Mohammed Suleman's art has an increasing number of admirers : मो. सुलेमान की कला के बढ़ते कद्रदान

An inspiring life story of artist Mohammad Suleman, who rose from a small village in Bihar to achieve international recognition — blending struggle, emotional depth, and a vision of cultural harmony in his art. मोहम्मद सुलेमान के मन पर सांस्कृतिक राजधानी बनारस के नंदी, शिव, गणेश, आदि की प्रतिमाओं एवं गंगा का विशेष प्रभाव इस प्रकार पड़ा जिससे प्रेरित होकर हिन्दू देवी देवताओं को अपने सृजन का आधार बनाया। अपनी सशक्त रेखांकन के माध्यम से प्रथम देवपूज्य अराध्य श्रीगणेश की अधुनातन रूपाकृति को विस्तार दिया। जहां विस्तार आस्था का भी दिखता है और संस्कृति का भी । यह विस्तार उर्जा का है और आरंभ की इच्छा का भी।

Jul 8, 2025 - 13:20
Jul 8, 2025 - 13:22
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Mohammed Suleman's art has an increasing number of admirers : मो. सुलेमान की कला के बढ़ते कद्रदान
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Mohammed Suleman's art has an increasing number of admirers : कलाकारों के जीवन में कई ऐसी घटनाएं हुआ करती है, जो कभी कभी यही स्मृतियां सृजन का माघ्यम बन जाती है और मोहम्मद सुलेमान के साथ भी कुछ ऐसी ही हुआ जो कला की रचनाओं के साथ-साथ सृजनषील व संवेदनषील होता चला गया, बचपन से ही अपनी आंतरिक भावनाओं की विभिन्न माध्यमों से आकारों को नया आयाम देने लगा। इसी क्रम में घर के दिवारों पर लकड़ी के जले अवशेष कोयले से आरी तिरछी रेखाओं से आकृतियां खींचना शुरू किया जो आगे चल कर स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद मन में कलाकार बनने की चाहत ने जन्म लिया। 

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बिहार के समस्तीपुर जिला के दलसिंहसराय, भगवानपुर चकशेखु में एक साधारण पेशे से दर्जी मुस्लिम परिवार में १९८१ को जन्मे मोहम्मद सुलेमान, बाल्यकाल से अपने आसपास के शिल्पी कुम्हार परिवारों के बीच रहकर मिट्टी में विभिन्न अवसरों पर देवी देवताओं की मूर्तिया गढ़ते देखा, उसे रंगते और सजाते देखा। जिस कारण से कोई धार्मिक दूराब महसूस नहीं हुआ और न कभी धार्मिक अड़चने, अपनी स्कूलिंग के दरम्यान कामिक्ष की किताबों के चित्रों का अभ्यास करता, उन दिनों अखबारों में लेख पर आधारित चित्र भी यद-कदा छपते और कभी कभार पचास-सौ रूपये का चेक भी मिल जाता। इस प्रकार शैशवकाल में ही  हिन्दुस्तान, आज, नवभारत टाइम्स एवं रविवासरीय विशेष अंको में रेखाचित्र छपने पर लोग जानने लगे। तभी भीतर ही भीतर ही कलाकार बनने की चाहत की जड़े और मजबूत होता गया। सुलेमान के चित्रों को देख शिक्षक धीरेन्द्र चन्द्र सिन्हा ने उसकी कला रूचि को पहचाना और विषेश मार्गदर्शन दिया। 

उनके मार्गदशर्शन से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में चित्रकला में उच्च शिक्षा के लिए रास्ता मिला। प्रांरम्भिक शिक्षा स्थानीय सीएच स्कूल, बारहवीं आरबी कॉलेज से पूर्ण कर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से चित्रकला में बैचलर आफ फाईन आर्टस की एवं कला शिक्षा पूरा करते ही कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दो वर्षों के लिए सांस्कृतिक छात्रवृति मिलना मिल का पत्थर साबित हुआ। क्योंकि कला कर्म करने के लिए थोड़ी आत्मनिर्भता बढ़ी और परिवार को मेरे पढ़ाई के बोझ से मुक्त किया। 
परिवार सिलाई, काज-बटन टांकने का काम कर जो आमदनी होती, खुशी से निर्वाह करता। सुलेमान बताते हैं दशवीं की पढ़ाई पूरी  होते ही निकाह हो गई। बनारस में दाखिला मिला तो मेरी मां और बीबी जान ने बीड़ी बना कर मुझे अपनी आमद के पैसे भेजा करती थी। मितव्ययी तो था ही साथ ही साथ, उन दिनों कम खर्च में मेरी पढ़ाई हो गई।

छात्रवृति से मास्टर आफ फाईन आर्टस लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की। मास्टर आफ फाइन आर्टस के पश्चात ही ललित कला अकादमी नई दिल्ली द्वारा एक वर्ष के लिए गढ़ी रिसर्च ग्रांट फेलोशिप दिए जाने पर कला शोध कार्य के लिए भुवनेश्वरजा पहुंचा। तत्पश्चात भुवनेश्वर से वापस लौटे तो समस्तीपुर में अपने जन्मभूमि को ही अपना कर्म भूमि मानाऔर निरंतर सृजनरत रहे। राष्ट्रीय ललित कला अकादमी द्वारा आयोजित ४७वें, ४८वें, ५६वें तथा ६१वें राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी मे इनकी कलाकृति शामिल हुई और २०१० में चित्रकला में जूनियर फैलोशिप पाकर सतत सक्रिय रहे। निरंतर सक्रियताके कारण इस वर्ष २०२५ में वरिष्ठ फेलोशिप भी इन्हें प्रदान किया गया है जो कला संस्कृति के क्षेत्र में योगदान करने एवं समृद्ध परंपरा विकसित करने के लिए संस्कृति विभाग्, भारत सरकार प्रदान करती है। 

बिहार ललित कला अकादमी द्वारा आयोजित प्रथम राज्यस्तरीय प्रदर्शनी में इनकी कलाकृति का न सिर्फ चयन हुआ बल्कि अकादमी पुरस्कार से इनके श्रेष्ठ कृति के लिए इन्हें पुरस्कृत भी किया गया। इसी क्रम में अपनी भागीदारी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर करते हुए पुरस्कृत होते रहे और अपनी विशेष पहचान बनाने में कामयाब हुए। इनकी कलाकृति को देखकर आज सहज ही कलापारखी सुलेमान की तारीफ करने नहीं थकते। भारत के राजधानी के अतिरिक्त मुंबइ, हैदराबाद, जबलपुर, बनारस, कोलकाता आदि प्रमुख शहरों के साथ्-साथ दुबई, अमेरिका, लंदन व अन्य देशों में भी इनकी कृति को पहचान मिल चुकी है।

तकनीकी पक्ष -
नई दिल्ली स्थित त्रिवेणी कला संगम में कला प्रशिक्षक रहे रामेश्वर बरूटा के कलाकृतियों में ईचिंग इफेक्ट मन को खुब भाया, बनारस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्ययन के दरम्यान प्रो विजय सिंह, शिवनाथ राम और राजेन्द्र प्रसाद गोंड के कलाकृतियों ने भी प्रभावित किया और फिर बनारस से लखनऊ आने पर चारकोल व पेंसिल से कलाकृति रचते जो आभाषिय लिथोग्राफी; ग्राफिक्स एचिंग प्रभाव के कारण दर्शकों अपनी ओर आकर्षित करता, आगे चलकर पेंसिल की जगह बॉल पेन से मोनाक्रोमिक प्रभाव कलाकृति में सफेद और काले स्याह रंगों में चित्र दूसरों से अलग दिखाई देने लगे इस प्रकार अपने कलाकृतियों में निरंतर साधनारत रहे चित्रकार मो़ सुलेमान ने कला जगत में अपनी अलग एक ऐसी पहचान बनाई जो तकनीकी विशेषता के साथ हिन्दू देवी देवताओं के सुंदर, मनमोहक, ज्यामितिय प्रभाव सहित एचिंग प्रभाव में दिखने के कारण भी खासे चर्चा में रहें। पेपर और बॉलपेन से कैनवास पर सपाट रंगों पर बॉल पेन से धैर्य एवं संलग्नता से उभरते हिन्दू देवी देवताओं के चित्र ने मो़ सुलेमान के कला संसार को एक बड़ा कैनवास बनाया। बहुआयामी चित्रकार सुलेमान के चित्र द्विआयामी होकर भी त्रि-आयामी प्रभाव इस प्रकार पैदा करते जैसे सपाट आधार तल से कोई मूर्तिशिल्प उभर आया हो। छाया प्रकाश और रेखाओं का ऐसा संयोजन व शीतल व चटक रंगों का समायोजन दर्शकों व कला रसीकों के आखों को शीतलता के साथ ऐसा संबंध स्थापित करते हैं और अपनी ओर आकर्षित करते हुए स्पर्श करने का स्पंदन उत्पन्न करता है। शुरूआती दिनों में पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रभाव रहा, फलतः दर्जी श्रृंखला को चित्रित किया करते थे।

आरम्भिक दौर में एम एफ हुसैन की जड़ें भी बनारस से जुड़ी रही। सुबहे बनारस का असर और गंगा की अविरलप्रवाह कारण सांस्कृतिक सामंजस्य की समर्थता में सारे भेद मिट जाते हैं, बचता है तो सिर्फ प्रेम-सद्भाव और सम्मान।
मोहम्मद सुलेमान के मन पर सांस्कृतिक राजधानी बनारस के नंदी, शिव, गणेश, आदि की प्रतिमाओं एवं गंगा का विशेष प्रभाव इस प्रकार पड़ा जिससे प्रेरित होकर हिन्दू देवी देवताओं को अपने सृजन का आधार बनाया। अपनी सशक्त रेखांकन के माध्यम से प्रथम देवपूज्य अराध्य श्रीगणेश की अधुनातन रूपाकृति को विस्तार दिया। जहां विस्तार आस्था का भी दिखता है और संस्कृति का भी। यह विस्तार उर्जा का है और आरंभ की ईच्छा का भी। यह विस्तार साधना और श्रद्धा का भी है ,जो रेखाओं के लय को समझते हैं और जो आकार के सुर को महसूस कर पाते हैं। नंदी, गणेश, कृष्णा, शिव, दुर्गा, बुद्ध की लंबी श्रृंखला तैयार की।

सुलेमान का आरंम्भिक दौर भी तंगी में बीता वे बताते हैं जब पहली बार राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में मेरी चित्र का चयन हुआ उन दिनों मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि अपनी पेटिंग को प्रâेमिंग करा पाता, गुरू प्रो विजय सिंह ने मेरी चिंता समाधान अपना फेम देकर किया और मेरी पेंटिंग राष्ट्रीय  प्रदर्शनी में शामिल हो सकी। पहली बार जब मेरी चित्र श्रृंखला पांच लाख में बिकी तो पुश्तैनी घर के छत का मरम्मत करा पाया और पारिवारिक दायित्व का निर्वहन करना प्रारंभ किया। 

कला समीक्षक केशव मलिक जिन्होंने सुलेमान के कैरियर को करीब से देखा है, वे उनके काम की मौलिकता और प्रभाव के लिए सराहा और मलिक का कहना है कि सुलेमान की कला उनके समकालिनों में अपनी संक्षिप्तता और मूल्य के लिए अलग दिखती है। कई कलाकारों के विपरीत जो अनावष्यक विवरणों के साथ अपने काम को अतिरंजित करते हैं, सुलेमान का दृष्टिकोण अधिक विचारशील और जानबूझकर किया गया है यह उनके काम को दर्शकोें को अभिभूत किए बिना प्रभावी ढंग से संवाद करने की अनुमति देता है।

मलिक सुलेमान के कल्पनाशीलता को भी उजागर करते हैं इसे एक कलाकार के लिए सबसे किमती उपहार बताते हैं। सुलेमान की रचनात्मकता केवल औपचारिक शिक्षा का उत्पाद नहीं है, बल्कि उनकी गहरी आत्मचिंतन और अपनी जड़ों से जुड़ाव का भी परिणाम है। उनके काम को आधुनिक संदवेदनशीलता के साथ पारंपरिक कला रूपों का मिश्रण माना जाता है, जो इसे आज के कला जगत में प्रासंगिक और शक्तिशाली बनाता है।  
भविष्य की क्षमता- आगे देखते हुए, मलिक का मानना हेै कि सुलेमान का काम केवल महत्व और प्रभाव में बढ़ेगा। उन्हें सुलेमान की कलात्मक यात्रा में अभी तक कोई विफलता नहीं दिखाई देती है और भविष्यवाणी करते हैं कि उनके शिल्प की निरंतर खोज कला जगत में समृद्धि जोड़ेगीr। अपने माध्यम के प्रति सुलेमान का समर्पण और अपनी कला के माध्यम से गहरे संदेश देने की उनकी क्षमता उन्हें समकालीन कला में एक आशा जनक व्यक्ति बनाती हैं।
चित्रकार सुलेमान अपने सभी चित्रों को अन्टाइटलड ही रखते हैं, उनका मानना है कि ‘सपने विवाद की जड़ नहीं हो सकते, संभावनाओं को सबलता प्रदान करते हैं। यथार्थ के जीवन का भविष्य कल्पनाशीलता में ही निहित है, जो जीवन को तलाशने के लिए संभावनाओं का विस्तृत क्षेत्र प्रदान करता है।’ 

संवेदनाओं के बीज हमारी अनुभुतियों की उपज है। संवेदनाओं के उद्गम में मानवीय मूल्यों की परख हमें मानवता की ओर ले जाती है। उसके बाधक उसे समाप्त करने की कोशिश करते हैं। जब मनुष्य संवेदनशून्य हो जाता है तो मानवता को हानि पहॅुचाने में कोई कसर नहीं छोड़ता। सिर्फ स्वयं को किसी पूर्वाग्रहों में कैद कर एक राह पर चल निकलता है, उससे इतर जितनी भी संवेदनाएं सामने आती हैं, उसे वह दरकिनार करते हुए आगे बढ़ता है। उसमें उसकी जाति और धर्म उस बीज का काम करता है, जहां से संवेदनाएं उत्पन्न होती हैं। चित्रकार सुलेमान ने सृष्टि की अवधारणा में उस बीज को पहचाना है, जिससे मानवीय मूल्यों की परख होती है व संवेदनाएं जीवित रहती है। इन्होंने अपने चित्रण शैली के माध्यम से एक नया राग छेड़ा है, जो मानवता की जड़ों को मजबूत करते हुए उनके चित्र अपने ओज से सृष्टि में सिर्फ उर्जा का ही संचार करता नजर आता है। मोहम्मद सुलेमान का साढ़ श्रृखंला के बहुतेरे चित्र उस उर्जा के साथ पुरूशत्व शक्ति का नेतृत्व करता है जो जीवन सूत्र है- लय,गति और राग-रंग!

राजेश कुमार, मूर्तिकार  
दरभंगा,बिहार

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