छुटकी

फिर दीदी भी पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना चाहती थी। पापा फिर मान गए। इस बार मम्मी बिल्कुल नहीं मान रही थी। एक तो लड़की... ऊपर से दिल्ली शहर। लेकिन पापा ने मम्मी को ये समझा कर दीदी को दिल्ली भेज दिया कि बेटियों को भी बेटों की तरह आज़ादी होनी चाहिए।घर सूना हो गया था। मम्मी अब बहुत ज़्यादा खामोश रहने लगी थी। कई बार वह मुझे एकटक देखती और फिर पूछती,_"तू भी चली जायेगी न?"उनकी आंखों में जैसे एक सूनापन उतर कर गायब भी हो जाता था।

Nov 14, 2023 - 16:28
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छुटकी
Chutki

सब से छोटी थी तो छुटकी बन कर ही रह गई। वक्त तेज़ी से गुज़र रहा था। फिर भैया को दिल्ली जा कर पढ़ना था। पापा मान गए। लेकिन मम्मी नाराज़ हो कर बोली,_"कच्ची उम्र में बच्चों को दूर भेजोगे तो वह हम से दूर रहने की आदि हो जायेंगे।"भैया चले गए, लेकिन कई दिनों तक मम्मी डाइनिंग टेबल में पांच प्लेटें ही लगाती थी। याद आने पर एक प्लेट चुपके से हटा देती थी।


    फिर दीदी भी पढ़ाई के लिए दिल्ली जाना चाहती थी। पापा फिर मान गए। इस बार मम्मी बिल्कुल नहीं मान रही थी। एक तो लड़की... ऊपर से दिल्ली शहर। लेकिन पापा ने मम्मी को ये समझा कर दीदी को दिल्ली भेज दिया कि बेटियों को भी बेटों की तरह आज़ादी होनी चाहिए।घर सूना हो गया था। मम्मी अब बहुत ज़्यादा खामोश रहने लगी थी। कई बार वह मुझे एकटक देखती और फिर पूछती,_"तू भी चली जायेगी न?"उनकी आंखों में जैसे एक सूनापन उतर कर गायब भी हो जाता था।


          फिर मेरी बारी भी आई। पापा ने पूछा,_"तू भी दिल्ली जायेगी न?"मैंने कहा,_"यहां का गवर्नमेंट कॉलेज तो बहुत अच्छा है।मेरी फ्रेंड के पापा वहां पढ़ाते है। अंकल कहते है कि अच्छी अच्छी कंपनियां प्लेसमेंट के लिए हर साल आती हैं। तो मैं यहां रह कर भी पढ़ाई कर सकती हूं।" पापा ने मुझे थोड़ी देर देखा और फिर कहा,_"पक्का सोच ले। तूझे जो अच्छा लगे तू वही कर।"
_वही तो करने जा रही हूं। लेकिन लगता है कि आप मुझे भी दूर भेजना चाहते हो।" मैंने तो मज़ाक में कहा था।
लेकिन पापा ने संजीदगी से जवाब दिया,_"कोई मां बाप बच्चों को दूर करना नहीं चाहते हैं। लेकिन..."आधे में पापा चुप हो गए। उस लेकिन में बहुत कुछ छुपा हुआ था। पर्दे के पीछे मम्मी थी। मुझे मालूम था कि वह रो रही होगी। यही तो मम्मी की खूबी है कि गम हो या खुशी, दोनों में ढेरों आंसु बहाती है।


      फिर भैया आगे पढ़ाई के लिए यूएस चले गए। बाद में दीदी भी चली गई। कुछ वक्त बाद नौकरी मिलते ही भैया ने पसंद की लड़की से शादी कर लिया। दीदी की शादी तो यही से हुई। इस शादी में मम्मी पापा के साथ बस मैं थी। भैया को छुट्टी नहीं मिली। दीदी जीजाजी यूएस लौट गए और मैं मुंबई में नौकरी करती रही। साल में कई बार किसी न किसी बहाने से मम्मी पापा को मुंबई बुला लेती या फिर खुद घर आ जाती। पापा बनावटी गुस्से में कहते,_"इस लड़की की कमाई तो आने जाने में ही खर्च हो जाती है।"
मम्मी कहती,_"हमारे बगैर तेरा दिल नहीं लगता है न? शादी के बाद क्या करेगी पगली!"ये बातें करते वक्त उन दोनों की आंखों में एक अलग ही चमक रहती थी। मैं खुश हो जाती थी। हम तीनों खुश थे। लेकिन अचानक मम्मी की तबीयत ख़राब रहने लगी। पता चला कैंसर है और वह भी लास्ट स्टेज। उस वक्त दीदी मां बननेवाली थी, आ नहीं सकती थी। भैया फौरन आ गए।
नम आंखों को छुपा कर मम्मी के आगे पीछे घूमते रहते थे। लेकिन कब तक? उन्हें वापस भी जाना था। नक़ली हंसी के साथ भैया ने कहा,_"अगली बार आऊंगा तो मेरी पसंद की सारी चीज़े आप मुझे बना कर खिलाना।"नक़ली हंसी के साथ मम्मी ने भी जवाब 
दिया,_"बिल्कुल। तू पहले से ही लिस्ट भेज देना।"हम सभी जानते थे कि उन दोनों की ये शायद आखरी मुलाकात है।


        मम्मी का जाना, पापा को संभालना... सब कुछ मैं अच्छी तरह कर रही थी। बस मुझे थोड़ा सा वक्त नहीं मिल रहा था कि खामोशी से कहीं बैठ कर मम्मी को याद करूं या जी भर कर रो लूं। दीदी और भैया हर दिन फोन करते थे। दीदी तो सिर्फ़ रोती रहती थी। अब मैं क्या बोलती? यही? कि विदेश में अच्छी ज़िंदगी गुजारने के लिए कुछ कुरबानी तो देनी ही पड़ती है। लेकिन मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाई,_"आप दोनों परेशान न हो। मैं हूं पापा के साथ।"एक दिन भैया ने कहा,_"छुटकी, तू हम सब से बड़ी हो गई।" क्या जवाब दूं समझ में नहीं आया। पापा अपने कमरे में बैठ कर दीवार पर टंगी मम्मी को देख रहे थे। करीब पहुंच कर मैंने उनसे कहा,_"आप को याद है? मम्मी कहती थी कि रुकी हुई ज़िंदगी अच्छी नहीं होती है। ज़िंदगी हमेशा चलती रहनी चाहिए। तो अब हम दोनों भी मिल कर आगे बढ़ने के लिए कुछ सोचते हैं।ओके?"मेरी तरफ देख कर, मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर हल्की मुस्कुराहट के साथ पापा ने कहा,_"ओके।"मैं उम्मीद के खिलाफ़ इस रिएक्शन से हैरान हो गई। फिर मम्मी की तस्वीर को देखकर समझ गई कि हो न हो मम्मी ने ही पापा को डांट कर ज़रूर कहा होगा,_"देखो, हमारी छुटकी को तुम और ज़्यादा परेशान मत करना।"... हां, यही सच है। मम्मी की तरफ देख कर मन ही मन मैंने कहा,_"थैंक यू मम्मी, थैंक यू सो मच।"

सनियारा ख़ान

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