पीड़ा के राजकुंवर : गोपालदास नीरज

Gopaldas Neeraj, known as the “Prince of Songs,” was one of India’s greatest Hindi poets and lyricists. His soulful verses blended love, life, and philosophy with unmatched melody. Famous for songs like “Karvan Guzar Gaya,” “Likhe Jo Khat Tujhe,” and “Ae Bhai Zara Dekh Ke Chalo,” he was honored with the Padma Shri (1991), Padma Bhushan (2007), and Filmfare Awards.कवि नीरज जब मंच पर झूमकर काव्यपाठ करते थे तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उन्हें हिन्दी की वीणा का नाम दिया था। जनसामान्य की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं। अन्य भाषा भाषियों के लिए वह ‘सन्त कवि’ हैं और कुछ आलोचक उन्हें ‘निराश मृत्युवादी’ मानते हैं। वर्तमान समय के सर्वाधिक लोकप्रिय और लाड़ले कवि हैं जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति तथा सरल भाषा के द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया है ....

Oct 18, 2025 - 16:58
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पीड़ा के राजकुंवर : गोपालदास नीरज
Gopaldas Neeraj

गीतों के राजकुमार कहे जाने वाले हिन्दी के महान कवि एवं गीतकार गोपालदास नीरज की जीवन यात्रा स्वयं एक गीत के समान रही। अपने गीतों में चढ़ाव और उतार को अमूल्य शब्दों से सजाने वाले नीरज स्वयं समय के मोड़ पर खड़े होकर अपनी जिंदगी का अवलोकन करते हुए कहते हैं-
‘और हम झुके झुके मोड़ पर रुके रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।’

४ जनवरी १९२५ को इटावा जिले (उत्तर प्रदेश) के पुरावली गाँव में हुआ था। बालक गोपाल ने ६ वर्ष की आयु में अपने पिता ब्रज किशोर सक्सेना को खो दिया। इसके बाद रिश्तेदारों के यहाँ इनका पालन पोषण हुआ। लेकिन हाईस्कूल की परीक्षा पास करते ही उनके रिश्तेदारों ने भी कह दिया कि अब तुम अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठाओ। गोपालदास नीरज की जिंदगी बहुत ही संघर्षमय रही।
गोपालदास नीरज की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। सन् १९४२ में एटा से हाईस्कूल प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। आगे की शिक्षा के लिए आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण छोटी छोटी नौकरियाँ भी करनी पड़ी। इटावा में कचहरी में टाइपिस्ट का काम भी इन्होंने किया। वहाँ से नौकरी छूट जाने के बाद सिनेमाघर की दुकान पर नौकरी की। फिर एक बाल्कट ब्रदर्स नाम की प्राइवेट कंपनी में लगभग ५ साल तक टाइपिस्ट की नौकरी करने के बाद १९४९ में इण्टरमीडियेट की परीक्षा पास की। फिर १९५१ में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन् १९५३ में उन्होंने हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।
मेरठ के कॉलेज में हिन्दी अध्यापक के तौर पर जब वह कार्य कर रहे थे तो वहाँ के प्रशासन ने इन पर गंभीर आरोप लगा दिया जिससे कुपित होकर इन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। बाद में वह आरोप निराधार निकला। वहाँ से आने के बाद इन्होंने अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर कार्य शुरू किया। कविताओं में रुचि होने के कारण वह अक्सर कवि सम्मेलनों में जाया करते थे जहाँ इनकी प्रसिद्धि धीरे धीरे बढ़ने लगी। एक बार देवानन्द साहब की इन पर नज़र पड़ी, उन्होंने इन्हें मुम्बई आने का निमंत्रण दिया। उन्होंने अपनी फिल्म के लिए रंगीला शब्द से शुरू होने वाले गाने का आग्रह किया जिस पर वह पूरी तरह से खरे उतरे और उन्होंने ‘रंगीला रे’ गाना लिखा। फिल्मी गीतों के लिए मुम्बई आकर गोपालदास नीरज जी की कवितायें गीतों में बदल गई। उन्होंने फिल्मों के लिए कई प्रसिद्ध गीत लिखे जिनमें मेरा नाम जोकर, प्रेम पुजारी, शर्मीली आदि के नाम प्रमुख हैं। ‘लिखे जो ख़त तुझे’,
‘कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे’ जैसे कई प्रसिद्ध गीत लिखकर वह फिल्मी जगत में हमेशा के लिए अमर हो गए। लेकिन उनका मन अधिक समय तक फिल्मी दुनियां में नहीं लगा। इसके बाद वह पुनः अलीगढ़ वापस आ गए और अपनी अंतिम सांस तक यहीं रहे।
गोपालदास नीरज की प्रसिद्ध कवितायें एवं गीत
गोपालदास नीरज की अनेकों ऐसी कवितायें हैं जिन्हें पाठकों को बार बार पढ़ने का मन करता है, उनमें से कुछ प्रसिद्ध कविताओं की पंक्तियाँ इस तरह हैं-
छिप-छिप कर अश्रु बहाने वालों
मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से
जीवन नहीं मरा करता है!
स्वप्न झरे फूल से,मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी, बाग के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े, बहार देखते रहे,
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!!

कवि नीरज जब मंच पर झूमकर काव्यपाठ करते थे तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उन्हें हिन्दी की वीणा का नाम दिया था। जनसामान्य की दृष्टि में वह मानव प्रेम के अन्यतम गायक हैं। अन्य भाषा भाषियों के लिए वह ‘सन्त कवि’ हैं और कुछ आलोचक उन्हें ‘निराश मृत्युवादी’ मानते हैं। वर्तमान समय के सर्वाधिक लोकप्रिय और लाड़ले कवि हैं जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी काव्यानुभूति तथा सरल भाषा के द्वारा हिन्दी कविता को एक नया मोड़ दिया है और हरिवंश राय बच्चन जी के बाद नयी पीढ़ी को सर्वाधिक प्रभावित किया। आज अनेक गीतकारों के कण्ठ में उन्हीं की शैली की गूंज सुनाई देती है।
 गोपालदास नीरज ने न केवल फिल्मी गीत लिखे अपितु गज़ल, कविता, मुक्तक, और दोहे भी लिखते रहे। प्रेम उनकी रचना का केन्द्र बिन्दु बना रहा परन्तु जीवन को इतने करीब से परखने के कारण जिंदगी की सजीवता भी उनकी रचनाओं में स्पष्ट दिखायी देती है-
‘चाहे चिर गायन सो जाए,
और हृदय मुरदा हो जाए,
किन्तु मुझे अब जीना ही है,
बैठ चिता की छाती पर भी
मादक गीत सुना लूंगा मैं
हार न अपनी मानूंगा मैं!’
‘खुशी जिसने खोजी वो धन लेके लौटा
 हंसी जिसने खोजी चमन लेके लौटा
मगर प्यार को खोजने जो गया वो
न तन लेके लौटा न मन लेके लौटा’

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 गोपालदास नीरज पहले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें भारत सरकार के द्वारा शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में दो बार पद्म श्री (१९९१) तथा उसके बाद पद्म भूषण(२००७) पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। इसके साथ ही उन्हें यश भारती एवं उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के द्वारा १००,०००/-
 का पुरस्कार दिया गया। गोपालदास नीरज जी ने उर्दू भाषा के लिए बहुत कार्य किया इसीलिये उन्हें विश्व उर्दू परिषद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
गोपालदास नीरज जी को तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९७० में फिल्म ‘चंदा और बिजली’ के गीत ‘काल का पहिया घूमे रे’,१९७१ में फिल्म ‘पहचान’ के गीत ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ और १९७२ में फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ के गीत’ ऐ भाई जरा देख के चलो’ के लिए मिला।
       हिन्दी साहित्य, काव्य जगत व फिल्म जगत में अपनी रचनाओं व स्वर्णिम शब्दों से अमर होने वाले महान साहित्यकार गोपालदास नीरज की मृत्यु १९ जुलाई २०१८ को हुई और अपनी लेखनी का प्रकाश बिखेरता हुआ हिन्दी साहित्य का यह सूर्य हमेशा के लिए अस्त हो गया।

डॉ. मनोरमा सिंह
ग्रेटर नोएडा, उ.प्र.

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