रंगीला फाग
पहला मधुकर रंग हो, इतना तो अधिकार। गोरी कोरी देह पर,दे पिचकारी मार।।
फागुन मचती धूम है, बरस रहा अनुराग।
मौसम यह कचनार का, रंगीला सा फाग।।
रंगीला सा फाग,चुनर गोरी की भीजै
मलिए अधर गुलाल,रंग में सब तर कीजै
ऐसा गहरा रंग,बिचारा हारा साबुन
मधुकर बजे मृदंग,छबीला आया फागुन।।
पहला मधुकर रंग हो, इतना तो अधिकार।
गोरी कोरी देह पर,दे पिचकारी मार।।
दे पिचकारी मार,चले रंगों की गोली
तुम आना इस पार, नहीं तरसे यह होली
डालो सजनी खूब,रहे नहले पर दहला
जाए प्रीतम डूब,रंग जो डालो पहला।।
गुझिया मोदक बन रहे,मालपुए का स्वाद।
भांग गुणी जन घोंटते,बाबा का परसाद।।
बाबा का परसाद, रहेंगे सब मतवाले
गोकुल है लठमार,ग्वाल सब पिटने वाले
मधुवन बाजे ढोल,रास रचता है बढ़िया
कर लो मधुकर प्रेम,खिलाओ सब को गुझिया।।
मधुकर वनमाली
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