जिंदगी की कश्मकश

सुर  सुरा  सुंदरी  से महक  रही थी जिंदगी 

Mar 14, 2024 - 17:35
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जिंदगी की कश्मकश
life

जिंदगी की कश्मकश में हम सदा झूलते रहे
क्यों  आया  इस जग में  यह सदा भूलते रहे

जिंदगी बीत रही झूठी शान और शौकत में
जिसने भी उंगली  उठाई  उसको  घूरते रहे 

सुर  सुरा  सुंदरी  से महक  रही थी जिंदगी 
अय्याशियों  के ढेर पर चढ़े  हम फूलते रहे 

सन्मार्ग  नकार कर  कुमार्ग पर चलने लगे
जहां हित अपना दिखा उसी को लुटते रहे

खुदा ने कुकर्मों  का लेखा -जोखा सुनाया
पश्चाताप  के झरते आंसू  खुद  पोछते रहे 

सविता सक्सेना 'दिशा'

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