Gangotri to Gomukh travelogue : गंगोत्री से गोमुख यात्रा वृतांत
This thrilling journey from Delhi to Gaumukh explores dangerous mountain trails, spiritual depth, and the divine origin of the Ganges. A unique travel story told from the perspective of a courageous woman, blending adventure with faith and nature’s grandeur. दिल्ली से गौमुख तक की यह रोमांचकारी यात्रा आपको ऊँचे पहाड़ों, गहरी खाइयों, भूकंप और तूफान जैसी प्राकृतिक चुनौतियों के साथ-साथ गंगा माँ के उद्गम स्थल की दिव्यता से भी परिचित कराएगी। एक माँ, एक साधिका और साहसी महिला की दृष्टि से लिखी गई एक अनोखी यात्रा।

Gangotri to Gomukh travelogue : घुमक्कड़ी, लेखन तथा अध्यात्म में रुचि होने कारण पौराणिक स्थलों के दर्शन का भी शौक है वैसे तो मैंने देश-विदेशों की सैर की है भारत के पूर्व के कुछ राज्य छोड़कर कर सम्पूर्ण भारत का दर्शन कर चुकी हूँ।परन्तु आज मेरा मन एक साहसिक यात्रा पर बात करना चाहता है तो अब हम आपको दिल्ली से गौमुख ले चलते है। सन् २००० की बात है हम लोगों का गौमुख जाने का प्रोग्राम बना गंगोत्री में ओशो का शिविर था पाठक जी (मेरे पति) ओशो के अनुयायी हैं अतः हम लोग शिविर में सम्मिलित होने के लिए अपनी गाड़ी से देहरादून अपने घर पहुँच जाते हैं, वहाँ से सुबह गाड़ी से ही गंगोत्री के लिए रवाना होते हैं। रास्ते में मनमोहक सुंदर पर्वतीय दृश्यों का आनंद उठाते हुए गंगोत्री पहुँच कर दो दिन वहां रुकते हैं। उस समय गंगोत्री में बिजली नहीं होती थी, शाम होते ही अन्धेरा हो जाता। रात में होटल जिसमें हम लोग रुके थे वह गंगातट पर ही था गहरी अन्धेरी रात दूसरा गंगा जी का तेज प्रवाह पत्थरों से धाड़-धाड़ टकराने की आवाज लग रहा था मानो गंगा जी होटल में ही आ रहीं है डर की वजह से नींद भी कोसों दूर भाग गई। दो दिन गंगोत्री में बिताने के बाद अगला गन्तव्य गौमुख था।
सूर्य की प्रथम किरण के साथ ही गंगा माँ के मन्दिर के पीछे से ही रास्ता ऊपर जाता है हम लोग निकल पड़े। गंगोत्री से गौमुख १८ है अर्थात ३६ किमी आना जाना। पैदल का ही रास्ता है कोई साधन नहीं है कभी कभी खच्चर भोजवासा तक मिल जाता है परन्तु रास्ता काफी संकरा होने के कारण लोग पैदल ही जाना पसंद करते हैं। ऊंचाई लगभग ४००० मी. है। गर्मी कातापमान१५डिग्री रहता है। चढ़ाई शुरु करने से पहले वन विभाग के अधिकारी सामान चेक करते हैं खाने पीने के सामान के रैपर लिख लेते हैं वापसी में गिनते हैं यदि कोई भी बोतल या रैपर आपने वहां फेंका तो ५००० रु. का जुर्माना देना पड़ता है। अब हम लोग आगे बढ़ते भोज और चीड़ के बड़े-बड़े वृक्ष घने जंगल पांच सात लोग सिर्फ हवा और सन्नाटे की आवाज लगभग ९ किमी चलने के बाद चिरवासा आया यहां चीड़ के वृक्षों की बहुतायत है। छोटी-छोटी एक दो दुकाने जहां चाय, पानी, मैगी मिली थोड़ा आराम करने के बाद फिर यात्रा शुरु की कुछ किमी के बाद गिला पहाड़ आया, यह भूस्खलन के लिए खतरनाक समझा जाता है, मेरे देखते देखते ही एक साधू भूस्खलन के चपेट में आ गया न जाने कितने नीचे गहरी खाई में गिरा होगा। ज्यादातर मिट्टी के पहाड़ हैं २ किमी चलने के बाद भोजवासा आया। १४ किमी चलने के बाद एक मात्र आवास भोजवासा है यहां केवल शाकाहारी भोजन ही मिलता है यहां से गौमुख की दूरी ४ किमी है थोड़ा विश्राम करने के बाद पुनः यात्रा प्रारंभ की। एक किमी जाने के बाद माउंट शिवलिंग का भव्य दृश्य दिखाई दिया। भोजवासा के बाद रास्ता काफी कठिन था। गौमुख जाने के लिए वोल्डर जोन को पार करना पड़ा। गंगोत्री ग्लेशियर हिमालय के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक है। यह दिव्य गंगा माँ का उद्गम स्थल है।यहां प्रत्येक कदम पर प्रकृति की सुन्दरता की झलक दृष्टित होती है।
खतरनाक संकरा मार्ग, दाहिनी तरफ गहरी खाई, तेज प्रवाह में बहती नदा rवायीं तरफ ऊंचा पहाड़, पेड़ों की संख्या शून्य हरियाली का नामोनिशान नहीं, ऑक्सीजन की कमी एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक जाने के लिए लकड़ी के तख्ते से गुजरना नीचे खाई देखते ही चक्कर आ जाए। चारों ओर पत्थर ही पत्थर सामने भागीरथी समूह की चोटियां चार किमी का जटिल रास्ता पार करना के बाद माँ के उद्गम स्थल पर खड़े थे सारी थकान दूर हो चुकी थी। प्रकृति की उस सुन्दरता का वर्णन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है। शाम हो गई थी काफी ठंड थी। मेरे जेठ जी गौमुख से निकलते जल में स्नान करने लगे हम लोगों में से किसी की भी आचमन करने की हिम्मत न हुई। मौसम बिगड़ने लगा। वहां एक साधू की कुटिया थी उन्होंने कहा आप लोग निकल जाएं क्योंकि वहां से चार किमी तक कुछ भी नहीं था। हमलोग सात बजे तक भोजवासा आवास पहुँच चुके थे। २२ किमी पहाड़ी मार्ग चलने के बाद अब एक कदम भी चलने की हिम्मत नहीं थी। रात उसी एकमात्र विश्राम गृह में रुके, अभी रोमांच समाप्त नहीं हुआ हम सब गहरी नींद में थककर सो गये। रोशनी का मोमवत्ती के सिवाय और कोई साधन नहीं था। रात का एक बजे पूरा आवास जोर-जोर से हिलने लगा सब डरकर उठ गये। तीव्र गति का भूकंप आया था। भगवान की याद करते करते सुबह हुई।
वापसी की यात्रा शुरु की। रास्ते में पाठक जी के पेट में जोर से दर्द होने लगा पता नहीं कहां से एक खच्चर दिखा। उन्हें खच्चर से वापस भेज दिया गया। अब मैं और मेरी ५ साल की बेटी एवं ७ साल का बेटा परिवार के अन्य सदस्य आगे पीछे थे। इसी बीच अत्यंत संकरा रास्ता साथ ही साथ पहाड़ का मोड़ काफी तेज तूफान आया। मैं अपने दोनों बच्चों को चिपका कर पहाड़ की तरफ चिपक कर खड़ी हो गई। तूफान निकलने के बाद हम सब रात आठ बजे गंगोत्री वापस आ गये। वैसे तो मैंने नैनीताल के चाइना पीक की भी साहसिक यात्रा की है परन्तु गौमुख की बात ही अलग है। यह ट्रेक प्रकृति की भव्यता और अध्यात्मिक महत्व के माध्यम से एक उल्लेखनीय यात्रा का अनुभव का अनुभव कराता है। जो इसे एक यादगार और साहसिक बनाता है।
नीलम पाठक
नोएडा, उत्तर प्रदेश
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