भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों के लिए धर्म, लिंग, जाति आदि के दायरों से ऊपर उठकर एक सम्मानजनक और न्यायपूर्ण जीवन का प्रावधान करता है। यह अपने प्रत्येक नागरिक के लिए एक ऐसी व्यवस्था करता है जहाँ पक्षपात का कोई अस्तित्व न हो और प्रत्येक नागरिक को न्याय सुलभ हो। किंतु कई बार जानकारी के अभाव में न्याय तक पहुँच सीमित हो जाती है। किंतु यह विडम्बना ही है कि जिस देश का कानून अपने सभी नागरिकों को हर एक स्तर, हर विषय में समान अवसर प्रदान कराता है उसी देश का एक वर्ग ऐसा भी है जो जानकारी के अभाव में कानून की ओर से मिली इस सौगात से वंचित है। उस वंचित वर्ग में इस जानकारी का अभाव है कि हमारी सरकार हमें निशुल्क कानूनी सहायता जैसा एक सशक्त साधन प्रदान करती है जिसके द्वारा हम न्याय तक पहुँच सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारा संविधान राज्य के लिये कानून के समक्ष समानता और सभी के लिये समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली कानूनी व्यवस्था सुनिश्चित करता है। इसी कम्र में निशुल्क कानूनी सहायता का प्रावधान देश के संविधान में वर्ष १९७६ में ४१वें संशोधन के तहत अनुच्छेद ३९क को जोड़ कर किया गया जिसमें राज्य का यह कर्तव्य तय किया गया कि वह यह सुनिश्चित करेगा कि देश का विदित तंत्र इस प्रकार काम करे कि देश के प्रत्येक नागरिक को समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और मुख्य रूप से आर्थिक या किसी अन्य कठिनाई के कारण वे न्याय पाने से वंचित न रह जाएँ। अनुच्छेद ३९क गरीब और कमजोर वर्गों को निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का प्रावधान है, ताकि सभी को न्याय प्राप्त करने का समान अवसर मिल सके। इसी अनुच्छेद ३९क के तहत विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, १९८७ को अधिनियमित किया गया जिसके तहत निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए विधिक प्राधिकरणों (केन्द्रीय स्तर पर नाल्सा और राज्य में अपने अपने अलग राज्य विधिक व जिला विधिक प्राधिकरण) का गठन किया गया। इस अधिनियम की धारा १२ में कुछ वर्ग प्रदान किए गए हैं और समाज का जो भी व्यक्ति उन वर्गों में आता है वह इन निशुल्क सेवाओं को प्राप्त करने का हकदार है। इस मामले में महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारी ८० प्रतिशत से अधिक जनसंख्या इस दायरे में आती है। अर्थात् यदि देश का कोई नागरिक आर्थिक कारणों की वजह से न्याय प्राप्त करने हेतु न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेने से गुरेज़ करता है और न्याय प्राप्त करने से वंचित रह जाता है तो इसका कारण उसकी अनभिज्ञता है चूँकि हमारे कानून व हमारी सरकार ने इस बाबत पुख्ता प्रावधान किया है कि देश का कोई भी नागरिक आर्थिक कारणों से न्याय से वंचित न रह जाए। उक्त अधिनियम की धारा १२ के तहत महिलाएँ और बच्चे, किन्नर (जिनकी सालाना आय ४ लाख रू. से कम हैं), वरिष्ठ नागरिक (जिनकी वार्षिक आय ४ लाख तक है), दिव्यांगजन, औदयोगिक श्रमिक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति, किसी बड़ी प्राकृतिक आपदा जैसे कि भूकंप, बाढ़ इत्यादि से पीड़ित व्यक्ति, मानव तस्करी के शिकार या बेगार में संलग्न लोग तथा कानूनी हिरासत में लिया गया व्यक्ति (जेलों में बंद विचारणाधीन कैदी) निशुल्क कानूनी सहायता सेवा का लाभ उठा सकता है। गौरतलब है कि इस फेहरिस्त में भारत का कोई ऐसा नागरिक भी शामिल है जिसकी वार्षिक आय सभी स्त्रोतों से मिलाकर ३ लाख रूपए से कम है।
निशुल्क कानूनी सेवाएँ प्रदान करने हेतु कानूनी सेवा संस्थान:
विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम,१९८७ के तहत निशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने हेतु राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर से लेकर जिला व तालुका स्तर तक विभिन्न प्राधिकरणों का गठन किया गया जिनमें राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (र्Aथ्एA) का गठन किया गया, जिसके मुख्य संरक्षक है भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। राज्य स्तर पर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण का गठन किया गया, जिनकी अध्यक्षता राज्य विशेष के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है, जिला स्तर पर ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण का प्रावधन किया गया है जिसके पदेन अध्यक्ष ज़िला न्यायाधीश होता है, तालुका/उप-मंडल स्तर पर तालुका/उप-मंडल विधिक सेवा समिति का गठन किया जाता है, इसकी अध्यक्षता एक वरिष्ठ सिविल जज करता है तथा उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में क्रमश उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति और सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति का प्रावधान भी किया गया है।
उक्त प्राधिकरणों के माध्यम से निशुल्क कानूनी सहायता के दौरान जो सुविधाएँ मिलती हैं उनमें निशुल्क कानूनी सलाह शामिल है। कोर्ट फीस, प्रोसेस फीस और टाइपिंग शुल्क की अदायगी भी प्राधिकरण के द्वारा की जाती है। कानूनी कार्रवाई के लिए वकील की व्यवस्था भी सरकार की ओर से ही की जाती है और उसका सारा व्यय सरकार के द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त अदालत की कार्रवाई के दौरान यदि किसी दस्तावेज या अपील का अनुवाद करवाना, उसे छपवाना या फिर उसकी पेपर बुक बनवाना अनिवार्य है, तो इस सब का खर्च भी सरकार द्वारा ही वहन किया जाता है।
उक्त निशुल्क कानूनी सहायता के लिए ऑफलाईन और ऑनलाइन दोनों माध्यमों से आवेदन किया जा सकता है। ऑफलाइन तरीके में किसी भी नज़दीकी अदालत जाकर राज्य विशेष की विधिक सेवा प्राधिकरण के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है तथा संबंधित प्राधिकण में जाकर मुफ्त कानूनी सहायता के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। निशुल्क कानूनी सहायता प्राप्त करने के लिए उस प्राधिकरण विशेष मे आवेदन करना होता है और आवेदन में यह जानकारी देनी होती है कि व्यक्ति विशेष को निशुल्क कानूनी सहायता या सलाह क्यों और किस आधार पर चाहिए। उसे यह स्पष्ट करना होता है कि वह अपना खर्च क्यों नहीं उठा सकता अथवा वह उक्त अधिनियम की धारा १२ के किस वर्ग से संबंधित है। इतना ही नहीं यदि प्रार्थी निरक्षर है या लिखने की स्थिति में नहीं है तो विधिक सेवा प्राधिकरण/समिति का सचिव अथवा अन्य कोई अधिकारी उसके मौखिक बयान को रिकार्ड कर उस रिकार्ड पर उसके अंगूठे का निशान/हस्ताक्षर ले लेता है और उस रिकार्ड को उसका प्रार्थना-पत्र ही समझा जाता है। वहीं दूसरी ओर ऑनलाइन तरीके में व्यक्ति विशेष को विधिक सेवा प्राधिकरण की वेवसाइट पर मौजूद प्रâी लीगल सर्विस टैब पर जाकर अपना राज्य सिलेक्ट करना होता है और वहाँ दिए गए प्रपत्र में जानकारी भर कर निशुल्क विधिक सहायता हेतु आवेदन किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा इस बाबत एक टॉल प्रâी नम्बर भी उपलब्ध करवाया गया है जो सुबह ९ बजे से लेकर रात १२ बजे तक उपलब्ध होता है। गौरतलब है कि निर्बाध सेवा हेतु इस नम्बर पर अलग अलग पैनल बनाए गए हैं ताकि समस्या का सटीक समाधान उपलब्ध करवाया जा सके। इसके लिए यहाँ अलग अलग विषय के विशेषज्ञ वकीलों ( जैसे सिविल मामलों, आपराधिक मामलों इत्यादि के वकील) का पैनल गठित किया गया है। वैसे तो हर जिला न्यायालय परिसर में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण का एक प्रâंट कार्यालय स्थित होता है जहाँ एक वकील और पैरालीगल वालेन्टेयर मौजूद रहते हैं। किंतु किन्हीं परिस्थितियों में जिला न्यायालय स्थित दफ्तरों तक न पहुँच पाने की स्थिति में २र्४े७ चलने वाली एक हेल्पलाइन नम्बर (दिल्ली के मामले में १५०६, नाल्सा के मामले में १५००) पर शिकायत दर्ज की जा सकती है। हेल्पलाइन पर कॉल किए जाने पर वकील साहब से तुरंत सम्पर्क हो जाएगा और उनके द्वारा उचित सलाह दी जाएगी और यदि किसी परिस्थिति के कारण व्यक्ति का वकील तक पहुँचना संभव न हो तो प्राधिकरण की कोशिश रहती है कि प्राधिकरण ही व्यक्ति तक पहुँच सके। इसके अतिरिक्त इस हेल्पलाइन में एक वीडियो कान्प्रâेन्सिंग लिंक भी शुरू किया गया है जो सुबह १० से शाम ५ बजे तक सक्रिय रहता है। उसमें वीडियो कान्प्रâेंसिंग के जरिए भी कानूनी सलाह ली जा सकती है। इसके अतिरिक्त कुछ राज्य प्राधिकरणों ने अपनी ऐप भी शुरू की है। जिसे एंडरॉयड प्लेस्टोर के माध्यम से डाउनलोड किया जा सकता है और पीड़ित उस ऐप के माध्यम से भी प्राधिकरण की सुविधा उठा सकता है। इसी तरह ईमेल भी आवेदन करने का एक साधन है।
एक बार आवेदन करने के बाद विभाग अपनी ओर से इस बात की पुष्टि करता है कि आवेदन करने वाले व्यक्ति को सच में निशुल्क विधिक सेवा की आवश्यकता है अथवा नहीं। विभाग द्वारा अपनी जाँच में व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी को सही पाए जाने पर प्राधिकरण मामले को आवश्यकता व परिस्थिति के अनुसार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, तालुक विधिक सेवा कमेटी, सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी या फिर हाई कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी, जो भी उपयुक्त लगे उस संस्था के पास भेज देता है। संबंधित संस्था में मामला अंतरित हो जाने के बाद उस संस्था विशेष द्वारा आवेदनकर्ता से कॉल, एसएमएस या फिर ई-मेल द्वारा सम्पर्क किया जाता है। तत्पश्चात आवेदनकर्ता उस संस्था से सम्पर्क कर कानूनी सहायता प्राप्त कर सकता है।
किंतु कतिपय मामलों में कई बार किन्ही कारणों से कॉल, एसएमएस या ई-मेल इत्यादि आने में समय लग सकता है। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति नज़दीकी विधिक सेवा प्राधिकरण में व्यक्तिगत रूप से जाकर अपने आवेदन का स्टेटस पता कर सकता है। आवेदन का स्टेटस ऑनलाइन भी देखा जा सकता है। आवेदन के अस्वीकार कर दिए जाने पर उसका कारण बताया जाना अनिवार्य है और आवेदन स्वीकार होने की स्थिति में निशुल्क विधिक सेवा प्रदान किए जाने का प्रावधान है।
किंतु समस्या यह है कि सुविधा तो कानून ने हमें दी है पर जानकारी के अभाव में हम प्राय: इस सुविधा का लाभ नहीं उठा पाते। प्रावधान होने और जनता के बीच उसकी जानकारी होने में अंतर होता है। प्रत्येक न्यायलय में मुफ्त विधिक सेवा का एक दफ्तर तो मौजूद है किंतु इसका प्रचार कम है। खासतौर पर हमारे समाज का वह वर्ग जिसे इस सुविधा की सबसे अधिक आवश्यता है वे ही इससे अनभिज्ञ हैं। जरूरत प्रचार की है। लोगों को इस संबंध में बताया जाना चाहिए। जिस प्रकार आज हर एक नागरिक यह जानता है कि किसी भी प्रकार का अन्याय होने की स्थिति में उसकी शिकायत पुलिस थाने में जाकर दर्ज करानी होती है उसी प्रकार प्रत्येक नागरिक को इस बात की भी जानकारी होन्ाी चाहिए कि सरकार जरूरतमंद लोगों को निशुल्क कानूनी सहायता जैसी सुविधा भी उपलब्ध करवाती है। पुलिस के लिए इस सेवा की उपलब्धता के बारे में थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवाने आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बताना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। ताकि जरूरतमंदों तक इस बात का प्रचार प्रसार हो सके। न्यायलय में केस दायर करते समय भी अधिवक्ताओं द्वारा यह बात वादी को बताई जानी चाहिए। खास तौर पर इस जानकारी का अंग्रेजी के दायरे से बाहर निकल कर हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषा में प्रचार किया जाना चाहिए। इसी तरह वकीलों को भी स्वयं आगे आकर इस योजना में अपना योगदान देना चाहिए। इस औपचारिक व्यवस्था में आम वकीलों के भी इस योजना से जुड़ जाने पर यह व्यवस्था अधिक सफल साबित होगी।
नेहा राठी