Hindi Poetry | सूरज ने है ज़िद ठानी
लगता है सूरज ने है ज़िद ठानी, आना है मुझको धरती पर, पीना है मुझको पानी।
लगता है सूरज ने है ज़िद ठानी,
आना है मुझको धरती पर,
पीना है मुझको पानी।
सूरज की ज़िद के चक्कर में,
धरती उलझ रही लपटों में।
सूरज की प्रचंड गर्मी में,
पापड़ सेक रहे हैं लोग।
ए सी में बैठे हुए लोगों को,
गरीबों की परवाह नहीं।
गर्मी में जो झुलस रहे हैं,
उनकी कोई थाह नहीं।
रोटी के लिए घर से निकले ,
पर उनको कहीं छांव नहीं।
सूरज ने है शर्त लगाई,
मुझ से तेज नहीं कोई ।
हार जीत का ये चक्कर,
गरीबों पर बड़ा ही भारी है,
सूरज देव आप क्या जानो,
ये धरती के वासी हैं।
मुश्किल से ये हार न मानें,
कोई तरकीब लगा लेंगे।
सूरज की ज़िद का अवश्य,
जल्दी कोई हल निकालेंगे।
चांद पर तो पहुंच चुके हैं,
अब सूरज की बारी है ,
लू, धूप से मिलेगी राहत ,
थोड़ा प्रयास की देरी है,
कंक्रीट के जंगल में फिर से,
वृक्ष लगाना जरूरी है।
कंचन चौहान
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