उम्मीद की एक किरण
कहीं से नजर आती उम्मीद की एक किरण हर परिस्थिति से टकराने की हिम्मत है परिस्थितियां ?
कहीं से नजर आती उम्मीद की एक किरण
हर परिस्थिति से टकराने की हिम्मत है
परिस्थितियां ?
हां.. जो अपेक्षाओं की टूटन से उभरती है
जिनके बोझ तले भूल जाते हैं स्वयं को
घर कर जाती है अंदर कहीं इक टीस
समय बे समय कचोटती रहती है हृदय को
निज से हो जाता है एक अलगाव
निज को भूल जाने की पीड़ा
हो सकता है क्या इससे दुष्कर कुछ .?
फिर... ?
अचानक नजर आती है कहीं से एक किरण
जो अपने साथ उत्साह लिए आती है
चेहरे पर बिखर जाती है एक मुस्कान यूं ही
आसपास सब कुछ अपने आप ठीक लगता है
स्वीकार कर लेते हैं परिस्थितियों को
विवशता भी होती है कहीं न कहीं मूल में
किंतु.. इस सहज स्वीकार में
कितना कुछ आसान हो आता है
ग्लानि या क्षोभ से भरे मन में संतुष्टि का भाव
व्यवहार में आ जाती है तटस्थता
न किसी बंधन से लगाव, न अलगाव की पीड़ा
कितना कुछ बदल जाता है बस एक किरण से
मन का संजय ठीक ही कहता है...
आशा बलवती राजन् ।।
विवेक यादव
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