उसने मुझसे कहा

This is a touching story of a teacher and her student, where a boy facing hardships dedicates his first earnings to his teacher, whom he sees as his mother. A true tale of emotion, respect, and inspiration. दादी मां ने मुझे नम आंखों से भगवान का भेजा हुआ दूत तक बता दिया। परन्तु मेरे लिए खुशी की बात यह थी कि - वह होनहार बच्चा जो स्कूल छोड़ चुका था, पुनः अगले दिन विद्यालय प्रांगण में दिखाई देने लगे।

Jul 8, 2025 - 14:55
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उसने मुझसे कहा
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यह बात तकरीबन सात-आठ साल पहले की है। जब मैं एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती थी। उस समय मेरी तनख्वाह दो हजार थी। विद्यालय के प्रथम दिन ही मैंने उस विलक्षण काया को देखा। उस समय वह तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था। सभी बच्चों से एकदम अलग उसका व्यवहार और समय से पहले आई चिंता की रेखाएं उसके चेहरे पर साफ़- साफ़ देखी जा सकती थी।

तीसरी कक्षा से सातवीं कक्षा तक मैंने उसको देखा। परन्तु अचानक ही उस बच्चे ने विद्यालय आना बंद कर दिया। पता करने पर मालूम हुआ कि स्कूल की फिस जमा न कर पाने के कारण स्कूल छोड़ने की नौबत आ गई थी! मैंने उसके घर फोन किया, फोन उसकी दादी मां ने उठाया। स्कूल न आने कारण पुछने पर उन्होंने कहा कि - ‘उसकी मां को मरे कई साल हो चुके हैं; अब एक वो ही तो नहीं है न और भी बच्चे हैं घर में, मैं अब उसे उस स्कूल में नहीं पढ़ा सकती।' उन्होंने और भी बहुत कुछ कहा परन्तु रोने के कारण मैं उनकी बातें अच्छे से सुन भी नहीं पाई। मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि- ‘मैं कुछ नहीं जानती, बस कल से वह बच्चा स्कूल आना चाहिए। उसकी सारी जिम्मेदारी मेरी होगी।

दादी मां ने मुझे नम आंखों से भगवान का भेजा हुआ दूत तक बता दिया। परन्तु मेरे लिए खुशी की बात यह थी कि वह होनहार बच्चा जो स्कूल छोड़ चुका था, पुनः अगले दिन विद्यालय प्रांगण में दिखाई देने लगे। 
उपरोक्त बातों को बीते हुए काफी समय हो चुका था। उस समय शिवरात्रि के उपलक्ष्य में हमारे गांव में एक समारोह का आयोजन किया गया था। उसके रंगीन कागज़ के फूल काटने की कला से मैं भली-भांति परिचित थी। इसलिए ये जिम्मेदारी मैंने उसी को दिया। काम के पूरे होने पर मैंने उसे तीन सौ पचास रूपये, ये कह कर दिए कि - ‘शिवरात्रि पूजा कमेटी के लोगों ने ये पैसे आपकों दिए हैं।'

परन्तु वास्तव में यह पैसे मैंने ही दिए थे। लेना नहीं चाहता था परन्तु पहली कमाई है बोल के मैंने उस पैसे को उसके हाथों में थमा दिया।
तकरीबन एक सप्ताह के पश्चात वृहस्पतिवार के दिन, विद्यालय की छुट्टी के बाद स्कूल और बाज़ार के बीच रास्ते के किनारे मैंने उसको खड़ा देखा। देख कर ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बड़ी देर और उत्सुकता के साथ वह मेरी प्रतिक्षा कर रहा हो।
मुझे रोक कर उसने मुझसे कहा- ‘मुझे आपसे एक बात बोलनी है मैम!'
‘हां बोलिए'- मैंने कहा!
तब उसने वही तीन सौ पचास रुपए मुझे देते हुए कहा कि - ‘मैम , ये पैसे आप रख लीजिए।'
मैंने कहा - ‘क्यों?' 
उसके बाद उस बच्चे ने जो कहा, उसे सुनकर मैं ही नहीं बल्कि आस-पास के सभी लोग भी चौंक गए। साप्ताहिक बाज़ार का दिन होने के कारण लोगों की भीड़ भी थी। झरने की तरह झर रहे आंसू के बीच रोते-रोते उसने उसने मुझसे कहा कि - ‘मैम, बच्चा अपनी पहली कमाई तो अपनी मां को देता है न! करता आप मेरी मां नहीं है?'

लोगों की भीड़ ने मुझे और उस बच्चे को बहुत समझाया और उस बच्चे को आशीर्वाद देते हुए मैंने उसे बहुत-बहुत बधाई दी। लोगों ने कहा कि- ‘आप बहुत भाग्यशाली हैं, जो आपको ऐसा छात्र मिला है।'
अंततः मुझे वो पैसे लेने पड़े। परन्तु लेने के साथ-साथ मैंने उसे वह पैसे ये कहकर लौटा दिए कि - ‘अब ये मेरे पैसे हैं और अब मैं आपको दे रहीं हूं। इन पैसों से आप अपने लिए पढ़ाई करने की सामग्री खरीद लीजियेगा।'
वहां जमी भीड़ ने बहुत ही आशीर्वाद और स्नेह के साथ हमें घर को बिदा किया।
आज मुझे यह बताते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है कि आज वह बच्चा दसवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने के साथ-साथ दो विषयों में लेटर माक्स प्राप्त कर सिर्फ़ मेरा ही नहीं अपने विद्यालय का भी नाम रौशन किया। इस कार्य के लिए मेरे पूर्व विद्यालय के बच्चों ने मिलकर १७/०२/२०२३ को मुझे सम्मानित कर अपना स्नेह दर्शाया, जिसको व्यक्त करने हेतु मेरे पास शब्द नहीं हैं ।

बिमला सिंह
पश्चिम कार्बी आंग्लांग, असम

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