Health, Environment and Science: The Triveni Sangam of Life स्वास्थ्य, पर्यावरण और विज्ञान: जीवन का त्रिवेणी संगम
Health, environment, and science are the three foundational pillars of life. This article explores how their integration can lead humanity toward a balanced, secure, and enlightened future.

Health, Environment and Science: The Triveni Sangam of Life : मनुष्य की समस्त क्रियाएं, चाहे वह सांस लेना हो, भोजन करना हो या किसी भाव को महसूस करना- प्रकृति और विज्ञान की देन है। स्वास्थ्य, पर्यावरण और विज्ञान- ये तीनों विषय किसी भी समाज की नींव, उसकी सोच और भविष्य की दिशा को तय करते हैं। ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं, जैसे गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम- जो दिखता नहीं, पर होता अवश्य है। आज जब मानवता तकनीक की ऊंचाइयों पर है, तब यह आवश्यक हो गया है कि हम इन तीनों पहलुओं पर पुनः चिंतन करें।
स्वास्थ्य: शरीर, मन और आत्मा की समग्र स्थिति
स्वास्थ्य केवल रोगों से मुक्त रहने का नाम नहीं, अपितु यह शरीर, मन और आत्मा की समग्र स्थिति है। आधुनिक जीवनशैली ने मनुष्य को सुविधा तो दी है, पर साथ में तनाव, अवसाद और असंतुलित जीवनशैली की कीमत पर।
आधुनिक बीमारियों का विस्फोट:
हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, कैंसर जैसी बीमारियाँ अब केवल उम्रदराज लोगों तक सीमित नहीं रहीं। युवावस्था में ही ये रोग अपना घर बना रहे हैं। इसका मुख्य कारण है असंतुलित आहार, नींद की कमी, प्रदूषित वातावरण और मानसिक तनाव।
योग और आयुर्वेद का महत्व:
आज वैश्विक स्तर पर भारत की योग परंपरा को अपनाया जा रहा है। योग केवल व्यायाम नहीं, बल्कि शरीर और मन की समरसता है। आयुर्वेद, जिसे विज्ञान की सबसे पुरानी प्रणाली कहा जाता है, पुनः अपनी महत्ता सिद्ध कर रहा है।
मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी:
विश्व स्वास्थ्य संगठन (ेंप्ध्) के अनुसार, २०३० तक अवसाद विश्व की सबसे बड़ी बीमारी बन सकती है। हमें मानसिक स्वास्थ्य को उतनी ही प्राथमिकता देनी होगी जितनी हम शारीरिक स्वास्थ्य को देते हैं।
पर्यावरण: जीवन की सांसें
जब प्रकृति मुस्कुराती है, तभी जीवन खिलता है। परंतु पिछले कुछ दशकों में मानव ने जिस प्रकार से पर्यावरण का दोहन किया है, उसने पृथ्वी की सेहत को बुरी तरह प्रभावित किया है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
ग्लोबल वार्मिंग, बर्फ की चट्टानों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि, अनियमित वर्षा और सूखा – ये सब इस बात के प्रमाण हैं कि हमने प्रकृति के साथ कैसा व्यवहार किया है।
प्रदूषण: अदृश्य मृत्यु:
वायु प्रदूषण से हर वर्ष लगभग ७० लाख लोगों की मृत्यु होती है ( रिपोर्ट, २०२३)। जल, वायु, भूमि – तीनों ही माध्यम विषाक्त हो चुके हैं। यह हमारे स्वास्थ्य पर सीधा हमला है।
जैव विविधता का क्षरण:
हर मिनट, पृथ्वी से एक प्रजाति विलुप्त हो रही है। जब प्रकृति की जैव विविधता खत्म होती है, तो उसका संतुलन भी बिगड़ता है– और परिणामस्वरूप महामारी जैसे संकट जन्म लेते हैं, जैसा हमने कोविड-१९ में देखा।
विज्ञान: समाधान की कुंजी
विज्ञान केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित नहीं है, वह हमारे जीवन का प्रत्येक हिस्सा है। विज्ञान ही है जिसने हमें रोगों का इलाज, प्रदूषण की निगरानी, सौर ऊर्जा, वेंटिलेटर, टीकाकरण, डिजिटल स्वास्थ्य समाधान जैसे अनगिनत उपाय प्रदान किए हैं।
जैव प्रौद्योगिकी और चिकित्सा:
जेनेटिक इंजीनियरिंग, कृत्रिम अंग, नैनो टेक्नोलॉजी और रोबोटिक सर्जरी- ये विज्ञान की वे उपलब्धियाँ हैं, जिन्होंने असंभव को संभव बनाया है। कोविड-१९ की वैक्सीन का त्वरित विकास विज्ञान की अद्वितीय उपलब्धि है।
हरित प्रौद्योगिकी :
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल संरक्षण तकनीक, बायोगैस- ये विज्ञान की वे दिशा हैं जो पर्यावरण को भी सहारा देती हैं और विकास को भी गति देती हैं।
जन-जागरूकता और विज्ञान:
आज डिजिटल युग में जानकारी का प्रवाह तेज है। मोबाइल एप्स, हेल्थ ट्रैकर्स और ऑनलाइन परामर्श से स्वास्थ्य सेवाएँ सुलभ हुई हैं। विज्ञान ने सामान्य व्यक्ति को सशक्त किया है।
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त्रिवेणी का मेल: जब तीनों मिलते हैं: जब हम स्वास्थ्य, पर्यावरण और विज्ञान को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक मानते हैं, तब ही हम एक स्वस्थ और टिकाऊ समाज की कल्पना कर सकते हैं।
१. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पर्यावरण सुधार:
पर्यावरणीय समस्याओं के लिए वैज्ञानिक समाधान खोजे जा सकते हैं जैसे- कचरा प्रबंधन के लिए बायोडिग्रेडेबल तकनीक, जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए सैटेलाइट, और प्रदूषण नियंत्रण के लिए आधुनिक यंत्र।
२. स्वास्थ्य के लिए प्रकृति का उपयोग:
शुद्ध वायु, स्वच्छ जल और पोषणयुक्त आहार – ये सब पर्यावरण की देन हैं। यदि हम प्रकृति को बचाते हैं, तो वह हमें स्वस्थ बनाए रखती है।
३. विज्ञान का मानवतावादी उपयोग:
विज्ञान को केवल लाभ का साधन न बनाकर मानव कल्याण के लिए उपयोग में लाया जाए- यही समय की मांग है। वैज्ञानिक प्रगति तभी सार्थक है जब वह सभी वर्गों तक पहुंचे।
भारत की भूमिका और परंपरा
भारत की सांस्कृतिक परंपरा में इन तीनों विषयों का अद्भुत समन्वय रहा है। आयुर्वेद, योग, पंचतत्त्व- ये सभी हमारे जीवन दर्शन का हिस्सा हैं। आधुनिक भारत ने विज्ञान और पर्यावरण के क्षेत्र में भी अपनी उपस्थिति दर्ज की है- जैसे इसरो की तकनीकी उड़ान, स्वच्छ भारत अभियान, और अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की पहल।
युवा पीढ़ी की जिम्मेदारी
भविष्य की दिशा आज के युवा तय करेंगे। इसलिए यह आवश्यक है कि हम उन्हें केवल तकनीकी शिक्षा ही नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, पर्यावरणीय चेतना और स्वस्थ जीवनशैली की समझ भी दें।
शिक्षा में बदलाव:
विद्यालयों में ऐसे पाठ्यक्रम हों जो बच्चों को वैज्ञानिक सोच, स्वास्थ्य के महत्व और पर्यावरण संरक्षण के व्यावहारिक उपायों से जोड़ें।
स्वयं प्रेरित बदलाव:
बिजली की बचत, जल संरक्षण, पौधारोपण, स्वास्थ्य के प्रति सजगता- ये छोटे कदम मिलकर एक बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
निष्कर्ष: एक सुंदर, संतुलित जीवन की ओर
आज मानवता एक चौराहे पर खड़ी है- जहां एक ओर तकनीकी प्रगति है और दूसरी ओर पारिस्थितिक संकट। यदि हमें एक सुंदर, संतुलित और स्वस्थ जीवन चाहिए, तो हमें स्वास्थ्य, पर्यावरण और विज्ञान के बीच संतुलन बनाना ही होगा।
हमारे पूर्वजों ने कहा था- ‘प्रकृति के साथ चलो, उससे मत लड़ो।' विज्ञान को मानवता की सेवा में लगाओ, स्वास्थ्य को प्राथमिकता दो, और धरती को माँ समझो। यही मार्ग है एक उज्ज्वल भविष्य की ओर।
रेखा विश्नोई
हरदा, मध्यप्रदेश
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