फूल चोर
उनकी इस आदत से सब लोग बड़े परेशान थे। अलका ने घर की दीवार से लगाकर खूब सारे गुलाब लगाए थे, उसके गुलाब की कलियां भी नहीं बचती।
रानू जी कॉलोनी की सबसे पुराने रहवासियों में से थी। बहुत ही अकडू स्वभाव, नकचढ़ी और घमंडी। बड़ा सा बंगला था उनका, उनके साहब, वो अपने पति को इसी नाम से संबोधित करती थी, रिटायर्ड सरकारी अधिकारी थे।
रानू जी की रोज़ सुबह मुंह अंधेरे उठ जाती और कॉलोनी का चार पांच चक्कर घूमतीं। सैर करने तक तो ठीक था, पर उनकी एक बुरी आदत थी। वो सबके घरों से फूल तोड़ लिया करती। उनके हाथ में एक बड़ी सी लकड़ी होती जिसके एक सिरे पर तार का बना हुक लगा था, और साथ होता एक कपड़े का छोटा थैला।
हर उस घर से जहां किसी भी प्रकार के फूल लगे हों वो, तोड़ लेती। पेड़ बड़ा हो या फूल दीवार के भीतर हो तो उनकी छड़ी काम आती।
उनकी इस आदत से सब लोग बड़े परेशान थे। अलका ने घर की दीवार से लगाकर खूब सारे गुलाब लगाए थे, उसके गुलाब की कलियां भी नहीं बचती।
एक दो बार अलका ने टोका तो वो नाराज़ हो गई। कहने लगी "हम कौन सा तुम्हारे फूलों का हार बनाकर पहनते हैं। हम तो गोपाल जी को सजाने के लिए सब के घर से फूल इकट्ठा करते हैं। इसी बहाने तुम सबको भी थोड़ा पुण्य मिल जाता है।" अलका चुप हो गई। पर उसके मन में आया की कह दे– "खुद के घर में एक तुलसी के अलावा कुछ नहीं लगा रखा है, और दूसरों के घर से फूल चोरी कर पुण्य लूटने चली हैं।"
पहले भी जब भी किसी ने उनको रोका वो लड़ने पर उतारू हो गई। इसलिए कोई उनके मुंह नहीं लगता था।
एक दिन अखबार में अलका को एक पॉम्पलेट मिला, कॉलोनी के पास में ही फूल की दुकान खुली थी उसका था ये। उसमें एक लाइन लिखी थी "पूजा के लिए फूल घर पहुंचाने की व्यवस्था है।"
अलका के एक खुराफात सूझी। उसने कॉलोनी के किटी ग्रुप में मेसेज डाल कर सब को शाम को घर बुलाया।
शाम सब उत्सुकता से इंतजार कर रहे थे की अलका ने क्या प्लान बनाया है। सब इकट्ठा हुए तो अलका ने कहा –"रानू आंटी के फूल तोड़ने से सभी परेशान हैं, उसका एक उपाय मिला है मुझे। उसने वो पॉम्प्लेट सबको दिखाया। देखा तो सभी ने था सुबह उसे पर किसी ने उसकी उपयोगिता नहीं समझी थी। अलका ने कहा–"!मैने बात की है दुकान में छः सौ रुपए में ये महीने भर पूजा के लिए फूल देते हैं घर पर। क्यों न हम रानू आंटी के घर एक महीने भेजें? ऐसा करने से शायद उनकी फूल तोड़ने की आदत सुधर जाए।"
इतना कहकर उसने सबकी और आशा भरी निगाहों से देखा। कुछ के चेहरे और शंका थी, कुछ के असमंजस, कुछ को बात समझ आ गई थी।
चाय और समोसे के साथ चले विचार विमर्श के साथ अंततः ये तय हुआ की ये प्रयास किया जाए। बात बाहर नहीं जाएगी इसका वचन सब से लिया गया।
दूसरे दिन अलका ने फूल वाले से बात की, पता समझाया और कुछ एडवांस भी दे दिया।
रानू जी जब सुबह घूम कर घर पहुंची तो गेट पर एक पैकेट अटका हुआ था। उन्होंने खोल कर देखा तो उसमें फूल थे। उन्हें लगा किसी ने गलती से यहां भेज दिया है। वो पैकेट साथ ले गई की कोई आएगा तो से देंगी। अब ये रोज़ होने लगा। तीन चार दिन बाद उन्होंने घर में सबसे पूछा तो सब अनभिज्ञ थे इससे।
वो अब रोज़ पैकेट के फूल भी पूजा में उपयोग करने लगी थीं। उन्होंने सोचा जब बात खुलेगी कोई बोलेगा तो बोल देंगी हमने थोड़े ही बोला था, गलती से हमारे घर छोड़ रहा था फूलवाला, तो क्या करें, उपयोग कर लिया।
फूलवाले लड़के की टाइमिंग सटीक थी। जब रानू जी घूमने निकला करती तभी वो आता। रानू जी भी मुफ़्त के फूल के पीछे ज्यादा दिमाग नहीं लगा रही थीं। हां, पर इतना हुआ था की अब उनका फूल तोड़ना कम होता जा रहा था।
महीने भर बाद एक सुबह रानू जी घूमकर आने के बाद बैठकर चाय पी रही थी की दरवाजे की घंटी बजी।
देखा तो एक लड़का खड़ा था। अनजान लड़के को देखकर पहले तो उन्होंने गार्ड को कोसा की कैसे किसी को भी कॉलोनी में घुसने दे देता है।
बाहर आई तो उस लड़के ने एक कार्ड थमाया। प्रश्नवाचक निगाह से उन्होंने वो कार्ड खोला तो वो एक थैंक्यू का ग्रीटिंग कार्ड था।
"किसने दिया ये?" उन्होंने पूछा।
आंटी जी।
आंटी जी। ये कार्ड आपके लिए कॉलोनी की महिलाओं के किटी क्लब की तरफ से भेजा गया है।
रानू जी ने कार्ड पढ़ा, उसमें लिखा था "प्रिय रानू जी को, आपने पिछले पंद्रह दिनों से कॉलोनी में किसी के घर से फूल नहीं तोड़ा, इसके लिए हम दिल से आपका धन्यवाद करते हैं।"
रानू जी को थोड़ा गुस्सा भी आया और खुशी भी हुई। "अच्छा ठीक है ठीक है" कहती हुई वो भीतर जाने के लिए पलटी तो लड़के ने आवाज दी–"आंटी जी!"
"अब क्या है"उन्होंने पूछा।
"वो रोज़ जो पूजा के लिए फूल लाता हूं उसका बिल।" लड़के ने सहमते हुए कहा।
फिर क्या हुआ? अब खुद ही अंदाजा लगा लीजिए।
© संजय मृदुल
मैं प्रमाणित करता हूं की उपरोक्त मौलिक एवम अप्रकाशित रचना है।
संजय अग्रवाल
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