग की चालाकियों पर
तंज कर मुस्कुरा देती है
....... ......... बिजय जोशी, पिथौरागढ़, uk
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