किसान का सपना
Kisan ka Sapna
गत चार घंटों की
निर्बाध परिश्रम के बाद
आई मीठी झपकी से
खेतों के बीच ; मेड़ पर
सो गया है किसान ,
नींद के झरोखे से
देख रहा वो दुनिया
जिसे चला रहे किसान ।
संसद की कुर्सियों पर बैठे हैं किसान
कोर्ट में फैसले दे रहे हैं किसान
मठों के अधीश हो गए हैं किसान
सड़कों का टेंडर ले रहे हैं किसान
कंपनियों का शेयर खरीद रहे किसान
थिएटर के परदों पर थिरक रहे किसान
चैनलों पर समाचार पढ़ रहे किसान
विदेशों में वेकेशन मना रहे किसान
किसान , किसान और बस किसान
समूचा भारत देश हो गया किसान ।
पुरवा के एक झोंके से
बंद हो गए झरोखे -
खुल गईं हैं आंखें
उठ गया है किसान ।
धूप हो गई चटक ,
सुबह की भूख को
सुरती से बहलाकर
रखता है चुनौटी
कमीज की बाईं जेब में ,
दाहिनी जेब सिलना है -
हफ्तों से भूलता रहा ये ।
आधे बचे खेतों से
अभी निकालना है घास ;
तो जल्दी से उठ कर के
अपनी घिसी हुई चप्पलें
जो अभी तक तकिया थीं
उठा कर हाथों में -
खोज रहा अपने पांव ।
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