पत्नी को विदा कराने आए राजेशसे उनकी सास आशा देवी ने कहा, "समय की नजाकत देखते हुए बेटा, तुम्हें अब सही निर्णय ले लेना चाहिए। जब तक तुम अपनी संपत्ति का फैसला अपने पिता और भाई से कर नहीं लेते, तब तक मैं अपनी बेटी तुम्हारे साथ नहीं भेजने वाली।"
"मम्मीजी, यह मामला इतना आसान है। पापा से मिले मकान में हम दोनों भाइयों का बराबर का हिस्सा है। पर बड़े भाई वह मकान छोड़ना नहीं चाहते, इसलिए यह मामला जल्दी सुलटने वाला नहीं है।" राजेश ने सास को समझाते हुए कहा।
तब आशा देवी ने कहा, "तो तुम उस मकान पर अपना हक छोड़ क्यों नहीं देते। क्योंकि उस मकान के बदले तुम्हें मनचाही रकम मिल जाएगी। इसकी वजह यह है कि वहां एयरपोर्ट बनने वाला है। तुम्हारे उस मकान और जमीन का भाव करोड़ो में पहुंच जाएगा।"
"अपना पुश्तैनी मकान मैं कैसे छोड़ सकता हू मम्मी?" राजेश ने कहा।
"मेरी बात समझो बेटा।" आशा देवी ने कहा, "तुम्हारे मम्मी-पापा तुम्हारे भाई के साथ उसी मकान की वजह से रहते हैं। ऐसे में उनके सभी खर्च और बीमार होने पर उनकी देखभाल की जिम्मेदारी भाई की ही बनती है। अगर तुम मकान में हिस्सा लेते हो तो मम्मी-पापा की देखभाल और उनके खर्च की जिम्मेदारी तुम्हारी भी बनेगी। ऐसे में तुम्हारी और शिवानी की आजादी छिन जाएगी। इसलिए मैं कहती हूं कि वह मकान छोड़ने में ही तुम्हारी भलाई है।" आशा देवी ने बेटी और दामाद के भविष्य को ध्यान में रख कर कहा।
"मम्मी, आपने तो कभी बेटा और बेटी में भेदभाव किया नहीं।" सास की इस बात का राजेश कोई जवाब देता, उसके पहले ही मां बात सुन कर शिवानी बोल उठी। राजेश और आशा देवी शिवानी की इस बात का मतलब समझ में नहीं आया, इसलिए दोनों उसका चेहरा देखने लगे।
शिवानी ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, "इनकी जगह आज प्रशांत भइया होते तो क्या आप उन्हें भी खुद से और पापा से अलग होने की सलाह देती?