हाइकु
सिर पर धर धूप की गठरिया- सूरज चला। फुनगियों से उतरी धरा पर- धूप चिड़ैया। कभी न थका अनवरत चला- सूर्य बटोही। कंठ-चिड़ैया- व्याकुल है प्यास से। सकोरे रीते।

सिर पर धर
धूप की गठरिया-
सूरज चला।
फुनगियों से
उतरी धरा पर-
धूप चिड़ैया।
कभी न थका
अनवरत चला-
सूर्य बटोही।
कंठ-चिड़ैया-
व्याकुल है प्यास से।
सकोरे रीते।
कट माटी से
भुला दिए हमने-
माटी के घर।
मुहब्बत से
नफ़रत की बर्फ़-
पिघल गई।
दिन अंगार-
बैठे धुनी रमाए।
राख श्रृंगार।
अशोक आनन
शाजापुर ( म.प्र.)
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