पर्यावरण

फाड़ के छाती इस धरती में, जहर बहुत सा भर डाला।।

Mar 3, 2025 - 14:08
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पर्यावरण
Environment

पर्यावरण

अपनी नित जीवन शैली पर,
फिर से आज विचार करो।
कुदरत की अनमोल निधि का,
बंद अभी व्यापार करो।।
वसुंधरा को खोद खोद कर,
खोखला तुमने कर डाला।
फाड़ के छाती इस धरती में,
जहर बहुत सा भर डाला।।
मिल जाएगा सब कुछ तुमको,
थोड़ा सा इंतजार करो।
कुदरत की -----------------।।
वृक्ष बचाते हैं जहरीली
कार्बन डाइऑक्साइड से।
बचा नहीं सकते हम खुद को,
कुल्हाड़ी के प्रहार से।।
इनमें भी तो जान है भाई,
इनसे भी तो प्यार करो।
कुदरत की-------------।।
अपार अनोखी संपदा जिसमें,
सागर कितना निराला है।
कूड़े कचरे और तेल से,
दूषित करके डाला है।।
एक जगत और बसता इसमें,
उसको ना बेकार करो।
कुदरतकी---------------।।
वन्य पशु बच्चे प्रकृति के,
कहलाते कुदरत का धन।
क्यों हम इनके पीछे पड़ गए,
काट रहे अंधा धुंध वन।।
बेजुबान तो बेघर हो गए,
इनका नहीं शिकार करो।
कुदरत की---------------।।
पृथ्वी क्या आकाश न छोडा़,
अंतरिक्ष में जा पहुंचे।
वहां तक सोच रहे जाने की,
सोच जहां तक ना पहुंचे।।
ब्रह्मांड में करके कचरा मंजुल,
हदें न अपनी पार करो ।
कुदरतकी--------------।।

मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 

मनोज मंजुल (ओज कवि) 

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