दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प- आशा लकड़ा
आशा ने पढ़ाई छोड़ने से इंकार करके घर और भाई बहन की जिजिम्मेदारी के साथ पढ़ाई जारी रखी। झारखण्ड़- गुमला के चुरहू गाँव की सीमित सुविधाओं वाले आदिवासी परिवार की एक छोटी लड़की अपनी अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सुबह चार बजे उठ कर घर का सारा काम ( बर्तन से लेकर घर आंगन की साफ सफाई, खाना बनाना और भाई बहन के लिए खाना रख कर) करके छः बजे बिना खाना खाए बीस मिनट का रास्ता तय कर दौडते भागते बस पकडतीं। उस समय एक ही बस थी जो स्कूल के समय के लिए थी ।

दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प का एक चेहरा झारखण्ड़ की राजनीति से उभर कर देश की राजनीति में अपनी एक खास पहचान बना रहा है जिसका नाम आशा लकड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम उन्हीं आशा लकड़ा को करीब से जानने की कोशिश करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं की विभिन्न उपलब्धियों का जश्न है। जिसे विश्व के लगभग सभी देश मनाते हैं। समय की करवट के साथ विश्व में स्त्री-पुरुष की समानता के भेद कम होते जा रहे हैं। लगभग हर देश की महिलाओं की स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है। भले ही मंजिल अभी पूरी तरह नहीं मिली है, लेकिन इसके लिए महिलाएँ भी खुद आगे बढ़ कर प्रयास कर रही हैं, और सफल भी हो रही हैं। हमारे देश की महिलाएँ भी आज सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर ना सिर्फ साथ चल रही हैं, बल्कि आगे बढ़कर अपनी बराबरी दर्ज करा रही हैं। इतना ही नहीं महिलाओं की बढ़ती भागीदारी में आज दलित और आदिवासी महिलाओं के भी कदम भी बढ़ चुके हैं। राँची की पूर्व मेयर आशा लकड़ा राजनीति में उभरता हुआ एक चेहरा हैं। ये दो बार राँची की मेयर चुनी जा चुकी हैं, और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। आशा लकड़ा में, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरह धैर्य और आंतरिक आवेगों पर नियंत्रण का गुण और स्व. सुषमा स्वराज की तरह जुझारूपन के साथ अनुशासन प्रियता का भी गुण है। अपने स्नेहिल स्वभाव के कारण ये जनता की प्रिय नेता है। आशा जी अपने छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में पूर्ण कालिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते हुए परिषद की राष्ट्रीय सचिव रह चुकी हैं। इन्होंने एवीबीपी की सचिव से लेकर नेशनल वर्किंग कमेटी की जिम्मेदारी भी खूब निभाई। एवीबीपी से जुड़ने के कारण अनुशासन उनके व्यक्तित्व में समा चुका है। आशा लकड़ा का सब से बड़ा प्लस प्वाइंट उनका आदिवासी महिला होना है । उनका प्रोफाइल काफी लो है, और वे आसानी से सब के साथ घुल-मिल जाती हैं। अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर कॉलेज से होते हुए शहर और राज्य में उन्होंने अपनी पहचान बनायी और अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए अग्रसर हैं। आशा लकड़ा भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा छत्तीसगढ़ और अरुणांचल प्रदेश की प्रभारी भी रही हैं। 2013 में महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी के नेतृत्व में महिला मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिला। इन्हें केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री के लिए चयन के लिए पर्यवेक्षक बना कर भेजा गया है। आशा लकड़ा के के स्वभाव की तरह उनके जीवन के रास्ते सरल नहीं थे। इनका पूरा जीवन झंझावतों के बीच बीता है । फिर भी उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय और आत्मबल से सारी कठिनाइयों को मात दे कर अपना मुकाम हासिल किया है। आर्मी परिवार से आने वाली आशा लकड़ा के परिवार से कोई भी राजनीतिक से है। आशा के पिता सीआरपीएफ में जवान थे। माँ गृहणी। चार भाई बहनों में आशा दूसरे नंबर की संतान हैं। आशा ने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था,जब वे पाँचवीं क्लास में पढ़ रहीं थी। आशा की बड़ी बहन इंटर में पड़ रही थीं। आशा से छोटे भाई और बहन की देख भाल और घर की जिम्मेदारी दे कर पिता ने उन्हें पड़ाई छोड़ देने का दबाव बनाया। लेकिन आशा ने पढ़ाई छोड़ने से इंकार करके घर और भाई बहन की जिजिम्मेदारी के साथ पढ़ाई जारी रखी। झारखण्ड़- गुमला के चुरहू गाँव की सीमित सुविधाओं वाले आदिवासी परिवार की एक छोटी लड़की अपनी अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सुबह चार बजे उठ कर घर का सारा काम ( बर्तन से लेकर घर आंगन की साफ सफाई, खाना बनाना और भाई बहन के लिए खाना रख कर) करके छः बजे बिना खाना खाए बीस मिनट का रास्ता तय कर दौडते भागते बस पकडतीं। उस समय एक ही बस थी जो स्कूल के समय के लिए थी । बस ना छूट जाए इसके चलते आशा दिन का भोजन भी नहीं कर पाती थी। फिर पाँच कि. मि. और पैदल चल कर स्कूल पहुँतीं। शाम को खाना खाती और फिर वही घर की जिम्मेदारी। एक इंटरव्यू में आशा जी अपने बचपन को याद करते हुए बताया कि उन्होंने अपने पचपन को भूल कर माँ,पिता( पिता अपनी सी आर पी एफ की ड्यूटी में) और बड़ी बहन की जिम्मेदारी को पूरा किया है । अपन बचपन के समय को याद कर काफ़ी भावुक हो गयीं थीं। आशा जी ने उन दिनो को याद करते हुए ये भी बताया कि उन दिनों ना तो पहने के लिए पैर में चप्पल थी और ना जाड़े से बचने के लिए स्वेटर था। लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना। बीच -बीच में खुद भी लड़कियाँ लाने जंगल जाना । वहाँ झरिया से गिरता पानी और झरने का गिरते पानी से खेल कर और जंगल के आंवले तोडकर खाने में अपना बचपन जीना भी एक समय था। सारी कठिनाइयों के होते हुए आशा जी ने हाई स्कूल पास किया। आशा जी के सभी रिश्तेदारों ने राँची आ कर अपनी पढ़ाई की, मगर आशा ने अपने भाई बहन की जिम्मेदारी के चलते गुमला के कार्तिक उराँव कॉलेज से स्नातक किया। फिर राँची विश्वविद्यालय से एम.ए. बी एड़ और पी एच डी किया सच में आशा लकड़ा के इस जज्बे के लिए जो भी कहा जाए कम होगा। 2010 में संगठन में मंत्री रहते हुए आशा लकड़ा की शादी राजेन्द्र धान से हो गयी, जो खुद राजनीति में थे और आशा को भी प्रोत्साहित किया करते थे। शादी के एक साल बाद ही आशा के जीवन में एक बहुत बड़ा तूफान आया 2012 में नक्सलियों ने आशा के पति की हत्या कर दी। आशा के लिए यह सदमा बर्दाश्त करना बेहद कठिन था। आशा कोमा में चली गयीं । पंद्रह दिन तक हॉस्पिटल में इलाज बाद आशा को होश आया। काफी समय तक आशा में बाहर निकने का भी साहस नहीं बचा था। आशा जी के शब्दों में-“ एक लड़की जब शादी के बाद दूसरे परिवार में जाती है , और जिसके साथ जीवन बंधा हो,और जब वही नहीं रहा तो फिर जीवन क्या ?” लेकिन परिवार और संगठन ने आशा को फिर से उठ कर खड़ा होने की प्रेरणा दी। सभी के सपोर्ट से आशा ने भी अपने पति के अधूरे काम को पूरा करने के लिए समाज के लिए कुछ करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया । मेयर के रूप में आशा लकड़ा ने राँची शहर की साफ़ सफाई पर पूरा ध्यान दिया। आशा लकड़ा ने पूरी निष्ठा और निर्भीकता से अपना काम भी किया। मेयर के अधिकार और दायित्व के तहत उन्होंने नगर निगम के आयुक्त को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था। इस मामले पर उन्होंने नगर आयुक्त को 24 घंटे के अंदर शो-कॉज कर जवाब मांगा था। वहीं उन्होंने आम जनता की परेशानी जानी सुनी और उसका निराकरण भी किया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आशा लकड़ा के लिए एक बिग सैल्यूट तो बनता है। समय के साथ विश्व में स्त्री पुरुष की समानता का अंतर कम होता जा रहा है। हमारे देश की महिलाएँ भी अपने कदमों के निशां बनाती जा रही हैं... हर क्षेत्र में। आशा लकड़ा सिर्फ झारखण्ड़ की वादियों में गूँजने वाला नाम भर नहीं है, बल्कि एक मजबूत मांदर (आदवासियों का एक वाद्य यंत्र-मृदंग के जैसा ) है। जिसकी आवाज दूर...दूर तक सुनी जाती है। आशा से झारखण्ड़ के साथ देश की भी आशाएँ हैं। आशा जी देश की महिलाओं के लिए मिसाल हैं। सच आशा लकड़ा जैसी महिलाएँ अपनी लगन और अपनी मेहनत से खुद का इतिहास लिखती हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर पूर्व मेयर राँची आशा लकड़ा जी को ढ़ेरों शुभकामनाएँ।
दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्प का एक चेहरा झारखण्ड़ की राजनीति से उभर कर देश की राजनीति में अपनी एक खास पहचान बना रहा है जिसका नाम आशा लकड़ा है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम उन्हीं आशा लकड़ा को करीब से जानने की कोशिश करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस, महिलाओं की विभिन्न उपलब्धियों का जश्न है। जिसे विश्व के लगभग सभी देश मनाते हैं। समय की करवट के साथ विश्व में स्त्री-पुरुष की समानता के भेद कम होते जा रहे हैं। लगभग हर देश की महिलाओं की स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है। भले ही मंजिल अभी पूरी तरह नहीं मिली है, लेकिन इसके लिए महिलाएँ भी खुद आगे बढ़ कर प्रयास कर रही हैं, और सफल भी हो रही हैं। हमारे देश की महिलाएँ भी आज सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर ना सिर्फ साथ चल रही हैं, बल्कि आगे बढ़कर अपनी बराबरी दर्ज करा रही हैं। इतना ही नहीं महिलाओं की बढ़ती भागीदारी में आज दलित और आदिवासी महिलाओं के भी कदम भी बढ़ चुके हैं। राँची की पूर्व मेयर आशा लकड़ा राजनीति में उभरता हुआ एक चेहरा हैं। ये दो बार राँची की मेयर चुनी जा चुकी हैं, और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव भी हैं। आशा लकड़ा में, महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरह धैर्य और आंतरिक आवेगों पर नियंत्रण का गुण और स्व. सुषमा स्वराज की तरह जुझारूपन के साथ अनुशासन प्रियता का भी गुण है। अपने स्नेहिल स्वभाव के कारण ये जनता की प्रिय नेता है। आशा जी अपने छात्र जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में पूर्ण कालिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते हुए परिषद की राष्ट्रीय सचिव रह चुकी हैं। इन्होंने एवीबीपी की सचिव से लेकर नेशनल वर्किंग कमेटी की जिम्मेदारी भी खूब निभाई। एवीबीपी से जुड़ने के कारण अनुशासन उनके व्यक्तित्व में समा चुका है। आशा लकड़ा का सब से बड़ा प्लस प्वाइंट उनका आदिवासी महिला होना है । उनका प्रोफाइल काफी लो है, और वे आसानी से सब के साथ घुल-मिल जाती हैं। अपनी व्यवहार कुशलता के बल पर कॉलेज से होते हुए शहर और राज्य में उन्होंने अपनी पहचान बनायी और अब राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए अग्रसर हैं। आशा लकड़ा भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा छत्तीसगढ़ और अरुणांचल प्रदेश की प्रभारी भी रही हैं। 2013 में महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष स्मृति ईरानी के नेतृत्व में महिला मोर्चा की राष्ट्रीय मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिला। इन्हें केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्य मंत्री के लिए चयन के लिए पर्यवेक्षक बना कर भेजा गया है। आशा लकड़ा के के स्वभाव की तरह उनके जीवन के रास्ते सरल नहीं थे। इनका पूरा जीवन झंझावतों के बीच बीता है । फिर भी उन्होंने अपने दृढ़ निश्चय और आत्मबल से सारी कठिनाइयों को मात दे कर अपना मुकाम हासिल किया है। आर्मी परिवार से आने वाली आशा लकड़ा के परिवार से कोई भी राजनीतिक से है। आशा के पिता सीआरपीएफ में जवान थे। माँ गृहणी। चार भाई बहनों में आशा दूसरे नंबर की संतान हैं। आशा ने बचपन में ही अपनी माँ को खो दिया था,जब वे पाँचवीं क्लास में पढ़ रहीं थी। आशा की बड़ी बहन इंटर में पड़ रही थीं। आशा से छोटे भाई और बहन की देख भाल और घर की जिम्मेदारी दे कर पिता ने उन्हें पड़ाई छोड़ देने का दबाव बनाया। लेकिन आशा ने पढ़ाई छोड़ने से इंकार करके घर और भाई बहन की जिजिम्मेदारी के साथ पढ़ाई जारी रखी। झारखण्ड़- गुमला के चुरहू गाँव की सीमित सुविधाओं वाले आदिवासी परिवार की एक छोटी लड़की अपनी अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए सुबह चार बजे उठ कर घर का सारा काम ( बर्तन से लेकर घर आंगन की साफ सफाई, खाना बनाना और भाई बहन के लिए खाना रख कर) करके छः बजे बिना खाना खाए बीस मिनट का रास्ता तय कर दौडते भागते बस पकडतीं। उस समय एक ही बस थी जो स्कूल के समय के लिए थी । बस ना छूट जाए इसके चलते आशा दिन का भोजन भी नहीं कर पाती थी। फिर पाँच कि. मि. और पैदल चल कर स्कूल पहुँतीं। शाम को खाना खाती और फिर वही घर की जिम्मेदारी। एक इंटरव्यू में आशा जी अपने बचपन को याद करते हुए बताया कि उन्होंने अपने पचपन को भूल कर माँ,पिता( पिता अपनी सी आर पी एफ की ड्यूटी में) और बड़ी बहन की जिम्मेदारी को पूरा किया है । अपन बचपन के समय को याद कर काफ़ी भावुक हो गयीं थीं। आशा जी ने उन दिनो को याद करते हुए ये भी बताया कि उन दिनों ना तो पहने के लिए पैर में चप्पल थी और ना जाड़े से बचने के लिए स्वेटर था। लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना। बीच -बीच में खुद भी लड़कियाँ लाने जंगल जाना । वहाँ झरिया से गिरता पानी और झरने का गिरते पानी से खेल कर और जंगल के आंवले तोडकर खाने में अपना बचपन जीना भी एक समय था। सारी कठिनाइयों के होते हुए आशा जी ने हाई स्कूल पास किया। आशा जी के सभी रिश्तेदारों ने राँची आ कर अपनी पढ़ाई की, मगर आशा ने अपने भाई बहन की जिम्मेदारी के चलते गुमला के कार्तिक उराँव कॉलेज से स्नातक किया। फिर राँची विश्वविद्यालय से एम.ए. बी एड़ और पी एच डी किया सच में आशा लकड़ा के इस जज्बे के लिए जो भी कहा जाए कम होगा। 2010 में संगठन में मंत्री रहते हुए आशा लकड़ा की शादी राजेन्द्र धान से हो गयी, जो खुद राजनीति में थे और आशा को भी प्रोत्साहित किया करते थे। शादी के एक साल बाद ही आशा के जीवन में एक बहुत बड़ा तूफान आया 2012 में नक्सलियों ने आशा के पति की हत्या कर दी। आशा के लिए यह सदमा बर्दाश्त करना बेहद कठिन था। आशा कोमा में चली गयीं । पंद्रह दिन तक हॉस्पिटल में इलाज बाद आशा को होश आया। काफी समय तक आशा में बाहर निकने का भी साहस नहीं बचा था। आशा जी के शब्दों में-“ एक लड़की जब शादी के बाद दूसरे परिवार में जाती है , और जिसके साथ जीवन बंधा हो,और जब वही नहीं रहा तो फिर जीवन क्या ?” लेकिन परिवार और संगठन ने आशा को फिर से उठ कर खड़ा होने की प्रेरणा दी। सभी के सपोर्ट से आशा ने भी अपने पति के अधूरे काम को पूरा करने के लिए समाज के लिए कुछ करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया । मेयर के रूप में आशा लकड़ा ने राँची शहर की साफ़ सफाई पर पूरा ध्यान दिया। आशा लकड़ा ने पूरी निष्ठा और निर्भीकता से अपना काम भी किया। मेयर के अधिकार और दायित्व के तहत उन्होंने नगर निगम के आयुक्त को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था। इस मामले पर उन्होंने नगर आयुक्त को 24 घंटे के अंदर शो-कॉज कर जवाब मांगा था। वहीं उन्होंने आम जनता की परेशानी जानी सुनी और उसका निराकरण भी किया। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आशा लकड़ा के लिए एक बिग सैल्यूट तो बनता है। समय के साथ विश्व में स्त्री पुरुष की समानता का अंतर कम होता जा रहा है। हमारे देश की महिलाएँ भी अपने कदमों के निशां बनाती जा रही हैं... हर क्षेत्र में। आशा लकड़ा सिर्फ झारखण्ड़ की वादियों में गूँजने वाला नाम भर नहीं है, बल्कि एक मजबूत मांदर (आदवासियों का एक वाद्य यंत्र-मृदंग के जैसा ) है। जिसकी आवाज दूर...दूर तक सुनी जाती है। आशा से झारखण्ड़ के साथ देश की भी आशाएँ हैं। आशा जी देश की महिलाओं के लिए मिसाल हैं। सच आशा लकड़ा जैसी महिलाएँ अपनी लगन और अपनी मेहनत से खुद का इतिहास लिखती हैं। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर पूर्व मेयर राँची आशा लकड़ा जी को ढ़ेरों शुभकामनाएँ।
मंजुला शरण
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